*मन सुक्ष्म है, मस्तिष्क स्थूल है, स्मृतियां, विचार,मनन आदि मन के गुण हैं।*
*सूक्ष्मतम सत्ता को समझने के लिए बुद्धि को सूक्ष्मतम एवं तीक्ष्णतम वना लेना पड़ेगा*
*जड़ विज्ञान जानने वाले है- जड़ वैज्ञानिक एवं आध्यात्म दर्शन जानने वाले है- अध्यात्मवादी*
*जड़ से चेतन की गति ही मनुष्य का परमार्थ।*
18 जुलाई 2021 जमशेदपुर
जमशेदपुर एवं आसपास के लगभग 4,000 से भी ज्यादा आनंद मार्गी घर बैठे ही वेब टेलीकास्ट से सेमिनार का आनंद लिया
आनंद मार्ग प्रचारक संघ द्वारा आयोजित तीन दिवसीय, द्वितीय चरण प्रथम संभागीय सेमिनार के तीसरे दिन के अवसर पर आनंद मार्ग के वरिष्ठ आचार्य संपूर्णानंद अवधूत ने
*जड़ और चेतन विषय* पर आन लाइन क्लास में दार्शनिक शब्दों जैसे-जड़ चेतन,अग्रया बुद्धि,, साधना, शिव और शक्ति, आत्मा और परमात्मा, इन्द्रियों की अंतर्मुखी एवं वाह्यिक गति,प्रपंचसृष्ट जगत का स्वभाव,मन और मस्तिष्क में पार्थक्य इत्यादि की विस्तार से व्याख्या करते हुए बहुत ही सरल भावों में समझाया। उन्होंने कहा कि सूक्ष्मतम सत्ता को समझने के लिए बुद्धि को सूक्ष्मतम एवं तीक्ष्णतम वना लेना पड़ेगा। सभी बृत्तियों को एक विन्दु पर केन्द्रिभूत करना पड़ेगा। यही है अग्रया बुद्धि। उन्होंने जड़ विज्ञान और आध्यात्म दर्शन में अंतर बतलाते हुए कहा कि जड़ विज्ञान का पक्ष विश्लेषणात्मक है जबकि आध्यात्म दर्शन समन्वयात्मक या संश्लेषणात्मक है। जड़ विज्ञान को जानने वाले है- जड़ वैज्ञानिक एवं आध्यात्म दर्शन को जानने वाले है- अध्यात्मवादी। शिव और शक्ति के बारे में बतलाते हुए उन्होंने कहा कि शक्ति शिव की ही शक्ति है। दोनों का मिलित नाम ही ब्रम्हा है। आत्मा को पाने के लिए इन्द्रियों को अन्तरमुखी गति आवश्यक है। इन्द्रियों के बहिमुर्खी होने कारण है मनुष्य का पशु जीवन का संस्कार एवं पूर्वकालीन पशु मन में अर्जित अभिज्ञता। साधना द्वारा इन्द्रिय गति में परिवर्तन होता है और इन्द्रिय गति पशु भाव की व्यर्थता का अनुभव कर धीरे धीरे चैतन्य भाव की ओर बढ़ती रहती है।यह जगत अध्रुव है अर्थात अस्थिर है।जगत के विकास की प्रत्येक अवस्था परिवर्तन के बीच ही अपना अस्तित्व प्रमाणित करती हुई चलती है।मन और मस्तिष्क में अंतर बतलाते हुए आचार्य ने कहा कि सुख बोध एवं दुःख बोध या मनन एक मानसिक क्रिया है।
मस्तिष्क मन नहीं है। मस्तिष्क एक जड़ वस्तु है।मन यदि यन्त्रि
है तो मस्तिष्क है – यन्त्र।मन सुक्ष्म है, मस्तिष्क स्थूल है। स्मृतियां, विचार,मनन आदि मन के गुण हैं। ये मस्तिष्क के गुण नहीं है। मृत्यु के बाद भी मन अपने अभुक्त संस्कारों के साथ विद्यमान रहता है।जो हमारे जाग्रत, स्वप्न, सुसुप्ति-इन तीनों अवस्थाओं के साक्षी रुप में अधिनस्थ रहते है वे ही परमपुरुष पुरुषोत्तम हैं।जिसकी उपस्थिति से देह और मन का प्रत्येक कर्म निर्वाहित हो रहा है उसे ही आत्मा कहते हैं।चरम नियंत्रक सत्ता को जानने और समझने के लिए एक मात्र उपाय है- साधना।