कोरोनावायरस संक्रमण के खिलाफ लड़ाई में लॉकडाउन की वजह से व्यापारी वर्ग, मध्य वर्ग और गरीब पर आर्थिक बोझ बढ़ गया है. ऐसे में शहर के स्कूल उनको राहत देने पर गौर कर रहे हैं. गुजरात स्टेट स्कूल मैनेजमेंट फेडरेशन इस संभावना पर गौर कर रहा है कि क्या वे पैरंट्स की दो महीने की फीस लौटा सकते हैं. अगर ऐसा होता है तो यह वाकई में एक मिसाल होगी.गुजरात में फेडरेशन के तहत 3,700 से ज्यादा स्कूल रजिस्टर्ड हैं. इनमें से 70 फीसदी स्कूलों को सरकारी सहायता मिलती है. बाकी सेल्फ फाइनैंस्ड खुद पर निर्भर हैं. फेडरेशन के प्रेसिडेंट भास्कर पटेल ने बताया, जो पैरंट्स अपने बच्चों का दाखिला सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में कराते हैं, उनकी आय बहुत सीमित होती है.चूंकि दो महीने क्लास नहीं चलेंगी और स्कूल परीक्षाओं का आयोजन नहीं करेंगे तो इस पर पैसा खर्च नहीं होगा. स्कूल बंद रहने की वजह से बिजली बिल कम होगा और रखरखाव का चार्ज भी कम होगा.स्कूल के पास स्टाफ का वेतन देने के लिए फंड्स है. इसलिए हमने अप्रैल और मई की फीस लौटाने का प्रस्ताव रखा है. पटेल उस्मानपुरा स्थित अरोमा स्कूल के ट्रस्टी हैं. सेल्फ फाइनैंस्ड स्कूलों की फीस हजारों में होती है जबकि सहायता प्राप्त स्कूलों की फीस कम होती है.शिक्षाविद किरित जोशी ने कहा, यह अच्छा विचार है लेकिन हम सिर्फ ऊपरी खर्च ही बचा पाएंगे. स्कूलों को बंद रहने की स्थिति में भी टीचर्स और स्टाफ की सैलरी देनी पड़ेगी. मेरे ख्याल से काफी फीस वसूलने वाले सेल्फ फाइनैंस्ड स्कूलों के पैरंट्स को फीस को दान कर देना चाहिए ताकि वायरस के खिलाफ लड़ाई मजबूती से लड़ी जा सके. उनके लिए दो महीने की फीस कुछ मायने नहीं रखती है.एक स्कूल के ट्रस्टी ने बताया कि कोई भी ऐलान करने से पहले इस आइडिया पर अहमदाबाद स्कूल मैनेजमेंट कमिटी के साथ चर्चा करना होगा. उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बताया, हमारे स्कूल में करीब 15,00 से 1,600 छात्र पढ़ते हैं जो लोअर मिड्ल क्लास और गरीब वर्ग से हैं.
हमारी फीस 500 रुपये महीने है. अगर हम पैरंट्स को एक हजार रुपये वापस दे देंगे तो इससे उनको काफी मदद मिलेगी. लेकिन कोई भी फैसला लेने से पहले हमें इसके सारे पहलुओं पर गौर करना होगा.