महिलाओं के खिलाफ अपराध रोकने के लिए सामाजिक सोच में बदलाव जरूरी
देवानंद सिंह
कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में एक ट्रेनी महिला डॉक्टर के साथ हुए बलात्कार और हत्या के मामले में सियालदाह कोर्ट ने संजय रॉय को दोषी ठहराया और उसे उम्रभर की सजा सुनाई है। अदालत ने इस मामले में सीबीआई द्वारा प्रस्तुत किए गए साक्ष्यों को पर्याप्त मानते हुए फैसला सुनाया। कोर्ट ने संजय रॉय पर 50,000 रुपए का जुर्माना भी लगाया और राज्य सरकार को पीड़िता के परिवार को 17 लाख रुपए का मुआवजा देने का आदेश दिया। इस फैसले से एक तरफ जहां न्याय की उम्मीद बंधी है, वहीं दूसरी ओर यह सवाल एक बार फिर उठता है कि क्या इस तरह की सजा से समाज में महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा पर अंकुश लगाया जा सकेगा? क्या यह फैसला अन्य समान मामलों में बदलाव लाने के लिए एक प्रेरणा बन सकेगा?
कोर्ट का यह फैसला इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह एक ऐसे गंभीर अपराध के लिए सजा का उदाहरण प्रस्तुत करता है, जो समाज की सुरक्षा और महिलाओं के सम्मान को चुनौती देता है। उम्रभर की सजा यह संकेत देती है कि इस तरह के अपराधों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। हालांकि, यह सवाल बना रहता है कि क्या यह सिर्फ एक प्रतीकात्मक कदम है या इसके माध्यम से हम असल में समाज में बदलाव ला सकते हैं। सजा एक आवश्यक कदम है, लेकिन यह समस्या का अंतिम समाधान नहीं है। अदालत के फैसले के बाद हमें यह समझने की जरूरत है कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए समाज के हर स्तर पर बदलाव की आवश्यकता है।
एक न्यायपूर्ण सजा देने से महिलाओं के खिलाफ हिंसा में कमी नहीं आएगी। इसके लिए कई अन्य पहलुओं पर भी ध्यान देना होगा। सबसे पहले, महिलाओं के प्रति हिंसा और असुरक्षा की मानसिकता को खत्म करने के लिए व्यापक जागरूकता अभियान चलाना जरूरी है। परिवार, स्कूल और समाज के हर स्तर पर लड़कियों और महिलाओं को सशक्त बनाने की जरूरत है। इसके अलावा, कानून व्यवस्था को भी मजबूत करना होगा। पुलिस की निष्क्रियता, साक्ष्य इकट्ठा करने में देरी और आरोपी के खिलाफ कार्रवाई में ढिलाई जैसी समस्याएं न्याय प्रक्रिया को प्रभावित करती हैं। अगर, हम महिलाओं के खिलाफ हिंसा को पूरी तरह से रोकना चाहते हैं, तो यह सुनिश्चित करना होगा कि कानून सख्ती से लागू हो और न्याय की प्रक्रिया तेज़ और प्रभावी हो।
उल्लेखनीय है कि यह घटना 9 अगस्त, 2024 को पश्चिम बंगाल के आरजी कर अस्पताल में घटित हुई थी, जब 31 वर्षीय महिला डॉक्टर का शव अस्पताल के कॉन्फ्रेंस रूम में पाया गया। जांच में यह पाया गया कि महिला डॉक्टर के साथ पहले बलात्कार किया गया और फिर उनकी हत्या कर दी गई। संजय रॉय अस्पताल का कर्मचारी था, जिसे आरोपी के तौर पर गिरफ्तार किया गया और बाद में उसे कोर्ट में पेश किया गया। सीसीटीवी फुटेज और घटनास्थल से मिले कुछ सुरागों ने उसे दोषी ठहराने में मदद की। इसके बाद से राज्यभर में आक्रोश फैल गया और डॉक्टरों ने न्याय की मांग को लेकर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया।
इस घटना ने यह भी साफ किया कि अस्पतालों और चिकित्सा संस्थानों में सुरक्षा की स्थिति बेहद कमजोर है। अस्पतालों में चिकित्सकों और मेडिकल स्टाफ को सुरक्षा मुहैया कराना बेहद महत्वपूर्ण है। हालात यह हैं कि न सिर्फ महिलाएं, बल्कि पुरुष भी कार्यस्थल पर असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। अगर, अस्पतालों में सुरक्षा के उचित उपाय नहीं किए जाते हैं, तो इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति होना तय है। अस्पतालों में सीसीटीवी कैमरे, सुरक्षा गार्ड और पर्याप्त आपातकालीन प्रबंधों की व्यवस्था होनी चाहिए। अदालत ने अपना फैसला सुना दिया, लेकिन यह घटना केवल न्यायिक व्यवस्था तक सीमित नहीं है। सरकार और प्रशासन की भी जिम्मेदारी बनती है कि वे इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए सख्त कदम उठाएं। महिला सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए पुलिस की जवाबदेही तय होनी चाहिए। राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अस्पतालों, स्कूलों और कार्यस्थलों पर महिलाओं के खिलाफ किसी भी प्रकार की हिंसा के लिए सख्त कानून लागू किए जाएं।
अदालत ने पीड़िता के परिवार को 17 लाख रुपए का मुआवजा देने का आदेश दिया, जो न्याय की दिशा में एक सकारात्मक कदम है। हालांकि, मुआवजा केवल वित्तीय पहलू तक सीमित नहीं होना चाहिए। सरकार को पीड़ितों और उनके परिवारों के लिए मानसिक और भावनात्मक समर्थन भी सुनिश्चित करना चाहिए। कई बार ऐसी घटनाओं के बाद पीड़ित परिवार को मानसिक और सामाजिक कष्ट झेलना पड़ता है और इसका समाधान केवल मुआवजे से नहीं किया जा सकता। इस लिहाज से, पीड़ितों को एक समग्र सहायता प्रणाली की आवश्यकता है, जिसमें चिकित्सा, मानसिक स्वास्थ्य सहायता और न्याय की प्रक्रिया में मार्गदर्शन शामिल हो।
इस जघन्य घटना ने न केवल पश्चिम बंगाल, बल्कि पूरे देश को झकझोर दिया था। अदालत का फैसला न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन क्या इससे समाज में वास्तविक बदलाव आएगा ? इस सवाल का जवाब खोजने अत्यंत आवश्यक होगा, क्योंकि सिर्फ सजा और मुआवजा से समस्याओं का हल नहीं निकल सकता। इसके लिए हमें सामाजिक, कानूनी और प्रशासनिक स्तर पर व्यापक बदलाव की आवश्यकता है। महिलाओं के खिलाफ अपराधों को रोकने के लिए समाज, सरकार, और न्यायपालिका को मिलकर काम करना होगा। हमें यह समझने की जरूरत है कि किसी भी समाज में बदलाव लाने के लिए हर व्यक्ति और संस्था को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी और उस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।