भारत मंडपम में स्थापित नटराज प्रतिमा के निर्माण में 30 महीने का काम 6 महीने में पूरा हुआ
नई दिल्ली।
– नटराज प्रतिमा के निर्माण में तीन लाख मानव कार्य घंटे लगे
‘नटराज’ एक शक्तिशाली प्रतीक है, जो शिव को एक ही साथ ब्रह्मांड के स्रष्टा, संरक्षक और संहारक के रूप में प्रस्तुत करता है और समय के गतिशील चक्र के बारे में भारतीय समझ को भी बताता है। ‘जी20 शिखर सम्मेलन’ के ठीक पहले नई दिल्ली के प्रगति मैदान के भारत मंडपम में स्थापित नटराज की अष्टधातु से बनी सबसे बड़ी प्रतिमा चर्चा का विषय बन गई है। लोगों ने इसे आधुनिक चमत्कार और कलात्मक उत्कृष्टता का एक स्थायी प्रतीक बताया। जी20 शिखर सम्मेलन के लिए दुनियाभर से आए अतिथि इस अद्भुत प्रतिमा को देखकर अभिभूत हो गए। उन्होंने इसकी मुक्त कंठ से सराहना की और इसकी पारलौकिक ऊर्जा का अनुभव किया। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) ने नटराज प्रतिमा की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ‘नटराज’ पर विचार-विमर्श करने और नटराज के भारतीय दर्शन को युवा पीढ़ी तक प्रसारित करने के लिए डॉ. अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में ‘नटराज: ब्रह्मांडीय ऊर्जा की अभिव्यक्ति’ पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
इस कार्यक्रम में नटराज की सबसे बड़ी प्रतिमा के विश्वविख्यात शिल्पकार तमिलनाडु के स्वामीमलाई के श्री राधाकृष्ण स्थापति को उनके असाधारण कलात्मक कौशल के लिए सम्मानित किया गया, जिनकी उत्कृष्ट कृति ने दुनियाभर के कलाप्रेमियों को मंत्रमुग्ध कर दिया है। लगभग 18 टन वजनी और 27 फुट (आधार के साथ 33 फीट) की इस नटराज प्रतिमा को राधाकृष्ण के नेतृत्व में तमिलनाडु के स्वामीमलाई के पारंपरिक स्थापतियों ने शास्त्रों में उल्लिखित सिद्धांतों और मापों का पालन करते हुए लॉस्ट वैक्स पद्धति से बनाया है।
जी20 शिखर सम्मेलन के लिए नटराज की मूर्ति बनाने हेतु एक ऐसे मूर्तिकार की तलाश थी, जो अपनी कलाकृति के माध्यम से एकता, शक्ति और अनुग्रह का सार चित्रित कर सके। इस कार्य के लिए अंततः स्वामीलाई के स्थापति का चयन किया गया। फिर नटराज की मूर्ति का निर्माण श्री राधाकृष्ण की अगुआई में मधुच्छिष्ट विधान (लॉस्ट वैक्स तकनीक) से शुरू हुआ। इस विधि का चोल काल (9वीं शताब्दी ईस्वी) से पालन किया जा रहा है। श्री राधाकृष्णण का परिवार चोल काल से यह शिल्प कार्य करता आ रहा है। वह चोल काल के स्थापतियों के परिवार की 34वीं पीढ़ी के सदस्य हैं।
इस कार्यक्रम में ‘पद्मविभूषण’ व राज्यसभा सांसद डॉ. सोनल मानसिंह, प्रख्यात नृत्यांगना ‘पद्मभूषण’ डॉ. पद्मा सुब्रमण्यम, आईजीएनसीए के अध्यक्ष ‘पद्मश्री’ रामबहादुर राय, केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के सचिव श्री गोविंद मोहन, ऑल इंडिया फाइन आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स सोसाइटी के अध्यक्ष व प्रख्यात मूर्ति शिल्पकार श्री बिमान बिहारी दास, कॉलेज ऑफ आर्ट के प्राचार्य प्रो. संजीव कुमार शर्मा, प्रख्यात मूर्तिकार व नटराज मूर्ति के शिल्पी श्री राधाकृष्ण स्थापति, नेशनल गैलरी ऑफ मॉर्डन आर्ट के पूर्व महानिदेशक श्री अद्वैत गड़नायक, प्रख्यात मूर्ति शिल्पकार श्री अनिल सुतार और आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी शामिल हुए। कार्यक्रम में विभिन्न क्षेत्रों के दर्शकों और संस्कृतिप्रेमियों के अलावा, 200 से अधिक छात्रों ने भी भाग लिया।
कार्यक्रम में बोलते हुए डॉ. पद्मा सुब्रमण्यम ने नटराज की अवधारणा के बारे में विस्तार से बात की। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक दृष्टि से यह पदार्थ और ऊर्जा का मिलन है। यह यंत्र (विधिपूर्वक पूजित रेखाचित्र) है। यह ‘रूप’ पूजा और ‘अरूप’ पूजा (निराकार तत्व की पूजा) का एक संयोजन है, दोनों को चिदंबरम में नटराज मंदिर के गर्भगृह में रखा गया है। अपनी प्रस्तुति में उन्होंने नटराज के विभिन्न पहलुओं और गतिशीलता पर विस्तार से प्रकाश डाला।
नए आईटीपीओ कन्वेंशन सेंटर में नटराज की प्रतिमा की स्थापना का जिक्र करते हुए डॉ. सोनल मानसिंह ने कहा कि ‘नटराज: ब्रह्मांडीय ऊर्जा की अभिव्यक्ति’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में भाग लेना सौभाग्य की बात है। उन्होंने भारतीय मूल्यों, ज्ञान और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की सही जानकारी को बढ़ावा देने वाले इस कार्यक्रम के आयोजन के लिए आईजीएनसीए के प्रति आभार व्यक्त किया। केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के सचिव श्री गोविंद मोहन ने नटराज के निर्माण से संबंधित अपने किस्से साझा किए और कहा कि पूरी प्रक्रिया बहुत चुनौतीपूर्ण थी फिर भी यह ‘नटराज’ ही थे, जो इस विशाल कार्य को पूरा करने की प्रेरणा देते रहे।
कार्यक्रम में अपनी बात करते हुए डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने विस्तार से बताया कि कैसे नटराज भगवान शिव और ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रतीक है। ‘तांडव मुद्रा’ रचनात्मकता, संरक्षण और विनाश का लौकिक चक्र है। उन्होंने बताया कि एक अकल्पनीय कार्य रिकॉर्ड समय में पूरा किया गया है।