इश्क में डूबने से पहले..वैराग समझना पड़ता है
यहां उपालंभ को भी अनुराग समझना पड़ता है ।।
यह दुनिया…..एक अजीब मायाजाल सरीखी है
यहां शांत पानी को भी..आग समझना पड़ता है ।।
ससुराल का कुनबा….जब साथ-साथ रहने लगे
फिर तो.. हर शहर को प्रयाग समझना पड़ता है ।।
मस्तमौला बनकर…जिंदगी जीनी है अगर प्यारों
हर रात दिवाली,दिन को फाग समझना पड़ता है ।।
कृष्ण सी दरियादिली…अपनानी है अगर दोस्तों
छप्पन व्यंजन को भी….साग समझना पड़ता है ।।
रात के मुसाफिर को……बेखौफ चलने के लिए
राह के जुगनुओं को…चिराग समझना पड़ता है ।।
सुकून भरी मौत की…….चाहत है अगर “वंदन”
फिर धन-दौलत को….खाक समझना पड़ता है ।।
© मनीष सिंह “वंदन”
आई टाइप, आदित्यपुर, जमशेदपुर, झारखंड