स्वामी बिजनौरी. मृत्यु अटल सत्य है. सभी प्राणियों को मृत्यु निश्चित ही अपने आगोश में ले लेती है लेकिन यह भी कहा गया है –
अश्वत्यागा बलिः व्यासोः हनुमंतश्च विभीषणः
परशु कृपा रामस्य सप्तेते चिर जीवितः
मार्कंडेय महाभागोः सप्त कल्पांत जीवितः
आयुः आरोग्य सिद्धर्थम् प्रसीद भगवन मुनेः
कहा गया है सप्त चिर जीवित तो समय चक्र के अनुसार उसी युग के दुबारा आने तक जीवित रहेंगे लेकिन महामुनि मार्कंडेय सात कल्प तक जीवित रहेंगे.
सतयुग, द्वापर, त्रोता, कलियुग मिलाकर एक कल्प होता है. सात कल्प तक जीवित रहने का वरदान मात्रा महाभाग मार्कंडेय जी को ही प्राप्त है. ऐतिहासिक सत्य हो न हो, शोध का विषय हो सकता है लेकिन मान्यताओं के अनुसार उत्तरांचल में एक ही स्थान है – यमकेश्वर, जहां यमराज को भी महादेव से हारना पड़ा था -महात्मा मार्कंडेय को अमरत्व प्रदान करना ही पड़ा था. आज भी कितने ही श्रद्धालु-साधक इसी मंदिर में पूजा अर्चना करके मन वांछित फल पाते हैं.
मेरे अनुभव में ऐसा कोई और मंदिर नहीं जहां विद्वान पंडितगण अपने अपने यजमानों के लिए सामूहिक रुप से ‘महामृत्यंुजय’ जप का पारायण करते हों. यह ध्वनि की शक्ति ही तो है जो ईश्वर में मिलकर, साधक के मनोबल से, दूरस्थ मृत्युशैय्या पर पड़े यजमान को ठीक कर देती है.
मेरा आमंत्राण है, सादर, सभी वैज्ञानिक शोधकर्ताओं से यमकेश्वर आयें और अनुभव करें, योग्य पंडितों द्वारा किए गए जप से मंत्रा के पारायण से, सैंकड़ों कि.मी. दूर पड़ा बीमार किस तरह ठीक होता है? आयें और अनुभव करें किस तरह निस्संतान पति-पत्नी, मात्रा एक रात्रि इस मंदिर में साधना करके-संतान प्राप्त करते हैं? निस्संदेह यह पौराणिक स्थल है. पद्म पुराण के उत्तराखंड मंे इसका वर्णन है. पुराण के अनुसार ब्रहमा जी के प्रपौत्रा मृकण्डु़ ऋषि इस वन क्षेत्रा में तपस्या करते थे. मृकण्डु ऋषि निस्संतान थे. वृद्धावस्था निकट थी.
संतान की कामना से मृकण्डु ऋषि ने काशी जाकर महादेव की साधना की. भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर मृकण्डु ऋषि से वर मांगने को कहा – उत्तम गुणों से हीन चिरंजीवी पुत्रा अथवा मात्रा 16 वर्ष की आयु वाला सर्वज्ञ एवम् गुणवान पुत्रा. महर्षि ने सर्वज्ञ एवम् गुणवान भले ही अल्पायु की कामना की. भगवान महादेव का वरदान पाकर महर्षि आश्रम वापस आ गये. काफी समय पश्चात् महर्षि पत्नी गुरुदत्राी ने एक पुत्रा को जन्म दिया. साक्षात् वेदव्यास जी ने बालक का नामकरण संस्कार कराया.
बालक समय बीतते बीतते वेद-पुराणों का ज्ञाता हो गया. सोलह कलाओं में निपुण हो गया. पुत्रा को सोलहवां वर्ष प्रारंभ होते ही महर्षि मृकंडु चिंतित एवम् मृत्युभय से भीत रहने लगे. पुत्रा मार्कंडेय ने पिता से चिंता का कारण पूछा. पिता के कारण बताने पर बालक मार्कंडेय कह उठे – ‘आप मेरे लिए कदापि शोक न करें. मैं कोई न कोई यत्न अवश्य करूँगा ताकि अमर हो सकूं. मैं महाकाल को प्रसन्न करूँगा. माता पिता से आज्ञा प्राप्त करके बालक मार्कंडेय समुद्र तट पर चले गए और बालू से शिवलिंग बनाकर ‘महा मृत्युंजय’ मंत्रा का पारायण करने लगे. भौगौलिक सत्य है कि उस युग में कोटद्वार के समीप ही समुद्र बहता था.
