राशि चक्र में ग्रह का किसी एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने की क्रिया को गोचर कहते हैं. ज्योतिष विज्ञान के अनुसार राशि चक्र में बारह राशियाँ होती हैं और इन सभी राशियों का अलग-अलग स्वभाव होता है. जबकि ग्रहों को इन राशियों का स्वामित्व प्राप्त है. किसी व्यक्ति के जीवन में गोचर का बहुत प्रभाव पड़ता है, क्योंकि गोचर उस समय विशेष में ग्रह के प्रभाव को परिभाषित करता है.
गोचर का अर्थ होता है – ग्रहों का चलना. यह दो शब्दों के योग से बना है जिसमें पहला शब्द ‘गो’ है और दूसरा ‘चर’ है. ‘गो’ का अर्थ तारा या नक्षत्र से है जबकि ‘चर’ का मतलब गमन से है. गोचर के दौरान सूर्य से लेकर केतु तक सभी नौ की गति अलग-अलग होती है, इस कारण गोचर की अवधि में भी भिन्नता पाई जाती है.
ज्योतिष में गोचर का महत्व क्या है?
ज्योतिष एक ऐसी विद्या है जिसके माध्यम से आकाश मंडल में स्थित ग्रह तथा नक्षत्रों की स्थिति एवं चाल का अध्ययन कर उनके प्रभावों के बारे में जाना जाता है. इसी को ज्योतिषीय फलादेश अथवा गोचर का फल कहते हैं. इसमें महत्वपूर्ण बात यह है कि ग्रह तथा नक्षत्रों का प्रभाव सीधे मनुष्य के जीवन पर पड़ता है. किसी जातक की जन्म कुंडली के आधार पर विभिन्न ग्रहों के गोचरों के प्रभावों को जाना जाता है. इसे गोचल कुंडली फलादेश भी कहते हैं. गोचर का प्रभाव व्यक्ति की जन्म कुंडली में स्थित भावों के अनुसार अलग-अलग होता है. हमारी जन्म कुंडली में कुल बारह भाव होते हैं जिनसे व्यक्ति के संपूर्ण जीवन का पता चलता है.
राशि पर ग्रहों के गोचर की अवधि
ग्रह अवधि
सूर्य एक माह
चंद्रमा सवा दो दिन
मंगल क़रीब डेढ़ माह
बुध लगभग 14 दिन
बृहस्पति एक वर्ष
शुक्र लगभग 23 दिन
शनि दो से ढ़ाई वर्ष
राहु एक से डेढ़ वर्ष
केतु एक से डेढ़ वर्ष
आइए जानते हैं विभिन्न भावों पर ग्रहों के गोचर का प्रभाव :-
सूर्य का गोचर
वैदिक ज्योतिष में सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है. सूर्य सिंह राशि का स्वामी होता है. यह सभी ग्रहों में प्रधान है. हमारी जन्म कुंडली में सूर्य का गोचर लग्न राशि से तीसरे, छठे, दसवें और ग्यारहवें भाव में शुभ फल देता है जबकि शेष भावों में सूर्य का फल अशुभ देता है.
चंद्रमा का गोचर
ज्योतिष में चंद्र ग्रह को मन का कारक माना गया है. यह कर्क राशि का स्वामी होता है. चंद्रमा का गोचर जन्म कुंडली में लग्न राशि से पहले, तीसरे, सातवें, दसवें, और ग्यारहवें भाव में शुभ फल देता है. जबकि चौथे, आठवें और बारहवें भाव में चंद्रमा के गोचर का प्रभाव अशुभ होता है.
मंगल का गोचर
वैदिक ज्योतिष के अनुसार मंगल ऊर्जा, साहस, बल आदि का कारक होता है. यह मेष और वृश्चिक राशि का स्वामी होता है. मंगल का गोचर किसी जातक के जन्मकालीन राशि से तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाव में शुभ फल देता है जबकि शेष भावों में इसके प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिलते हैं.
बुध का गोचर
वैदिक ज्योतिष शास्त्र में बुध को बुद्धि, तर्क, सवाद और गणित का कारक माना जाता है. यह मिथुन और कन्या राशि का स्वामी होता है. ज्योतिष विज्ञान के अनुसार बुध का गोचर हमारी जन्म कुंडली स्थित लग्न राशि से दूसरे, चौथे, छठे, आठवें, दसवें और ग्यारहवें भाव में शुभ फल देता है. जबकि शेष भावों में इसके परिणाम अच्छे नहीं माने जाते हैं.
बृहस्पति का गोचर
वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति को ज्ञान, संतान एवं परिवार का कारक माना जाता है. यह धनु और मीन राशि का स्वामी होता है. गुरु का गोचर जन्मकालीन राशि से दूसरे, पाँचवें, सातवें, नौवें और ग्यारहवें भाव में शुभ फल देता है और शेष भावों में इसके परिणाम अशुभ होते हैं.
शुक्र का गोचर
वैदिक ज्योतिष के अनुसार शुक्र ग्रह प्रेम, रोमांस, सुंदरता, कला, रिलेशनशिप का कारक होता है. यह वृषभ और तुला राशि का स्वामी होता है. शुक्र का गोचर जन्मकालीन राशि से पहले, दूसरे, तीसरे, चौथे, पाँचवें, आठवें, नौवें, ग्यारहवें और बारहवें भाव में शुभ फल देता है जबकि शेष भावों में यह अशुभ फल देता है.
शनि का गोचर
हिन्दू ज्योतिष में शनि ग्रह को कर्म का कारक माना जाता है. यह मकर और कुंभ राशि का स्वामी होता है. शनि अपने न्याय और धीमी चाल के लिए जाना जाता है. ज्योतिष में शनि का गोचर सबसे प्रभावशाली होता है. यह जन्मकालीन राशि से तीसरे, छठे, ग्यारहवें भाव में शुभ फल देता है और शेष भावों में इसके परिणाम जातकों के लिए अशुभ होते हैं.
राहु का गोचर
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राहु जीवन में चतुरता, सूचना, तकनीकी और राजनीति आदि को प्रदर्शित करता है. यह हमेशा लोगों का ध्यान अपनी ओर चाहता है और सभी प्रकार की भौतिक सुख-सुविधाओं को भोगने की ओर लालायित करता है. राहु का गोचर जन्म कुंडली में जन्मकालीन राशि से तीसरे, छठे, ग्यारहवें भाव में शुभ फल देता है और शेष भावों में इसके परिणाम व्यक्ति के लिए प्रतिकूल होेते हैं.