दोनों ही चल रहे हैं मगर बेदिली के साथ
तुम भी किसी के साथ हो हम भी किसी के साथ
बेशक समंदरों का सफ़र ज़हन में रखो
ये भी कि इक कहानी शुरू थी नदी के साथ
तुम भी वफ़ा के कौल पे काईम न रह सके
हम भी निकल लिये थे किसी अज़नबी के साथ
कोशिश में सब लगे हैं , कहे जायें देवता
बेचारगी बहुत है़ यहाँ आदमी के साथ
दो गज ज़मीन तक ही ज़रूरत तमाम है़
कितना जुटा रहे हो मियाँ ज़िन्दगी के साथ
आँखों में ख़ून ख़ून हैं सूरज की किर्चियाँ
कुछ तो ग़लत हुवा है़ नयी रौशनी के साथ
हम दोस्त भी हुए थे बिना ताम-झाम के
दुश्मन भी हो रहे हैं उसी सादगी के साथ ।
…शैलेन्द्र पान्डेय शैल …