क्या प्रियंका की इंदिरा छवि बीजेपी के लिए बनेगी चुनौती ?
देवानंद सिंह
कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी मंगलवार को संसद में बांग्लादेश के हिंदुओं और ईसाइयों के समर्थन वाला बैग लेकर पहुंचीं, इससे एक दिन पहले प्रियंका गांधी फिलिस्तीन के समर्थन वाला बैग लेकर संसद गई थीं। जिसका बीजेपी ने विरोध किया और कहा कि प्रियंका और कांग्रेस को बांग्लादेश के हिंदुओं का दर्द नहीं दिखता है। प्रियंका के इस कदम के बाद देश की सियासत एकदम गरम हो गई है। जिस तरह बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार हो रहे हैं, उससे निश्चित्तौर पर ऐसा लगता है कि मोदी सरकार बांग्लादेश की अंतरिम सरकार पर दवाब डालने में सफल नहीं हो पा रही है, यह बात प्रियंका ने संसद में भी उठाई कि केंद्र सरकार बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए बांग्लादेश की अंतरिम सरकार से बातचीत करे, प्रियंका गांधी का संसद में जो रूप दिखा उसने निश्चित रूप से इंदिरा गांधी की याद दिलाई।
प्रियंका गांधी का यह कदम ऐसे समय में आया है, जब भारतीय राजनीति में अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर बहस तेज है। एक ओर बांग्लादेश में हिंदुओं और ईसाइयों की स्थिति पर चिंता व्यक्त की जा रही है, वहीं दूसरी ओर फिलिस्तीन को लेकर विश्व स्तर पर समर्थन का माहौल बन रहा है। प्रियंका गांधी ने संसद में इन दोनों मुद्दों पर अपने विचार प्रस्तुत करने के लिए बैग का उपयोग किया। इस प्रतीकात्मक कदम का उद्देश्य यह था कि वह न केवल भारतीय राजनीति में कांग्रेस पार्टी की विचारधारा को मजबूत कर रही हैं, बल्कि एक सशक्त और साहसी नेता के रूप में उभर रही हैं, जो अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर भी मुखर होकर अपनी आवाज़ उठाती हैं।
प्रियंका गांधी का इस तरह का साहस निश्चित ही कांग्रेस में नई जान फूंकने का काम करेगा, जो बीजेपी के लिए आने वाले दिनों में एक चुनौती का काम करेगा। बांग्लादेश के हिंदुओं और ईसाइयों के समर्थन में बैग लेकर आना, दरअसल एक कूटनीतिक संदेश था। यह वह मुद्दा है, जिसे भारतीय राजनीति में धार्मिक और साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से देखा जाता है। प्रियंका गांधी इस माध्यम से यह जताने की कोशिश कर रही हैं कि वह धार्मिक उत्पीड़न के खिलाफ खड़ी हैं।
प्रियंका गांधी को लेकर अक्सर यह सवाल भी उठता है कि क्या वे अपनी दादी इंदिरा गांधी की तरह राजनीति में अपना प्रभाव छोड़ पाएंगी ? यह सच है कि प्रियंका गांधी के राजनीति में कदम रखने के बाद से ही मीडिया और राजनीतिक विश्लेषक उनकी तुलना इंदिरा गांधी से करते आए हैं। इंदिरा गांधी की तरह प्रियंका गांधी भी साहसी और निडर राजनीति करती नजर आ रही हैं और उनका यह कदम बांग्लादेश के हिंदुओं और ईसाइयों के समर्थन में एक संकेत है कि वे भी भारतीय राजनीति में अपनी जगह बनाने के लिए हर तरह की चुनौती का सामना करने को तैयार हैं।
इंदिरा गांधी ने जब पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में नेतृत्व किया और भारत को 1971 में विजय दिलाई, तो उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी ताकत का एहसास कराया था। प्रियंका गांधी का यह कदम भी किसी हद तक उस साहसिक नेतृत्व की याद दिलाता है, हालांकि प्रियंका गांधी को इंदिरा गांधी की तरह व्यापक स्तर पर राजनीतिक सफलता अभी तक नहीं मिली है। फिर भी, उनके हालिया कदमों से यह संकेत मिलता है कि प्रियंका गांधी भविष्य में कांग्रेस पार्टी के लिए एक प्रमुख राजनीतिक नेता बन सकती हैं, जो न केवल घरेलू मुद्दों बल्कि अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर भी अपनी आवाज उठा सकती हैं।
जहां तक सियासी चुनौती का सवाल है, प्रियंका गांधी का यह कदम निश्चित ही बीजेपी के लिए एक बड़ी चुनौती पेश करता है, क्योंकि वह पार्टी को ऐसे मुद्दों पर घेरने की कोशिश कर रही हैं, जो भारतीय समाज में संवेदनशील हैं। बीजेपी भी खुद को हिंदूवादी पार्टी के तौर पर पेश करती रही है, लेकिन उसे बांग्लादेश के हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार को रोकने में अपेक्षित सफलता नहीं मिल पा रही है। यह बात उल्लेखनीय है कि बांग्लादेश में हिंदुओं और ईसाइयों की स्थिति पर भारत में चर्चा अक्सर होती रही है। आने वाले दिनों में यह मुद्दा बीजेपी के लिए मुश्किल स्थिति पैदा कर सकता है। बीजेपी हमेशा यह दावा करती आई है कि वह धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन प्रियंका गांधी का यह कदम यह सवाल उठाता है कि क्या वास्तव में मोदी सरकार बांग्लादेश के हिंदुओं और ईसाइयों की रक्षा में सफल रही है?
प्रियंका गांधी का यह कदम न केवल बीजेपी की विदेश नीति पर सवाल उठाता है, बल्कि घरेलू राजनीति में भी एक नया मोड़ ला सकता है। बीजेपी अपने आपको हिंदू समुदाय की सबसे अच्छी समर्थक पार्टी के रूप में पेश करती है, लेकिन बांग्लादेश में जो हालात हैं, उसमें वह कटघरे में नजर आती है। प्रियंका गांधी के बांग्लादेश के हिंदुओं और ईसाइयों के समर्थन में उठाए गए कदम को लेकर यह सवाल उठता है कि क्या मोदी सरकार बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा में विफल रही है? बांग्लादेश में हिंदू और ईसाई समुदायों का उत्पीड़न एक गंभीर समस्या बन चुकी है, और इस पर मोदी सरकार की नीति पर आलोचना की जाती रही है। हालांकि, भारत सरकार ने बांग्लादेश से बेहतर द्विपक्षीय संबंध बनाने की कोशिश की है, लेकिन बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा और भेदभाव की घटनाएं निरंतर सामने आती रहती हैं।
यहां यह सवाल उठता है कि क्या भारत सरकार को इस मुद्दे पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। प्रियंका गांधी के इस कदम से यह स्पष्ट होता है कि कांग्रेस पार्टी इस मुद्दे को लेकर मोदी सरकार को घेरने का प्रयास कर रही है। मोदी सरकार के लिए यह एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि इस मुद्दे पर कोई ठोस कदम न उठाना पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचा सकता है, लेकिन यह चीज आने वाले दिनों में ही स्पष्ट हक पाएगी, लेकिन एक बात तो साफ है कि
बीजेपी के लिए यह चुनौती होगी कि वह इस मुद्दे पर अपनी स्थिति को स्पष्ट करें और बांग्लादेश के हिंदुओं और ईसाइयों की सुरक्षा के लिए क्या ठोस कदम उठाए।