भूमिहारों का नरसंहार होता रहा और सुशील मोदी जी आपकी राजनीति चमकती रही
सुशील मोदी जी!भूमिहारों के प्रति इमोशनल कार्ड मतलब!
देवानंद सिंह
राष्ट्र संवाद नजरिया: भूमिहारों का नरसंहार होता रहा और सुशील मोदी जी आपकी राजनीति चमकती रही, भूमिहारों ने खून से विधानसभा की सीढ़ियों को धोया है ज़रा याद करें —— बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी द्वारा ट्वीट के जरिए दिए गए बयान-भूमिहार समाज को पहली बार भाजपा ने दिया कैबिनेट मंत्री का पद और लालू-राबड़ी राज में चेहरा देखकर बनाया जाता था मंत्री व जाति पता कर किए गए नरसंहार और भूमिहारों को पलायन के लिए मजबूर किए जाने संबंधी बयान ने बिहार में सियासी गर्माहट बढ़ा दी है। राजद तो इसको लेकर उन्हें निशाने पर ले ही रहा है बल्कि बिहार-झारखंड की राजनीति में गहरी पकड़ रखने वाले लोग भी सुशील कुमार मोदी के बयान से इत्तेफाक नहीं रखते हैं। यह बात सही भी है, जिस तरह का बयान सुशील मोदी ने दिया है, उससे साफतौर पर लगता है या तो सुशील मोदी को जानकारी का अभाव है या फिर वह जानबूझकर इस तरह का बयान दे रहे हैं, क्योंकि यह उनके गिरते वर्चस्व की भी तिलमिलाहट है। इसीलिए वह भूमिहारों के प्रति इमोशनल कार्ड खेलकर उन्हें लामबंद करना चाहते हैं। उनके लिए यह इसीलिए जरूरी हो गया है क्योंकि भूमिहारों में भाजपा और एनडीए सरकार के प्रति खूब नाराजगी है। भूमिहार भाजपा के खिलाफ लामबंद हो रहे हैं। क्योंकि कैलाशपति त्रिपाठी जैसे नेताओं ने जिस तरह बिहार में भूमिहारों को लालू की राजद से अलग कर भाजपा को एक मुकाम तक पहुंचाया, आज या फिर जब सुशील मोदी बिहार की सत्ता की मलाई काट रहे थे, तब लगातार भूमिहार हांसिए पर जाते रहे। इतिहास गवाह है कई नेता इनके शिकार हुए जिस भाजपा को भूमिहारो ने खून से सींचा आज वही दल में हाशिये पर हैं
लेकिन अब उन्हें लगता है कि अब फिर से भूमिहारों को लामबंद करने का वक्त आ गया है, उनके बिना अब बिहार में भाजपा की दाल गलने वाली नहीं है। इस परिस्थिति में जाहिर तौर पर सवाल उठता है कि जिन भूमिहारों ने भाजपा को बिहार में खड़ा किया, उसके साथ भाजपा लगातार सौतेला व्यवहार करते क्यों आई है ? भूमिहारों को हांसिये पर लाने के बाद यह उम्मीद कैसे है कि वो फिर से उनके साथ खड़े होंगे। अगर, सुशील मोदी यह सोचते हैं कि केवल भाजपा ने ही उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाकर बहुत बड़ा उपकार किया है तो यह उनकी गलत फहमी है। पहले भी बहुत से नेता रहे, जो कैबिनेट मंत्री बने। जब भाजपा का नामोनिशान नहीं था एवं जनसंघ एक सीट तक जीतने के लिए तरस रहा था, उस वक्त भी भूमिहार समाज से तारकेश्वरी सिन्हा केंद्रीय मंत्रिमंडल में थीं। इसके अलावा, जब जनसंघ जनता पार्टी में विलय होकर अस्तित्व खो चुका था, उस समय भी मोरारजी देसाई सरकार के कैबिनेट में लोकबंधु बाबू राजनरायण सिंह जी स्वास्थ्य मंत्री, चौधरी चरण सिंह सरकार के कैबिनेट में बेगूसराय से ही श्यामनंदन मिश्रा विदेश मंत्री तक बन चुके थे। इन तमाम लोगों के अलावा कांग्रेस की सरकारों में एलपी शाही, कृष्णा शाही, ललित विजय सिंह, कल्पनाथ राय सहित दर्जनों लोग केंद्र में मंत्री बन चुके हैं। लिहाजा, यह कहना बिल्कुल गलत है कि केवल भाजपा ने केंद्र में कैबिनेट