भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था के अद्वितीय योगदानकर्ता रहे डॉक्टर मनमोहन सिंह
देवानंद सिंह
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का निधन भारतीय राजनीति ही नहीं, अर्थव्यवस्था के लिए भी एक बहुत बड़ा क्षति है। उनका योगदान सिर्फ एक प्रधानमंत्री के रूप में ही नहीं, बल्कि एक अर्थशास्त्री और नीति निर्माता के तौर पर भी ऐतिहासिक रहा है।
डॉ. मनमोहन सिंह ने 2004 से 2014 तक प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद, भारतीय राजनीति में एक नयापन आया, क्योंकि वे राजनीति से ज्यादा एक विद्वान और अर्थशास्त्री के रूप में जाने जाते थे। उनके नेतृत्व में भारत ने कई महत्वपूर्ण आर्थिक और सामाजिक योजनाओं की शुरुआत की। डॉ. सिंह ने प्रधानमंत्री बनने के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में विकास के लिए मांग-आधारित मॉडल को खूब बढ़ावा दिया। उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास, रोजगार सृजन और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं पर भी जोर दिया, जो अत्यंत महत्वपूर्ण था। इस दृष्टिकोण से, उन्होंने भारतीय समाज के कमजोर वर्गों को भी विकास की मुख्यधारा में लाने का भरपूर प्रयास किया।
इसके अलावा डॉ. सिंह ने अपनी सरकार के तहत कई महत्वपूर्ण सामाजिक योजनाओं की शुरुआत की, जिनमें “महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना” (MGNREGA) और “राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना” जैसी महत्वपूर्ण योजनाएं शामिल थीं। आरटीआई कानून की शुरुआत भी उनके कार्यकाल के दौरान ही हुई, उनके कार्यकाल में जो योजनाएं लागूं की गईं, उनके माध्यम से लाखों लोगों को रोजगार और सामाजिक सुरक्षा मिली और गरीबों के लिए सरकारी योजनाओं की पहुंच आसान हुई।
डॉ. मनमोहन सिंह की प्रधानमंत्री के रूप में विदेश नीति भी बहुत अधिक प्रभावी रही। उन्होंने भारत को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर एक मजबूत भूमिका दिलाई। 2008 में भारत-अमेरिका परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर करने से भारत ने वैश्विक परमाणु आपूर्ति श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण स्थान हासिल किया। इसके साथ ही, उनके नेतृत्व में भारत ने BRICS (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) समूह में अपनी स्थिति को मजबूत किया, जो आज वैश्विक राजनीति में एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरा है।
डॉ. मनमोहन सिंह का योगदान भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भी अभूतपूर्व रहा है। 1991 में, जब भारत गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा था, तब उन्हें भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर के पद से हटा कर वित्त मंत्री नियुक्त किया गया। इस समय भारतीय अर्थव्यवस्था गंभीर संकट से गुजर रही थी, विदेशी मुद्रा भंडार लगभग समाप्त हो चुका था और देश के ऊपर भारी विदेशी कर्ज था। डॉ. सिंह ने इस संकट को अवसर में बदलने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। उन्होंने 1991 में आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया शुरू की, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था में बड़ा परिवर्तन आया।
1991 के आर्थिक संकट के दौरान डॉ. मनमोहन सिंह ने अपनी नीतियों के माध्यम से भारत को आर्थिक सुधार की दिशा में अग्रसर किया। उन्होंने विदेशों से कर्ज लेने के बजाय, भारत की आंतरिक क्षमता को मजबूत करने के लिए विदेशी निवेश को आकर्षित करने के उपाय किए। उन्होंने निर्यात, आयात और विदेशी निवेश के लिए नीतियां बनाई, जिससे भारत की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हुई। उनके द्वारा किए गए आर्थिक सुधारों ने भारत को एक नया दिशा दी और भारत को वैश्विक मंच पर एक उभरती हुई शक्ति के रूप में स्थापित किया। डॉ. सिंह के नेतृत्व में भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर तेजी से बढ़ी। 1990 के दशक में, भारत की जीडीपी वृद्धि दर 6-7 प्रतिशत के बीच रही, जो उस समय के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी। इसके अलावा, उन्होंने भारतीय बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को मजबूत किया, जिससे भारत की वित्तीय स्थिति सुधरी और विश्व बाजार में उसकी प्रतिस्पर्धा बढ़ी।
डॉ. मनमोहन सिंह के व्यक्तित्व का एक महत्वपूर्ण पहलू उनकी सादगी और नैतिक नेतृत्व भी था। वे हमेशा अपने काम से काम रखते थे और व्यक्तिगत विवादों से दूर रहते थे। उनके नेतृत्व में सरकार में पारदर्शिता और जिम्मेदारी का स्तर ऊंचा था। उनके नेतृत्व में भ्रष्टाचार की समस्या को नियंत्रित करने की कोशिश की गई, हालांकि कुछ विवाद उनके समय में भी हुए, लेकिन उनके व्यक्तिगत आचार-व्यवहार और ईमानदारी पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता।
उनके निधन से निश्चित रूप से भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था के लिए एक अनमोल क्षति हुई है। उनके जैसा कुशल अर्थशास्त्री और विवेकशील नेता भारतीय राजनीति में अब दुर्लभ प्रतीत होता है। उन्होंने देश को एक मजबूत अर्थव्यवस्था की दिशा में आगे बढ़ाया और उनके नेतृत्व में भारत ने वैश्विक मंच पर अपनी पहचान बनाई। आज जब देश आर्थिक मंदी और राजनीतिक अस्थिरता का सामना कर रहा है, तो डॉ. सिंह की कमी और उनके योगदान की याद और भी प्रासंगिक हो गई है।
उनकी आत्मीयता, उनके निर्णयों की स्थिरता और उनके दूरदर्शी दृष्टिकोण की याद भारतीय राजनीति और समाज में हमेशा बनी रहेगी। उनकी सलाह, उनकी नीतियों और उनके नेतृत्व का कोई स्थायी विकल्प अब तक नहीं उभरा है। उनके निधन से भारतीय राजनीति में एक विशाल शून्य उत्पन्न हो गया है, जिसे भर पाना आसान नहीं होगा।
डॉ. मनमोहन सिंह का जीवन एक प्रेरणा है और उनका योगदान भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा। उनका निधन सिर्फ एक व्यक्ति की कमी नहीं है, बल्कि एक पूरे युग की समाप्ति का प्रतीक है। उनकी योजनाओं, उनके दृष्टिकोण और उनके कार्यों की छाप भारत पर हमेशा बनी रहेगी, और उनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शन का कार्य करेगी।