बिशन पपोला
नागरिकता संशोधन बिल को पास कराने के बाद केंद्र सरकार डेटा संरक्षण विधेयक 2०19 को भी पास कराने की प्रक्रिया में जुट गई हैं। फिलहाल, इस विधेयक को संसद की संयुक्त प्रवर समिति के पास विचार के लिए भेज दिया गया है। प्रवर समिति विधेयक पर अपनी रिपोर्ट बजट सत्र के अंतिम स’ाह के पहले दिन संसद को सौंपेगी।
इंटरनेट के बढ़ते प्रयोग के बाद आसानी से उपभोक्ताओं का व्यक्तिगत डेटा भी लीक हो जा रहा है। इंटरनेट दुनिया की बड़ी-बड़ी कंपनियां उभोक्ताओं के डेटा को आसानी से चोरी कर दे रही हैं, जो हर किसी के लिए चिंता का विषय बना हुआ। इसीलिए इंटरनेट, लोगों के लिए जितना सुविधाजनक है, वह उतना ही असुविधा जनक भी है। इसमें बहुत-सी सावधानियां बहुत जरूरी होती हैं, लेकिन आम लोगों को इससे बचने के लिए क्या सावधानियां बरतनी चाहिए, इसके बारे में बिल्कुल भी जानकारी नहीं होती है। इसीलिए केंद्र सरकार इस संबंध में कानून बनाने के मकसद से ही डेटा संरक्षण विधयेक 2०19 को लाई है। अगर, यह विधेयक सर्वसम्मति के बाद कानून बन जाता है तो यह कई मायनों में महत्वपूर्ण साबित होगा और बड़ी कंपनियां उभोक्ताओं के डेटा प्रयोग करने से बाज आएंगी, क्योंकि इस विधेयक में जो प्रावधान दिए गए हैं, उसके अंतर्गत व्यक्तिगत डेटा के इस्तेमाल से पहले उपभोक्ताओं की मंजूरी लेना बेहद जरूरी होगा।
वहीं, बॉयोमेट्कि डेटा की जानकारी लेने के लिए सरकार की मंजूरी लेना आवश्यक होगा। इसके इतर बच्चों के लिए भी सख्त कानून होगा। इसका जो सबसे महत्वपूर्ण पहलू है, वह यह है कि सभी कंपनियों को अपने डेटा से संबंधित सभी तरह की जानकारियां सरकार के साथ साझा करनी होंगी। कंपनियों को भारतीयों का महत्वपूर्ण व संवेदनशील डेटा भारत में ही संरक्षित करना होगा, जबकि कुछ लिमिटेड डेटा ही विदेश में संरक्षित किया जा सकेगा। इस लिहाज से इस विधेयक में उपभोक्ताओं के डेटा के स्थानीय भंडारण पर विशेष बल दिया गया है, जिसका निश्चित ही उपभोक्ताओं को फायदा मिलेगा।
इस विधेयक का एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि सरकार को विदेशी कंपनियां, जैसे फेसबुक, गूगल जैसी बड़ी कंपनियों के साथ-साथ अन्य कंपनियों के डेटा के संबंध में पूछने का अधिकार भी दिया गया है। सरकार उन घटनाओं पर पूरी तरह लगाम लगाने की कोशिश करना चाहती है, जिसके तहत उक्त बड़ी-बड़ी कंपनियां आसानी से डेटा चोरी कर लेती हैं। इसमें सरकारी एजेंसियों को क्रेडिट स्कोर, कर्ज मालिक की सहमति के बिना भी उसकी डेटा प्रॉसेसिंग करने की छूट दिए जाने का भी प्रावधान है। विधेयक के तहत सरकार को यह अधिकार होगा कि वह किसी भी सरकारी एजेंसी को प्रस्तावित कानून के प्रावधानों के दायरे से छूट दे सके।
विपक्ष नागरिकता संशोधन विधेयक 2०19 की तरह ही इस विधेयक का भी विरोध कर रहा है, लेकिन सरकार का तर्क है कि उसने व्यापक विचार-विमर्श के बाद ही इस विधेयक को तैयार किया है, लेकिन जिस प्रकार विपक्ष, कानूनी विशेषज्ञ व कई अन्य संगठन इसके विरोध में हैं, उससे लगता है कि नागरिकता संशोधन बिल की तरह ही इस बिल को भी बड़ा विरोध झेलना पड़ सकता है, लेकिन सरकार जिस तरह विधेयक को लेकर आश्वस्त दिख रही है, उससे यह नहीं लगता है कि सरकार बैकफुट पर आएगी। डेटा संरक्षण कानून दुनिया के कई अन्य देशों में भी है, जिस प्रकार इंटरनेट की दुनिया बढ़ रही है, निहायत ही ऐसे दौर में ऐसे कानून की जरूरत है, पर ऐसा भी न हो कि बिना कानून के कंपनियां उपभोक्ताओं का डाटा चोरी कर दुरूपयोग करें और अधिकार मिल जाने से सरकार व कोई सरकारी एजेंसी इस डेटा का दुरूपयोग करे। ऐसा कतई नहीं होना चाहिए। राजनीतिक पार्टियां भी डेटा चोरी को लेकर हमेशा से उस्ताद रही हैं, क्योंकि उन्हें भी अपने राजनीतिक हित साधने के लिए ऐसे डेटा की हर वक्त आवश्यकता पड़ती रहती है। इसीलिए जरूरी है कि विधेयक जब कानून की सूरत में आए तो वह सर्वसम्मति से आए। विधेयक में जो खामियां व आपत्तियां हैं, उन्हें पहले ही खोज लिया जाए, जिससे उपभोक्ताओं के डेटा से संबंधित हितों पर किसी भी प्रकार से सेंध लगने की गुंजाइश बिल्कुल न रहने पाए।