डॉ कल्याणी कबीर
तुम्हें जिसके लिए चुना ………
” हम जाएँ कहाँ लेकर
दर्द घाव का ,
लो फिर से आ गया है मौसम चुनाव का ! “
चुनाव की सरगर्मियाँ सर पर हैं । चारों ओर टिकट की दावेदारी और जीत – हार की मारामारी सर उठाए है । जनता मूक होकर सारे तमाशे देख रही है क्योंकि कहने – सुनने का कोई औचित्य यहाँ दिख नहीं रहा है । वैसे भी ये जो पब्लिक है , वो सब जानती है । ये तो तय है कि राजनीतिक परिदृश्य में और चुनावी दंगल के इतिहास में इस बार का चुनाव अपनी एक अमिट छाप छोड़ेगा।
काँटे की टक्कर हर ओर दिखाई दे रही है । भारतीय जनता पार्टी ने अबकी बार पैंसठ पार का जो नारा बुलंद किया है , वह कितना कारगर साबित होगा यह तो भविष्य के गर्भ में है , पर विपक्षी दल का एकजुट होकर चुनाव लड़ना बीजेपी और आजसू पार्टी के लिए एक चुनौती साबित हो सकता है ।
राजनीति की महफ़िल में रंग जमाने के लिए जरूरी है कि दिल मिले न मिले, हाथ मिलाते रहिए । विपक्ष की पार्टियाँ झारखंड मुक्ति मोर्चा, राजद और काँग्रेस के बीच मजबूत एकता देखी जा रही है, जबकि इस तरह की एकजुटता बीजेपी और आजसू के बीच नहीं दिखाई दे रही है । सीट बंटवारे को लेकर पहले भी इन दोनों पार्टियों के बीच तनातनी जारी है । सीटों की संख्या बढ़ाकर भी भाजपा आजसू का दामन पकड़ नहीं पाई और यह गठबंधन धराशायी हो गया।
अब राजनीति के समीकरण में दलों के जीत – हार का हिसाब-किताब कुछ भी हो, जनता – जनार्दन के सवालों और समस्याओं का भूगोल यथावत ही रह जाता है । आवास की समस्या, बेरोजगारी, अशिक्षा, गरीबी जैसी परेशानियों में उलझी जनता के लिए यह चुनाव और मतदान की प्रक्रिया सिर्फ एक दायित्व बनकर रह जाता है ।
खैर ,
तुम्हें जिसके लिए चुना हमने , वो काम भी करना
मिले तुम को अगर फुर्सत हमारा घर जलाने से !
डॉ कल्याणी कबीर