यूसीआईएल में तबादला नीति पर उठे गंभीर सवाल, बाहरी प्रभाव और चयनात्मक कार्रवाई की चर्चाएं तेज
राष्ट्र संवाद संवाददाता
यूसीआईएल में रोटेशन पॉलिसी को लेकर उठ रहे सवालों के बीच मंगलवार शाम सामने आए प्रशासनिक फैसलों ने एक बार फिर प्रबंधन की मंशा, निष्पक्षता और पारदर्शिता पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़े कर दिए हैं। सूत्रों के अनुसार, सीएमडी के पूर्व पर्सनल असिस्टेंट सुरोजित दास का तबादला तो कर दिया गया, लेकिन उन्हें जादूगोड़ा स्थित सीएमडी कार्यालय के ठीक बगल में स्थित कॉरपोरेट ऑफिस में ही पदस्थापित किया गया है। इस निर्णय को कंपनी के भीतर वास्तविक रोटेशन के बजाय कागजी और दिखावटी कार्रवाई के रूप में देखा जा रहा है।
कर्मचारियों और जानकारों का कहना है कि जिस अधिकारी को लगभग 20 वर्षों तक एक ही सेंसिटिव पद पर बने रहने के बाद हटाया गया, यदि उसे उसी परिसर और उसी प्रभाव क्षेत्र में रखा जाता है, तो इससे प्रशासनिक नियंत्रण या प्रभाव में कोई ठोस बदलाव नहीं होता। इसी कारण यह चर्चा तेज है कि यह कदम प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) और परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई) को यह दिखाने के लिए उठाया गया कि प्रबंधन ने कार्रवाई की है, जबकि जमीनी स्तर पर व्यवस्था लगभग पहले जैसी ही बनी हुई है।
इसी क्रम में काशीनाथ चौधरी की नई नियुक्ति को लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। वे पहले महाप्रबंधक के पीए, फिर नरवा स्टोर, उसके बाद डायरेक्टर टेक्निकल के पर्सनल असिस्टेंट रह चुके हैं और अब उन्हें सीएमडी का पर्सनल असिस्टेंट नियुक्त किया गया है। सूत्रों के मुताबिक यह पूरा घटनाक्रम पिछले लगभग छह महीनों के भीतर हुआ है। इतने कम समय में बार-बार तबादला और वही प्रभाव क्षेत्र बनाए रखना निष्पक्ष रोटेशन पॉलिसी पर संदेह पैदा करता है और प्रबंधन के कुछ चुनिंदा व्यक्तियों के प्रति पक्षपातपूर्ण रवैये की ओर इशारा करता है।
यूसीआईएल के भीतर यह तुलना भी की जा रही है कि एक ओर कई अधिकारियों और कर्मचारियों को दूरस्थ और कठिन परियोजनाओं में भेज दिया गया, वहीं कुछ मामलों में तबादला महज 10–15 मीटर की दूरी तक सीमित रह गया। सूत्र बताते हैं कि कुछ माह पहले एस.के. बर्मन का जादूगोड़ा से तुमरापल्ली तबादला कर दिया गया था, जबकि उन्होंने अपनी मां की गंभीर बीमारी का हवाला देते हुए स्थानांतरण स्थगित करने का अनुरोध किया था। इसी तरह प्रभास रंजन, अशोक रथ, सुकुमार दास, डी. हांसदा, गिरीश गुप्ता, निराली चौहान सहित कई अधिकारियों को एक परियोजना से दूसरी परियोजना में भेजा गया। इन उदाहरणों के बीच यह सवाल और गहराता जा रहा है कि कुछ विशेष पदों और व्यक्तियों के मामले में प्रबंधन का रवैया अलग क्यों नजर आता है।
कंपनी के भीतर बाहरी प्रभाव को लेकर भी चर्चाएं जोरों पर हैं। सूत्रों का कहना है कि मुंबई और हैदराबाद में बैठे कुछ पूर्व शीर्ष अधिकारियों और वरीय प्रबंधन से जुड़े व्यक्तियों का प्रभाव आज भी यूसीआईएल की कार्यप्रणाली में महसूस किया जा रहा है। अधिकारियों और संयुक्त यूनियन के अनुसार, उन्हीं भरोसेमंद चेहरों को बार-बार सीएमडी और डायरेक्टर (टेक्निकल) जैसे पदों के आसपास बनाए रखा जा रहा है, जबकि रोटेशन पॉलिसी की मूल भावना इससे अलग संकेत देती है। यदि ये चर्चाएं तथ्यात्मक रूप से सही हैं, तो यह यूसीआईएल की प्रशासनिक स्वायत्तता और निर्णय प्रक्रिया पर भी गंभीर सवाल खड़े करती हैं।
इस पूरे मामले को भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, यानी ‘कानून के समक्ष समानता’, और सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों में लागू रोटेशन नीति के संदर्भ में भी देखा जा रहा है। प्रशासनिक विशेषज्ञों का कहना है कि रोटेशन का उद्देश्य केवल स्थान परिवर्तन नहीं, बल्कि सत्ता, सूचना और प्रभाव के केंद्रीकरण को रोकना होता है। यदि तबादले केवल कागज़ों तक सीमित रह जाएं और व्यवहार में कोई ठोस बदलाव न आए, तो नीति की मूल भावना पर प्रश्न उठना स्वाभाविक है।
सूत्रों का यह भी कहना है कि इन सबके बीच यूसीआईएल की कुछ परियोजनाओं में उत्पादन में कमी की बातें सामने आ रही हैं, लेकिन प्रबंधन की प्राथमिकताएं उत्पादन सुधार और संस्थागत मजबूती की बजाय आंतरिक व्यवस्थाओं को यथावत बनाए रखने पर केंद्रित दिख रही हैं।
फिलहाल यूसीआईएल में यह सवाल और गहराता जा रहा है कि क्या तबादला नीति वास्तव में समान, निष्पक्ष और नियमसंगत है, या फिर इसे चुनिंदा मामलों में अलग-अलग तरीके से लागू किया जा रहा है। अब निगाहें पीएमओ और डीएई स्तर पर चल रही प्रक्रिया पर टिकी हैं कि क्या इस प्रकरण में कोई ठोस और प्रभावी निर्णय सामने आएगा, या यह पूरा मामला भी कागज़ी सुधार तक ही सीमित रह जाएगा। साथ ही, कई अधिकारियों द्वारा यह भी कहा जा रहा है कि 20 वर्षों से अधिक समय से एक ही पद पर टिके अन्य अधिकारियों पर भी कार्रवाई की मांग लगातार उठ रही है, क्योंकि इससे सीएमडी की छवि पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।


