निर्माण की चुनौतियां और भविष्य के समाधान
देवानंद सिंह
तेलंगाना राज्य में श्रीशैलम लेफ्ट बैंक कनाल (एसएलबीसी) सुरंग परियोजना का काम पिछले कई दशकों से चल रहा है। इस परियोजना का उद्देश्य कृष्णा नदी से पानी को मोड़कर नालगोंडा, सूर्यपेट, यदाद्रि और भुवनागिरी जैसे जिलों में सिंचाई सुविधाएं उपलब्ध कराना है, साथ ही हैदराबाद शहर में पीने के पानी की सप्लाई भी सुनिश्चित करना है। हालांकि, इस परियोजना के निर्माण में लगातार हो रही देरी और बढ़ते खर्चे ने इसे एक जटिल मुद्दा बना दिया है।
दरअसल, एसएलबीसी सुरंग परियोजना का विचार लगभग 42 वर्ष पहले आया था, जब 1978 में तेलंगाना राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री चेन्ना रेड्डी ने एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था। इस समिति ने सुरंग के माध्यम से पानी की दिशा मोड़ने का सुझाव दिया था। 1980 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अंजैया ने इस परियोजना के लिए सुरंग निर्माण की आधारशिला रखी थी। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य कृष्णा नदी से लगभग 30 टीएमसी (अरब क्यूबिक फीट) पानी को मोड़ने का था, जिससे न केवल सिंचाई के लिए पानी मिलेगा, बल्कि हैदराबाद की बढ़ती पेयजल जरूरतों को भी पूरा किया जा सकेगा।
इस परियोजना के तहत 43.93 किलोमीटर लंबी सुरंग का निर्माण किया जाना था, जो नालगोंडा, सूर्यपेट और अन्य क्षेत्रों के किसानों के लिए जल आपूर्ति का एक महत्वपूर्ण स्रोत बन सकती थी। 2005 में इस परियोजना को मंजूरी मिलने के बाद निर्माण कार्य शुरू हुआ था, लेकिन अनेक कारणों के चलते इसका काम धीरे-धीरे चलता रहा।
मजे की बात यह है कि एसएलबीसी सुरंग परियोजना का काम 2007 में शुरू हुआ था और इस पर पहले 2010 तक पूरा होने का लक्ष्य था, लेकिन 15 साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी इस परियोजना का पूरा होना मुमकिन नहीं हो पाया है। परियोजना की लागत समय-समय पर बढ़ती रही है। शुरुआत में 2,813 करोड़ रुपए का बजट निर्धारित किया गया था, लेकिन अब तक इसे बढ़ाकर 4,637 करोड़ रुपए कर दिया गया है। इस परियोजना के पूरे होने की समय सीमा को अब तक छह बार बढ़ाया जा चुका है और वर्तमान समय सीमा के अनुसार इसे जून 2026 तक पूरा किया जाना है।
हालांकि, निर्माण में देरी के कई कारण रहे हैं। पहला कारण सुरंग निर्माण में आने वाली तकनीकी समस्याएं हैं। सुरंग की खुदाई के दौरान पानी और गाद का रिसाव बड़ी समस्या बन गया है, जिससे काम में रुकावट आई है। इसके अलावा सुरंग के भीतर की ढलान और संरचना भी चुनौतीपूर्ण है, जिससे सुरंग खोदने वाली मशीनें बार-बार खराब होती रही हैं। इन समस्याओं को नियंत्रित करना बेहद मुश्किल है, और इससे काम में और देरी हो रही है।
एसएलबीसी सुरंग का निर्माण एक संरक्षित वन क्षेत्र, नल्लामाला जंगल के भीतर हो रहा है। इस कारण इस परियोजना के पर्यावरणीय पहलू बेहद महत्वपूर्ण बन जाते हैं। सरकार ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से इस परियोजना के लिए मंजूरी ली थी, लेकिन यह शर्त रखी गई थी कि इससे वन और वन्यजीव संरक्षण क्षेत्रों को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा। यह एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि सुरंग की खुदाई के लिए खुले नहरों की खुदाई करना और उसके बाद पानी की दिशा मोड़ने के लिए सुरंग की संरचना तैयार करना, इन सभी कार्यों को पर्यावरणीय नियमों के तहत ही करना पड़ता है।
इसके अलावा, सुरंग के निर्माण में पानी की दिशा बदलने के लिए गुरुत्वाकर्षण (ग्रेविटी) आधारित सुरंग का प्रस्ताव है, जिसका मतलब है कि पानी को एक ऊंचाई से कम ऊंचाई तक प्राकृतिक रूप से लाना होगा। यह प्रक्रिया बहुत धीमी होती है और इसमें पानी के साथ कोई भी गाद या सिल्ट नहीं बहनी चाहिए, अन्यथा यह आसपास के क्षेत्रों को प्रभावित कर सकता है।
इस परियोजना को समय पर पूरा करने में सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है फंड की कमी। कई सालों तक इस परियोजना के लिए पर्याप्त वित्तीय आवंटन नहीं किया गया, और इस कारण निर्माण कार्य में रुकावट आई। परियोजना की कुल लागत अब 2,647 करोड़ रुपए तक पहुंच चुकी है, और हाल के वर्षों में इसके लिए केवल 500 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। इसके अलावा, सरकार और निर्माण कंपनी के बीच वित्तीय विवादों ने भी काम में देरी की है। सिंचाई विभाग के अधिकारी बताते हैं कि पिछले तीन सालों में केवल 10 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे, जो परियोजना की विशालता को देखते हुए बहुत कम है।
हालांकि, तेलंगाना सरकार ने अब इस परियोजना के लिए 800 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं और परियोजना को अगले दो वर्षों में पूरा करने का लक्ष्य रखा है, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह समय सीमा भी पूरी हो सकेगी? विशेषज्ञों का कहना है कि यदि सुरंग के निर्माण में आने वाली तकनीकी और पर्यावरणीय समस्याओं को शीघ्र हल नहीं किया गया, तो परियोजना के लिए नया संकट पैदा हो सकता है। नैनाला गोवर्धन जैसे विशेषज्ञों का मानना है कि सुरंग के भीतर काम करने के लिए बेहतर तकनीकी व्यवस्था और सुरक्षा उपायों की आवश्यकता है। इसके अलावा, सुरंग निर्माण क्षेत्र में काम कर रहे मजदूरों और कर्मचारियों की सुरक्षा भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। सुरंग में काम करते समय तेज शोर और हानिकारक गैसों की समस्या से निपटने के लिए उपयुक्त तकनीकी उपायों की आवश्यकता है, ताकि काम करने वाले लोगों का स्वास्थ्य प्रभावित न हो।
कुल मिलाकर, एसएलबीसी सुरंग परियोजना तेलंगाना के लिए एक महत्वाकांक्षी और आवश्यक परियोजना है, जो राज्य के जल संसाधनों का सही उपयोग करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हो सकती है। हालांकि, इसके निर्माण में हो रही देरी, पर्यावरणीय चुनौतियां और वित्तीय समस्याएं इस परियोजना के लिए गंभीर संकट बन चुकी हैं। यदि, सरकार और निर्माण कंपनी इन समस्याओं को शीघ्र हल करने में सक्षम हो पाती है, तो यह परियोजना न केवल तेलंगाना के सिंचाई और पेयजल संकट को हल करने में मदद करेगी, बल्कि यह राज्य की समृद्धि और विकास के लिए भी महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।