. “सपनो के पंख” की पुस्तक समीक्षा “मनीषा सहाय सुमन” के द्वारा
पुस्तक ….. “सपनो के पंख”
लेखिका…वीणा पाण्डेय ‘भारती’
संवेदनशील लेखनी की धनी सखी वीणा पांडेय भारती जी का प्रथम प्रकाशित काव्य संग्रह “सपनो के पंख” मानवीय संवेदनाओं की जागृत अभिव्यक्ति है। लेखनी को माध्यम बना जन-जन के हृदय में मर्माआहत होती संवेदनाओ को इन्होंने बड़ी बारीकी से अपनी पुस्तक में उतारने का सार्थक प्रयास किया है । कवयित्री की रचनाओं में हर साधाहरण व्यक्ति को सहज रूप से जोड़ने की क्षमता है । कवयित्री के मन -मस्तिष्क में उठते विचार और उतार-चढ़ाव की झलक स्पष्टता इनकी कविताओं में दिखाई पड़ती है । कहीं-कहीं वेदना की गहरी अभिव्यक्ति है ,तो कहीं-कहीं कवयित्री मन गंभीर सवालों को लिए समाज के सामने खड़ा दिखाई देता है ,तो कहीं कोमल भावनाओं का अंकुरण के बीज का प्रस्फुटन बेहद सुखानुभूति प्रदान करता है ।
“प्रेमी जोड़े मन को भाते हैं
आंखों ही आंखों में प्यार
करना सीख लाते हैं।”
अपने इस संग्रह में वीणा जी ने मानव हृदय के हर पहलू को संजोने का सार्थक प्रयास किया है किसी भी रचनाकार का प्रथम संग्रह उसकी प्रथम लेखकिय अनुभूति का परिचायक होती है। कवयित्री वीणा जी ने विभिन्न विषयों को समाहित कर यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि साहित्य उनके हृदय में समाहित है और समाज उपयोगी लेखन करने को प्रतिबद्ध लेखनी कह उठती है।
” विधायक -बहस और
कानून तलाश रहा कंधा वक्त
की तेरहीं समेट लेती है
आक्रोश, आग और पीड़ा को”
दामिनी शीर्षक से संबोधित उनकी यह कविता समाज के सामने गहरे सवाल छोड़ने में सफल होती है ,वहीं मर्माआहत होती नारी की संवेदनाओं को भी वह बखूबी दिखाने में सफल रहती हैं। अपनी कई कविताओं में नारीवाद के विषय को गंभीरता से उठाने में वीणा जी की लेखनी पूर्णता सफल रही है। अनकही संवेदना को वयक्त करती लेखनी कहती है—
” काश तुम एक मूर्तिकार होते
महसूस कर पाते
मूर्ति की व्याख्या सुन पाते
पत्थर के दर्द”
वहीं सामाजिक व्यवस्था पर भी उनकी लेखनी कुठाराघात करते हुए ,सफलता के साथ गंभीर प्रश्नों से साक्षत्कार करती दिखाई देती है ।
“कोमल सपनों को संजोए
कर्तव्यों की सीढ़ियों पर
रख पाओ पहुंच सके प्रियजनों
की आकांक्षाओं के गुबंद पर”
सामाजिक सरोकार के बीज का अंकुरण उनकी कविताओं में दिखाई देता है , वहीं नारी दृष्टिकोण को आधार देती हुई रचनाएं , कुरीतियों पर सफलता से कुठाराघात करते हुए वह लिखतीं है—
“शिकार वासना कि
बोझ उठाती मातृत्व का
हेय दृष्टि से देखी जाने वाली
समाज से अपमानित औरत”
संवेदनाओं से परिपूर्ण लेखनी सामाजिक व्यवस्थाओं को चुनौती दे, समाज के नियमों को लाँघ ,नये दृष्टिकोण को सामने रखने की कोशिश करती है—-
” दायरों में सिमटी जिंदगी
अब नहीं चाहती हूं मैं “
वहीं माँ के विषय पर लिखतीं है”
“कोई भी माँ अनपढ़ नही होती है,
जहाँ हम उलझे होते हैं
जीवन के गणित में,चुटकी बजाते सारे प्रश्ंनो
का समाधान बता देती है।
अतः जीवन के कटु सत्य को स्वीकार करती उनकी लेखनी की प्रथम अभिव्यक्ति अत्यधिक सशक्त और साहित्यिक प्रवृत्ति की झलक प्रस्तुत करती है । उनकी कविताओं में प्रकृति प्रेम की झलक है ,तो कहीं अंदर उन्मुक्त कवयित्री की झलक भी अनुभूत होती है। कवयित्री का अपने जज्बातों ,एहसासों को सपनों के पंख लगा लेखनी से उड़ान भरने का सफल व सार्थक प्रयास अत्यंत सराहनीय है। सखी वीणा पांडेय भारती जी को इस कृति के लिए अत्यंत बधाई देते हुए ,इस आशा के साथ अपनी लेखनीे को विराम देती हूं कि वह आने वाले समय में अपने लेखन में मानवीय संवेदनाओं की प्रखरता को बनाए रखेगीं और समाज उपयोगी लेेखन को प्रबाध रखेंगी।
अस्तु
-मनीषा सहाय ‘सुमन’
लेखिका ,कवयित्री,समाज सेविका
राँची ,झारखंड
मो….८६५१७१८९९२