मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति और कांग्रेस के सवाल
देवानंद सिंह
सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति की बैठक में ज्ञानेश कुमार के 19 फरवरी से मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में कार्यभार संभालने के निर्णय को मुहर लगाई गई। भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में ज्ञानेश कुमार की नियुक्ति एक ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण घटना है, जो लोकतंत्र की सुरक्षा और चुनावी प्रक्रिया के निष्पक्षता की दिशा में एक नए अध्याय को जोड़ता है, लेकिन यह नियुक्ति चर्चा का विषय बन गई है, क्योंकि कांग्रेस ने उनकी नियुक्ति पर सवाल उठाए हैं। यह इसलिए भी चर्चा का विषय बन गया है, क्योंकि यह सुप्रीम कोर्ट में मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति से संबंधित नए नियमों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई से पहले की गई है।
ज्ञानेश कुमार के चुनाव आयुक्त के पद पर रहते हुए भारत में कई महत्वपूर्ण चुनाव हुए, जिनमें 2024 के लोकसभा चुनाव और जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव विशेष रूप से महत्वपूर्ण थे। इसके अलावा, हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र और दिल्ली में विधानसभा चुनाव भी उनके कार्यकाल के दौरान आयोजित हुए। इससे यह स्पष्ट होता है कि उनका कार्यकाल चुनाव आयोग के दृष्टिकोण से अत्यंत व्यस्त और चुनौतीपूर्ण रहा है। इस नियुक्ति से पहले भारत में चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण बदलाव हुआ था।
2023 में, मोदी सरकार ने ‘चिफ़ इलेक्शन कमिश्नर एंड अदर इलेक्शन कमिश्नर्स एक्ट’ पारित किया था, जिसके तहत चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त के चयन के लिए एक नया पैनल बनाया गया। इस पैनल में प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी शामिल होते हैं। इससे पहले, चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति की सिफ़ारिश पर होती थी। इस नए क़ानून के पारित होने के बाद से कांग्रेस पार्टी और अन्य विपक्षी दलों ने इसे संविधान की भावना के खिलाफ बताया है। कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में आरोप लगाया कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इस नए क़ानून को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई से पहले यह नियुक्ति की अधिसूचना जारी की है, जिससे यह प्रतीत होता है कि सरकार न्यायालय में चल रही सुनवाई में किसी तरह का गतिरोध उत्पन्न करना चाहती है।
ज्ञानेश कुमार 1988 बैच के केरल कैडर के आईएएस अधिकारी हैं। उन्होंने 31 जनवरी 2024 को केंद्रीय कोऑपरेशन सेक्रेटरी के पद से रिटायरमेंट लिया था। इसके बाद उन्हें 14 मार्च 2024 को चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया था और अब 19 फरवरी 2025 से वे मुख्य चुनाव आयुक्त का पद संभालेंगे। उनका कार्यकाल 26 जनवरी 2029 तक रहेगा, जो भारतीय चुनावों की एक महत्वपूर्ण अवधि का प्रतिनिधित्व करेगा।
ज्ञानेश कुमार का प्रशासनिक करियर विविधताओं से भरा रहा है। उन्होंने गृह मंत्रालय में काम करते हुए जम्मू-कश्मीर के मामलों को देखा और विशेष रूप से अनुच्छेद 370 के रद्द होने के समय वह गृह मंत्री अमित शाह के साथ लगातार संसद में उपस्थित थे। इसके अलावा, वह राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के गठन में भी शामिल थे। कांग्रेस ने इस नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर गंभीर आपत्ति जताते हुए कहा है कि जब तक सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर अपना निर्णय नहीं देता, तब तक चुनाव आयुक्त के चयन को टाला जाना चाहिए था। कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल और अभिषेक मनु सिंघवी ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में यह आरोप लगाया कि सरकार ने जल्दबाजी में चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की अधिसूचना जारी कर दी, जो संविधान की भावना के खिलाफ है।
उनका कहना था कि यह कदम सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई में हस्तक्षेप करने का प्रयास है और इससे यह भी संकेत मिलता है कि सत्तारूढ़ सरकार चुनावी प्रक्रिया को अपने फायदे के लिए प्रभावित करने की कोशिश कर रही है। यह बात उल्लेखनीय है कि लोकतंत्र की सफलता और स्थिरता का एक महत्वपूर्ण पहलू चुनावों की निष्पक्षता है, और इसके लिए चुनाव आयोग का स्वतंत्र और निष्पक्ष होना आवश्यक है। यदि, चुनाव आयुक्तों के चयन प्रक्रिया में राजनीतिक हस्तक्षेप होता है, तो यह लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी हो सकती है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों का आरोप है कि सरकार के इस कदम से चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठ सकते हैं।
मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता को सुनिश्चित करने का होता है। यदि, चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर कोई सवाल खड़ा होता है, तो इससे मतदाताओं का विश्वास डगमगा सकता है। ऐसे में, यह आवश्यक है कि चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी, निष्पक्ष और संविधान के अनुसार हो, ताकि लोकतंत्र की संस्थाओं का सम्मान और उनका कार्यक्षेत्र सुरक्षित रहे। सरकार को चाहिए कि वह चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता बनाए रखे और यह सुनिश्चित करे कि चुनाव आयोग पूरी तरह से स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से काम करे। लोकतंत्र की नींव इस पर निर्भर करती है कि चुनाव प्रक्रिया को किस हद तक स्वतंत्र रूप से चलने दिया जाता है और इसके लिए चुनाव आयोग की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।