वर्तमान शिलायें-पहाड़ इसका प्रमाण हैं. पूजा चलती रही और समय पूर्ण होने पर यमराज ने स्वयं आकर मार्कंडेय को ले जाना चाहा. मार्कंडेय ने बहुत अनुनय विनय की पूजा पूरी होने तक रूक जाने की. यमराज क्रोधित हो गये. बलपूर्वक मार्कंडेय को ले जाना चाहा. तत्क्षण उस बालू के लिंग से भगवान महादेव प्रकट हो गये और यमराज के वक्षस्थल पर लात मारी. यमराज दूर जा गिरे. जहां भगवान शिव और यमराज का युद्ध हुआ, राड़ हुई-वह स्थान आज भी ‘जमराड़ी’ या यम राड़ी के नाम से जाना जाता है. यम का झगड़ा हुआ था यहां.
यमराज को हारना ही था, हार गये. भगवान आशुतोष ने मार्कंडेय ऋषि को सात कल्प तक अमर होने का वरदान दे डाला. स्कंद पुराण के केदारखंड में भी नीलकंठ महादेव, मणिकूट पर्वत, एवम् मणिकूट पर्वत की उपत्यका में यमकेश्वर मंदिर का संदर्भ है. यमकेश्वर स्थान में यमराज ने स्वयं भगवान महादेव की स्तुति की थी. भगवान ने प्रसन्न होकर यमराज को आदेश दिया था – ‘जहां भी ‘मृत्यंुजय’ का जाप होता हो, वहां तुम्हें नहीं जाना चाहिये.
यमकेश्वर मंदिर के निकट का टीला भी प्राकृतिक शिवलिंग के समान है और मंदिर के समीप बहने वाली नदी का नाम शतरूद्रा है. स्थानीय लोग सादी भाषा में इसे ‘सतेड़ी’ नदी कहते हैं. मान्यता है कि यमकेश्वर महादेव लोकहित मंे बोलते भी थे. कभी-कभी आकाशवाणी होती थी यहां. लोगों को सावधान करते थे. कालान्तर में उनका बोलना बंद हो गया. यमकेश्वर महादेव की मान्यता ही तो है जो पूरे श्रावण मास में, विशेष रूप से सोमवार को, यहां श्रद्धालुओं की अपार भीड़ रहती है. मान्यता है कि मृत्यु/अपकीर्ति/संतान प्राप्ति के लिए की गई पूजा अर्चना यहां विशेष फलदायी होती है. यमकेश्वर महादेव तक पहुंचने के दो रास्ते हैं.
पहला मार्ग कोटद्वार होकर जाता है. कोटद्वार रेलवे एवम् सड़क मार्ग दोनों से जुड़ा है. दिल्ली-लखनऊ से सीधी सेवा है कोटद्वार के लिए. कोटद्वार से यमकेश्वर लगभग 82 किमी है. मात्रा सड़क मार्ग है.
प्रकृति में अनुपम दृश्यों से युक्त, मनोहारी पुष्पों के दर्शन, अनुपम सुख देने वाली शुद्ध वायु – सभी कुछ है यहां. कोटद्वार से दुगड्डा – भटियाली – कांडीखाल -वांखाला -नालीखाल-बस्याली भृगुखाल कांडी- टांगर- बिध्याणी होकर यमकेश्वर महादेव.
दूसरा मार्ग है हरिद्वार – ऋषिकेश – बैराज-नीलकंठ महादेव के समीप होकर-देवली-पोखर खाल-तिलधार खाल-भडै़त- अमोला- बिथ्यागी होकर यमकेश्वर. लक्ष्मण झूला से यमकेश्वर लगभग 40 किमी है. कुल मिलाकर देव भूमि उत्तरांचल का सिद्धपीठ है यमकेश्वर-यह मेरा अनुभव है.