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    सबको एक साथ लेकर चलने में ही समाज की सार्थकता है

    Devanand SinghBy Devanand SinghMay 22, 2024No Comments6 Mins Read
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    सबको एक साथ लेकर चलने में ही समाज की सार्थकता है

    हर एक मनुष्य को शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक क्षेत्र में विकसित होने का अधिकार है

    अगर व्यक्ति का लक्ष्य समान है तो उनके बीच एकता लाना संभव है। आध्यात्मिक भावधारा का सृजन कर विश्व बंधुत्व के आधार पर एक मानव समाज की स्थापना को वास्तविक रूप दिया जाना संभव है।

     

    श्री श्री आनंदमूर्ति जी का जन्म 1921 में वैशाखी पूर्णिमा के दिन बिहार के जमालपुर में एक साधारण परिवार में हुआ था। परिवार का दायित्व निभाते हुए वे सामाजिक समस्याओं के कारण का विश्लेषण उनके निदान ढूंढने एवं लोगों को योग, साधना आदि की शिक्षा देने में अपना समय देने लगे। सन् 1955 में उन्होंने आनंद मार्ग प्रचारक संघ की स्थापना की। श्री श्री आनंदमूर्ति जी ने समझा कि जिस जीवन मूल्य (भौतिकवाद) को वर्तमान मानव अपना रहे हैं वह उनके न शारीरिक व मानसिक और न ही आत्मिक विकास के लिए उपयुक्त है अतः उन्होंने ऐसे समाज की स्थापना का संकल्प लिया, जिसमें हर व्यक्ति को अपना सर्वांगीण विकास करते हुए अपने मानवीय मूल्य को ऊपर उठने का सुयोग प्राप्त हो। उन्होंने कहा कि हर एक मनुष्य को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक क्षेत्र में विकसित होने का अधिकार है और समाज का कर्तव्य है कि इस अधिकार को ठीक से स्वीकृति दें। वे कहते थे कि कोई भी घृणा योग्य नहीं, किसी को शैतान नहीं कह सकते। मनुष्य तब शैतान या पापी बनता है जब उपयुक्त परिचालन पथ निर्देशन का अभाव होता है और वह अपनी कुप्रवृतियों के कारण बुरा काम कर बैठता है।

     

     

    यदि उनकी इन कुप्रवृतियों को सप्रवृतियों की ओर ले जाया जाए तो वह शैतान नहीं रह जाएगा। हर एक–मनुष्य देव शिशु है इस तत्व को मन में रखकर समाज की हर कर्म पद्धति पर विचार करना उचित होगा। अपराध संहिता या दंड संहिता के विषय में उन्होंने कहा कि मनुष्य को दंड नहीं बल्कि उनका संशोधन करना होगा। उनका कहना था कि सबको एक साथ लेकर चलने में ही समाज की सार्थकता है। यदि कोई यात्रा पथ में पिछड जाये, गंभीर रात की अंधियारी में जब तेज हवा का झोंका उसकी दीप को बुझा दे तो उसे अंधेरे में अकेले छोड़ देने से तो नहीं चलेगा। उसे हाथ पकड कर उठाना होगा अपने प्रदीप की रोशनी से उसे दीप शिखा को ज्योति करना होगा। अगर कोई अति घृणित कार्य किया है तो उसका दंड उसे अवश्य मिलेगा पर उससे घृणा करके उसे भूखे रख कर मार डालना मानवता विरोधी कार्य होगा। उनके विचारानुसार हर व्यक्ति का लक्ष्य एक ही है, सभी एक ही लक्ष्य पर पहुंचना चाहते हैं अपनी सूझ एवं समझदारी एवं परिस्थिति के अनुसार अलग-अलग रास्ता अपनाते हैं। कोई धनोपार्जन, कोई सेवा का पथ अपनाते हैं, लेकिन हर प्रयास के पीछे मौलिक प्रेरणा एक ही रहती है,शाश्वत शांति की प्राप्ति, पूर्णत्व की प्राप्ति । अगर व्यक्ति का लक्ष्य समान है तो उनके बीच एकता लाना संभव है। आध्यात्मिक भावधारा का सृजन कर विश्व बंधुत्व के आधार पर एक मानव समाज की स्थापना को वास्तविक रूप दिया जाना संभव है।

     

     

