गढ़वा : जिले के कांडी प्रखंड मुख्यालय कांडी में इस वर्ष 79 वें सार्वजनिक दुर्गा पूजा समारोह का आयोजन किया गया है। इस पूजा को धूमधाम से आयोजित करने का निर्णय लिया गया है। प्रखंड मुख्यालय स्थित श्री राम जानकी सह महावीर मंदिर पूजा समिति के तत्वावधान में दुर्गा पूजा समिति की ओर से 79 वें दुर्गापूजा महोत्सव के आयोजन को लेकर तैयारी जोरों पर चल रही है। दुर्गापूजा के लिए नवगठित पूजा समिति के द्वारा इस वर्ष भव्य पूजा पंडाल का निर्माण कराया जा रहा है। दुर्गा पूजा को लेकर लोगो में काफी उत्साह का वातावरण बना हुआ है। इस वर्ष बन रहे पूजा पंडाल की लागत लगभग तीन लाख पचास हजार रुपए आने का अनुमान है।
इस पंडाल की लंबाई 30 फीट व चौड़ाई 40 फीट होगी। जबकि माता महादुर्गा की प्रतिमा सात फीट ऊंची होगी। प्रतिमा की अनुमानित लागत 30 हजार रखा गया है। वहीं भंडारा व पूजा की लागत दो लाख रुपए रखी गई है। पूजा आयोजन की सप्तमी तिथि से दशमी तिथि तक भव्य भंडारा का आयोजन किया जाएगा। वहीं एकम से ही दुर्गा पाठ किया जाएगा। इस बार पंडाल व मूर्ति बनाने का काम बिहार के प्रसिद्ध कलाकार अमरदीप कुमार और उनकी टीम के द्वारा किया जा रहा है। श्री दुर्गा पूजा समिति के अध्यक्ष सह कांडी पंचायत के मुखिया ने बताया कि इस बार 79वें दुर्गा पूजा समारोह का आयोजन किया जा रहा है। आयोजन को सफल बनाने को लेकर लोगों का भरपूर आर्थिक तथा शारीरिक सहयोग मिल रहा है। उन्होंने बताया कि इस बार की पूजा के आयोजन को भव्य स्वरुप दिए जाने की योजना है। मालूम हो कि कांडी में दुर्गा पूजा का पहला सार्वजनिक आयोजन वर्ष 1945 में किया गया था। उस वक्त कोलकाता के एक बंगाली डॉक्टर यहां रहा करते थे।
उन्हीं के नेतृत्व में कांडी में सार्वजनिक दुर्गा पूजा की शुरुआत की गई थी। वर्तमान में रामधनी साह के पुरानी दुकान की जगह प्रथम पूजा की गई थी। डुमरसोता गांव के पंडित कामेश्वर मिश्र (हाई स्कूल से सेवानिवृत्त संस्कृत शिक्षक) ने पहली पूजा कराई थी। बंगाली डॉक्टर जिन्हें लोग प्यार से बंगाली सेठ कहा करते थे। वे समाजसेवी बचरू साह के घर में रहा करते थे। इस प्रकार कांडी में पहली सार्वजनिक दुर्गा पूजा आज से 79 वर्ष पहले की गई थी। उस समय से यहां पर दुर्गा पूजा का लगातार आयोजन किया जाता रहा है। उस समय कांडी सिर्फ एक बाजार हुआ करता था। बाद में कांडी पंचायत का गठन हुआ। जो आगे चलकर पहली नवंबर 1999 को कांडी प्रखंड में तब्दील हो गया। कुछ वर्षों के बाद कांडी में थाना एवं अंचल कार्यालय तथा अन्य कई कार्यालय खुल गए। कांडी का स्वरूप बढ़ता गया। इसी के अनुरूप पूजा समारोह का स्वरूप भी बदलता गया। छोटे आयोजन से इसे बड़े आयोजन का रूप दिया जाने लगा।