राष्ट्र संवाद नजरिया : सरकार की बदले की भावना को दर्शाती है पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर की गिरफ्तारी….
देवानंद सिंह
चर्चित पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर एक बार फिर चर्चा में हैं। और यह चर्चा हो रही है, उनकी गिरफ्तारी को लेकर। दरअसल, उन पर मुख्तार अंसारी के कहने पर रेप के आरोपी सांसद अतुल राय को बचाने के लिए आपराधिक षड्यंत्र रचने का आरोप है। अतुल राय पर रेप का आरोप लगाने वाली पीड़िता ने गत 16 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट के बाहर अपने दोस्त के साथ खुद को आग लगाकर आत्महत्या की कोशिश की थी। इलाज के दौरान दोनों की मौत हो गई। इसके बाद पुलिस अमिताभ ठाकुर को जबरन गिरफ्तार कर ले गई। लखनऊ प्रभारी सीजेएम ने उन्हें आगामी 9 सितंबर तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया है। पहली बार ऐसा नहीं है कि अमिताभ ठाकुर सुर्खियों में हैं, जब वह पुलिस सेवा थे, तब भी अपनी बेबाकी के लिए हमेशा ही चर्चा में रहे और अब जब वह पुलिस सेवा में नहीं हैं तो उनका सुर्खियों में रहना कैसे कम हो सकता है, क्योंकि अब वह वर्दी की सीमाओं से भी आजाद हो चुके हैं। या यूं कहे कि जबरदस्ती रिटायरमेंट देकर उन्हें आजाद कर दिया गया। उनके इस रिटायरमेंट की भी खूब चर्चा हुई, लोगों ने अपनी अपनी तरह से इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया रखी थी। इसके बाद उन्होंने योगी आदित्यनाथ के खिलाफ चुनाव लड़ने का ऐलान करके भी काफी सुर्खियां बटोरी थी। अब जो अमिताभ ठाकुर की गिरफ्तारी हुई है, उसके पीछे बहुत से लोग ये कारण मान रहे हैं कि योगी आदित्यनाथ के खिलाफ चुनाव लड़ने का ऐलान करने की वजह से अमिताभ ठाकुर की गिरफ्तारी बदले की भावना से की गई है, लेकिन सरकार का कहना है कि अमिताभ ठाकुर को एसआईटी जांच की रिपोर्ट के आधार पर गिरफ्तार किया गया है। खैर, इन दोनों में से जो भी वजह रही हो, लेकिन एक बात तो साफ है कि सरकार कहीं न कहीं अमिताभ ठाकुर की बेबाकी से परेशान जरूर थी। अक्सर, देखने को मिलता है कि आईएएस और आईपीएस अधिकारी कभी भी इतनी बेबाकी से अपनी बात नहीं रख पाते हैं। सरकार में चाहे अच्छा काम हो रहा हो या गलत,वे उसका चुपचाप भागीदार बने रहते हैं, खुलकर कभी कोई बयान भी नहीं दे पाते हैं। ऐसा इसीलिए होता है, क्योंकि उन्हें अपनी कुर्सी का खतरा बना रहता है, लेकिन ये बात अमिताभ ठाकुर पर कभी लागू नहीं हुई, उनमें कभी कुर्सी जाने का खौफ नहीं दिखा। अमिताभ ठाकुर ने एक बार तो तत्कालीन मुख्य सचिव को यहां तक लिख भेजा था कि कुछ मंत्री निश्चित तौर पर आपराधिक पृष्ठभूमि के होते हैं। ऐसों को पुलिस द्वारा गार्ड ऑफ ऑनर देने से पुलिस का मनोबल गिरना तय है। साथ ही, इससे जनता में गलत संदेश भी जाएगा। सोचिए कि क्या ये सब खरी-खरी दो टूक लिखने-बोलने की हिम्मत आईपीएस की वर्दी पहने देश में किसी और आला-अफसर में कभी हुई? यही वजह भी रही कि अमिताभ ठाकुर हमेशा हुकूमत के निशाने पर रहे या फिर उसकी आंख की किरकिरी साबित हुए। ये वही अमिताभ ठाकुर हैं, जो यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव से सीधे-सीधे पंगा लेने से भी नहीं चूके। उन्होंने मुलायम सिंह पर खुलेआम आरोप लगाया था कि मुलायम ने उन्हें धमकी दी थी। इतना ही नहीं एक बार तो अमिताभ ठाकुर सड़क पर पुलिस के खिलाफ ही धरना देकर बैठ गए थे। यानि जहां उन्हें लगा कि आवाज उठानी चाहिए वह उससे कभी नहीं चुके। वह खुद को हमेशा भीड़ से अलग ही रखने की कवायद में जुटे रहे। जब उनके दिमाग में कुछ आया तो उन्होंने बेबाकी से बिना कुछ आगे-पीछे की सोचे कह, सुन लिया और सुना भी दिया। ऐसे अफसर हमेशा ही सरकार के आंखों की किरकिरी बने रहते हैं। इसीलिए सरकार ऐसे अधिकारियों को महत्वपूर्ण पद तक नहीं दिया जाता या फिर जबरन रिटायर कर दिया जाता है, पर जो अधिकारी वर्दी में रहते चुप नहीं रहा, बिना वर्दी के कहां चुप रहने वाला है। इसीलिए शासन जब भी इस तरह के कदम उठाता है, उस पर सवाल उठते ही हैं। अमिताभ ठाकुर वैसे भी भूमिहार हैं और भूमिहारों के खिलाफ बीजेपी सरकार खूब हमलावर दिख रही है। क्या सरकार को इस तरह से हुकूमत चलानी चाहिए ? हर किसी को अपनी बात रखने का अधिकार है, सरकार को आवाज को दबाने के बजाय उसे सुनना चाहिए, तभी सरकार के प्रति लोगों में विश्वास जागेगा।