मंत्री बनाया है। सुशील मोदी जैसे पुराने नेता को कम से कम तथ्यों को ध्यान में रखते हुए बयान देना चाहिए। अगर, वह केवल भूमिहारों को गोलबंद करने भर के लिए यह बयान दे रहे हैं तो भी इसका कोई मतलब नहीं बनता है, क्योंकि जब भाजपा या सुशील मोदी का खुद का समय था तो उन्होंने हर स्तर पर भूमिहारों के साथ वादाखिलाफी की, लेकिन अब जब भूमिहार भाजपा के खिलाफ लामबंद हो रहे हैं और राज्य में भाजपा की नैया डूबती हुई नजर आ रही है तो उन्हें एक बार फिर भूमिहार याद आने लगे हैं। सुशील मोदी का भूमिहारों को याद करने का सबसे बड़ा कारण यही है कि वह पूरी तरह जानते हैं कि वह भूमिहार की लाठी के बिना बिहार में राजनीति कर ही नहीं सकते और बिहार में भूमिहार के बिना भाजपा का अस्तित्व ही क्या है? लिहाजा सुशील मोदी के ट्वीट का यही मतलब निकलता है कि यह सारा खेल उनकी बिहार में फिसलते वोटर को फंसाने भर की चाल है, क्योंकि बिहार में भूमिहार पूरी तरह संगठित हो रहे हैं। उनके साथ ब्राह्मण और राजपूत भी बीजेपी के खिलाफ होते नजर आ रहे हैं। कभी मंच तो कभी परशुराम जयंती के जरिए भूमिहार समाज ने अपनी एकजुटता दिखाने की कोशिश की है। इसका उदाहरण बोचहां विधानसभा उप-चुनाव को भी ले सकते हैं, जब उस दौरान इस समाज की संगठनात्मक एकजुटता दिखी। गत रविवार को पटना में भूमिहार ब्राह्मण सामाजिक फ्रंट ने सम्मेलन किया गया था। इसके आयोजकों में बीजेपी के नेता पूर्व मंत्री सुरेश शर्मा, प्रकाश राय से लेकर सुधीर शर्मा, पूर्व मंत्री वीणा शाही और अजीत कुमार थे। इस सम्मेलन में भी बीजेपी को जमकर कोसा गया। कहा गया कि बीजेपी ने भूमिहारों और सवर्णो के वोट को बपौती समझ लिया गया था। अब ये बपौती खत्म हो चुकी है। वोट देकर सरकार भूमिहार बना रहे थे और सत्ता की मलाई बीजेपी के खास लोग ही खा रहे थे, जिसकी वजह से समाज उपेक्षित है और पिछड़ता जा रहा है। भूमिहारों की यह नाराजगी सुशील मोदी ही नहीं जानते हैं बल्कि भाजपा हाईकमान भी जनता है। क्योंकि राज्य में भूमिहारों का जो गणित भाजपा ने सेट किया है, वह चौंकाने वाला है। जिस भूमिहार समाज से बिहार में 19 सांसद एवं 57 विधायक हुआ करते थे, उस समाज को बीजेपी ने एक तरह से सिमटा दिया है। आलम यह रहा कि विधानसभा में महज 15 टिकट एवं लोकसभा में मात्र एक टिकट दिया गया। क्या यह भूमिहारों का अपमान नहीं था? मंडल कमंडल आरक्षण के आग के दौरान, जो भूमिहारों का मुश्किल दौर था, उस वक्त भी अकेले बिहार से समाज से 6 सांसद थे। इसीलिए न तो भाजपा को भूलना चाहिए था और न ही सुशील मोदी को। जिन भूमिहारों की बदौलत भाजपा ने राज्य में मुकाम हासिल किया, सत्ता के शीर्ष पर रहते हुए भूलना नहीं चाहिए था। उन्हें उचित सम्मान देना चाहिए था, लेकिन भाजपा भी और सुशील मोदी भी केवल अपनी ही राजनीति चमकाते रहे और भूमिहार भाजपा की नजर में सिमटते रहे। जिस दौर में भूमिहारों का नरसंहार होता रहा, तब भी सुशील मोदी ने अपनी राजनीति चमकाने के अलावा कुछ और नहीं किया। भूमिहारों ने खून से विधानसभा की सीढ़ियों को धोया है, क्या इसे सुशील मोदी भूल गए हैं ? इसीलिए सुशील मोदी केवल रणनीति के तहत इस तरह की बयानबाजी कर रहे हैं, जो पूरी तरह तथ्यहीन और हास्यास्पद तो है ही बल्कि उनकी कम समझ को भी इंगित करने वाला है।