अखंड भारत पर राज करने वाले सम्राट अशोक की जयंती क्यों नहीं…??
देवानंद सिंह
भारत में हर किसी बड़ी शख्सियत की जयंती मानने का चलन है। पार्टियों से जुड़े नेताओं की जयंती संबंधित पार्टियां अपने-अपने हिसाब से मनाती हैं। देश में कुछ ऐसी हस्तियां भी हैं, जिनकी जयंती सभी राजनीतिक पार्टियां मनाती हैं, लेकिन आपको जानकर बेहद आश्चर्य होगा कि हमारे देश में सम्राट अशोक की जयंती नहीं मनाई जाती है। ये वही सम्राट अशोक हैं, जिनके बारे में हम बचपन से किताबों में पढ़ते आए हैं। लेकिन आज तक यह प्रश्न अनुत्तरित है कि आखिर देश में सम्राट अशोक की जयंती क्यों नहीं बनाई जाती है ? सम्राट अशोक के बारे में हम बचपन से यही पढ़ते आए हैं कि वह महान थे।इतिहासकारों ने उनके नाम के साथ महान लिखा है। ऐसा भारत के इतिहासकारों ने ही नहीं किया है बल्कि उनके लिए महान शब्द दुनियाभर के इतिहासकारों ने लिखा है। सबसे बड़ी बात यह है कि सम्राट का राज चिन्ह “अशोक चक्र” भारतीय ध्वज में भी लगते हैं। सम्राट का राज चिन्ह “चारमुखी शेर” को भारतीय राष्ट्रीय प्रतीक मानकर सरकार चलाते हैं और इसी के अंतर्गत “सत्यमेव जयते” को अपनाया गया है। और भी बहुत सारी खूबियां इनके संबंध में हैं। हम सब जानते हैं कि देश में सेना का सबसे बड़ा युद्ध सम्मान सम्राट अशोक के नाम पर ही “अशोक चक्र” दिया जाता है। इनसे पहले या बाद में कभी कोई ऐसा राजा या सम्राट नहीं हुआ, जिसने अखंड भारत (आज का नेपाल, बांग्लादेश, पूरा भारत, पाकिस्तान, और अफगानिस्तान) में जितने बड़े भूभाग पर एक-छत्र राज किया हो। यानि इन्होंने ही अखंड भारत में राज किया। यह बहुत बड़े गौरव का विषय है। बहुत कम लोगों को पता होगा कि सम्राट अशोक के ही समय में 23 नामी विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई थी, जिसमें तक्षशिला, नालन्दा, विक्रमशिला, कंधार जैसे विश्वविद्यालय मुख्य रूप से शामिल थे। ये विश्वविद्यालय इतने प्रख्यात हुए कि इन्हीं में विदेश से छात्र उच्च शिक्षा पाने भारत आया करते थे। इनकी अन्य विशेषताओं की बात करें तो ये वही सम्राट हैं, जिनके शासनकाल को विश्व के बुद्धिजीवी और इतिहासकार भारतीय इतिहास का सबसे स्वर्णिम काल मानते हैं। इन्हीं सम्राट के शासन काल में भारत विश्व गुरु था, सोने की चिड़िया था, जनता खुशहाल और भेदभाव-रहित थी। आज यही कल्पना की जाती है कि भारत दोबारा कब सोने की चिड़िया बनेगी ? सम्राट अशोक के शासनकाल में बेहतर रोड ढांचे पर भी खूब ध्यान दिया गया। बता दें कि इन्हीं के शासनकाल में सबसे प्रख्यात महामार्ग “ग्रेड ट्रंक रोड” जैसे कई हाईवे बने, 2,000 किलोमीटर लंबी पूरी सड़क पर दोनों ओर पेड़ लगाये गए, सरायें बनायीं गईं, मानव तो मानव, पशुओं के लिए भी प्रथम बार चिकित्सा घर (हॉस्पिटल) खोले गए, पशुओं को मारना बंद करा दिया गया। सम्राट अशोक का जन्म 4 मार्च वर्ष 302 ई. पूर्व में हुआ था और इनका राजतिलक 268 ई. पूर्व में और निधन 232 ई. पू में हुआ था। इनके पिताजी का नाम बिन्दुसार और माता का नाम सुभद्राणी था। इनकी और भी कई विराट कहानियां इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। ऐसे में, सवाल उठता है कि जब आज देश में शख्सियतों का जन्मदिन मनाने का चलन है तो फिर ऐसे महान सम्राट अशोक की जयंती भी मनाई जानी चाहिए, वह किसी एक पार्टी के नेता भी नहीं थे, बल्कि पूरे भारत के सिरमौर रहे हैं। इस पर आश्चर्य होता है कि अखंड भारत पर राज करने वाले सम्राट अशोक की भारत में जयंती नहीं मनाई जाती है और इनके जन्मदिन पर कोई छुट्टी भी नहीं होती है। इसका असर यह होता है कि लोग इतिहास को भूलने लगते हैं, इसीलिए हर किसी को अपने संस्थान में हर साल 4 मार्च को सम्राट अशोक की जयंती मनानी चाहिए। सम्राट अशोक का जन्मदिन नहीं मनाए जाने से यही साबित होता है कि जिन नागरिकों को ये जयंती मनानी चाहिए, वो अपना इतिहास ही भुला बैठे हैं और जो जानते हैं वो न जाने क्यों मनाना नहीं चाहते हैं ? जबकि ये बात भी लगभग सभी जानते हैं कि सिकन्दर की सेना ने चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रभाव को देखते हुए ही लड़ने से मना कर दिया था। बहुत ही बुरी तरह से मनोबल टूट गया था और उसे वापस लौटना पड़ा था, इसीलिए यह हर किसी का प्रयास होना चाहिए कि सम्राट अशोक के जन्मदिन को सम्मान व उत्साह के साथ मनाया जाए।