    *नव्यमानवता :*

    उन्होंने देखा मानव भिन्न-भिन्न प्रकार कुठांओं ग्रसित है। जिस कारण वह अपना तथा जगत के भिन्न जीवों के बीच सही संबंध को समझ पाने में सफल नहीं हो रहा है। इस तरह की कुंठा मानव समाज को भिन्न-भिन्न प्रकार परस्पर विरोधी गुटों में विभाजित कर रही है। विरोध के कारण समाज को काफी नुकसान हो रहा है। यद्यपि एक और वृहद मानवधारा है, जिसे मानवतावाद कहते हैं, लेकिन मानवता नाम पर जो कुछ हो रहा है, वहां भी भू-भाव एवं जाति, मजहब भाव प्रवणता ही छुपे रूप में प्रबल है। मानवता की इसी कमी को दूर करने के उद्देश्य से श्री श्री आनंदमूर्ति जी ने समाज संबंधी वर्तमान धारणा को वृहत कर पशु-पक्षी, पेड-पौधे को भी भाई-बहन के रूप में समान समाज

    के रूप में देखा। जिसे नव्य मानवता वाद कहते हैं। मानवता वाद ही चरम आर्दश नहीं है। मनुष्य के अलावा पृथ्वी पर अन्य जीव भी हैं।

    *प्रउत :*
    श्री श्री आनंदमूर्ति जी अपने आर्थिक एवं सामाजिक सिद्धांत का प्रतिपादन करते समय मानव जाति की उन तमाम आवश्यकताओं पर जोर दिये जिस पर मनुष्य का अस्तित्व एवं मूल्य दोनों निर्भर करता है एवं उसके मनोवैज्ञानिक पक्ष पर भी विचार किया। उनका सामाजिक लाभ जन-जन तक पहुंचाना चाहते हैं। ‘ प्रउत ‘ आर्थिक संचालन का विकेंद्रीकरण चाहता है कारण आम जनता को आर्थिक लाभ तभी मिल सकता है जब हर स्तर पर उसकी भागीदारी हो जनता की आर्थिक प्रक्रिया में भागीदारी के लिए को-ऑपरेटिव उपयुक्त है। अतः प्रउत में सहकारिता को अहमियत दिया गया है इस तरह आर्थिक प्रगति को दुरूस्त करने के साथ-साथ उसमें शोषण के सभी द्वारों को बंद करने का प्रयास किया गया है। श्री श्री आनंदमूर्ति जी के अनुसार हर प्रकार की अभिव्यक्ति मानव मात्र को अपने-अपने तरह से प्रभावित करती है।

     

     

    *यौगिक चिकित्सा पद्धति :* श्री श्री आनंदमूर्ति जी के अनुसार जितनी भी प्रचलित चिकित्सा प्रणाली है, उनमें कुछ खासियत है। खास-खास बीमारी का इलाज खास-खास पद्धति में है एवं रोग के अनुरूप उसका इलाज उपयुक्त प्रणाली से होता है। इस दिशा में उन्होंने यौगिक चिकित्सा एवं द्रव्य गुण नामक पुस्तक लिख बहुत से असाध्य रोगों के इलाज के लिए नुस्खा दिया. उन्होंने माइक्रोवाइटा नाम सूक्ष्म जैविक सत्ता के बारे में बताकर चिकित्सा प्रणाली को अधिक प्रभावशाली बनाने का प्रयास किया.

    *प्रभात संगीत :* संस्कृति समाज की रीढ़ होती है श्री श्री आनंदमूर्ति जी ने पांच हजार अठारह की संख्या में प्रभात संगीत लोरी सुनाकर संतप्त मानवता को सांत्वना प्रदान कर आत्मबल से उद्वेलित कर उसे उल्लासित और उत्साहित किया है।

     

     

    *आनंद मार्ग यूनिवर्सल रिलीफ टीम :* सन् 1970 में श्री श्री आनंदमूर्ति जी ने एमट की स्थापना की ताकि दुनिया में पीड़ित मानवता की सेवा हो सके. एमट के कार्यकर्ता पूरे विश्व में सेवा मूलक कार्यों के बल पर अपनी पहचान बना पाए। सोमालिया

    में राहत कार्य को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने एमट को मान्यता दी। आनंद मार्ग के संस्थापक भगवान श्री श्री आनंद मूर्ति जी ने मानव समाज के कल्याण के
    लिए विशाल दर्शन एवं विशाल संस्था और इसमें व्यवहारिक रूप देने के लिए हजारों जीवन दानी संन्यासियों को तैयार किया

     

    सुनील आनंद (9934169429)
    आनंद मार्ग प्रचारक संघ

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