पलकों पर कुछ नम नम सा है,
सब कुछ है पर कम कम सा है ,
आँखों में सपने भी कम हैं,
जमघट में अपने भी कम हैं,
रात की अपनी तानाशाही,
कम है नींद की आवाजाही,
सहचर ,साथी ,संगी हैं सब
कोई नहीं पर हमदम सा है,
सब कुछ है पर कम कम सा है
पलकों पर कुछ नम नम…….
— डाॅ कल्याणी कबीर