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    Home » जिले में पॉक्सो से जुड़े अपराधों पर कैसे नियंत्रण हो, किस प्रकार कड़ी निगरानी की जाय, जिससे इन अपराधों में कमी आए – प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश
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    जिले में पॉक्सो से जुड़े अपराधों पर कैसे नियंत्रण हो, किस प्रकार कड़ी निगरानी की जाय, जिससे इन अपराधों में कमी आए – प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश

    Nijam KhanBy Nijam KhanJuly 16, 2023No Comments5 Mins Read
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    एसजीएसवाई प्रशिक्षण भवन, सभागार, जामताड़ा में आज जिला विधिक सेवा प्राधिकार के सौजन्य से पॉक्सो अधिनियम 2012 से संबंधित जिला स्तरीय एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन संपन्न

    प्रशिक्षण के दौरान न्यायिक, प्रशानिक एवं पुलिस पदाधिकारियों ने पॉक्सो अधिनियम से जुड़े सभी प्रावधानों एवं जानकारियों के बारे में विस्तार से दी जानकारी

    जिले में पॉक्सो से जुड़े अपराधों पर कैसे नियंत्रण हो, किस प्रकार कड़ी निगरानी की जाय, जिससे इन अपराधों में कमी आए – प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश

    आज दिनांक 16.07.2023 को समाहरणालय जामताड़ा अवस्थित एसजीएसवाई प्रशिक्षण भवन सभागार में लैंगिक अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (पॉक्सो) पर जिला विधिक सेवा प्राधिकार, जामताड़ा के सौजन्य से सभी संबंधित स्टेक होल्डर्स के साथ जिला स्तरीय कार्यशाला का आयोजन किया गया।

    आयोजित कार्यशाला में उपायुक्त सह जिला दंडाधिकारी जामताड़ा श्री फ़ैज़ अक अहमद मुमताज (भा०प्र०से०), पुलिस अधीक्षक श्री मनोज स्वर्गियारी (भा०पु०से०), प्रशिक्षु आईपीएस श्री राकेश कुमार सिंह (भा०पु०से०) न्यायिक पदाधिकारी में प्रधान न्यायाधीश कुटुंब न्यायालय, सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकार श्री अभिनव, अनुमंडल न्यायिक दंडाधिकारी श्रीमति खुशबू त्रिपाठी सहित प्रशासनिक अधिकारियों में अपर समाहर्ता श्री सुरेन्द्र कुमार, अनुमंडल पदाधिकारी श्री संजय पांडेय, जिला योजना पदाधिकारी श्री पंकज कुमार तिवारी, जिला शिक्षा अधीक्षक श्री दीपक राम सहित अन्य पदाधिकारी उपस्थित रहे।

    *पुलिस का अहम रोल एवं दायित्व है कि वह सूचना के आधार पर बिना विलंब किए कार्रवाई करे*

    आयोजित कार्यशाला को संबोधित करते हुए प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश सह अध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकार श्री रंजीत कुमार ने कहा कि पॉक्सो एक्ट पर आयोजित कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य जिले में पॉक्सो से जुड़े अपराधों को हैंडल करने के तरीके, कड़ी निगरानी, समुचित अनुसंधान की प्रक्रिया के बारे में आवश्यक जानकारियों का प्रदान करना है। अमूमन लोगों में यह धारणा बनी हुई है पॉक्सो सिर्फ गर्ल चाइल्ड के लिए ही है, बल्कि पॉक्सो एक्ट में लड़का एवं लड़की चाइल्ड दोनो के हितों की रक्षा का प्रावधान किया गया है। पॉक्सो से जुड़े अपराधों में चाहे हो गांव घर में घटित हो अथवा पब्लिक प्लेस में, इसकी सूचना तुरंत पुलिस को दी जानी चाहिए। प्राप्त सूचना के आधार पर पुलिस का अहम रोल एवं दायित्व है कि वह सूचना के आधार पर बिना विलंब किए कार्रवाई करते हुए एफआईआर दर्ज करें।

    उन्होंने कहा कि बच्चों के संरक्षण में एक्जीक्यूटिव, पुलिस ऑफिसर्स एवं ज्यूडिशियरी तीनों की महत्वपूर्ण भूमिका है। वहीं उन्होंने कहा कि चाइल्ड को सेक्सुअल एब्यूज से कैसे बचाया जाए? इस पर विचार करने की आवश्यकता है। क्योंकि बच्चों को आसानी से कोई अपराधिक शिकार बना लेते हैं। बच्चे समाज के हर क्षेत्र में जाते हैं। उन्होंने कहा कि पॉक्सो एक्ट 2012 को 14 नवंबर 2012 को हमारे लेजिस्लेचर ने सोच समझ के इन एक्ट किया है। वहीं उन्होंने इस पर और प्रकाश डालते हुए कहा कि कोर्ट में इसके विचारण की अलग प्रक्रिया है जिसमे चाइल्ड फ्रेंडली कोर्ट एस्टेब्लिश्ड किए गए हैं वहीं सुनवाई के दौरान पीड़ित को एक्यूज्ड सामने से नही दिखना चाहिए इसके लिए भी व्यवस्था की गई है।

    प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने आगे पुलिस पदाधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि इस तरह के मामला सामने आने पर बिना लापरवाही किए मामला दर्ज कर कार्रवाई करें। सीडब्ल्यूसी को भी जरूर इसकी सूचना दें। पीड़ित/पीड़िता (बच्चे) का बयान लेते समय पुलिस की वर्दी में नही जाएं। उसका स्टेटमेंट लेते समय घर का कोई क्लोज सदस्य उसके पास हो साथ ही पुलिस की तरह बयान न लेकर उसे अपने विश्वास में लेकर दोस्त की तरह बात करें। लगातार पूछताछ न कर के रुक रुक के पूछताछ करें। अगर पीड़ित बच्ची हो तो इसका ध्यान रखे हैं कि उनका बयान महिला अधिकारी लें। किसी भी सूरत में उन्हें थाना ना बुलाया जाए। उन्होंने कहा कि प्रत्येक अस्पताल में पॉक्सो विक्टिम के लिए एक अलग कमरा हो एवं उनका जांच महिला चिकित्सक के द्वारा उनके परिवार, गार्जियन की उपस्थिति में ही करें। मेडिकल जांच में लापरवाही नहीं होनी चाहिए। साथ ही उन्होंने सेक्सुअल एब्यूज के शिकार बच्चों के चिकित्सकीय जांच सार्वजनिक न हो। अगर जांच के दौरान महिला चिकित्सक नहीं हैं तो उनकी अनुपस्थिति में पुरुष डॉक्टर के साथ महिला अटेंडेंट हों। साथ ही बच्चा अगर छोटा हो तो बिना उसके माता पिता के सहमति के चिकित्सकीय जांच आवश्यक भी नही हैं। उन्होंने कहा कि चार्जशीट के पूर्व पुलिस अधीक्षक द्वारा इसकी समीक्षा किया जाना आवश्यक है। पुलिस के द्वारा अगर सही से अनुसंधान कर तमाम साक्ष्य के साथ अगर न्यायालय में मामला आता है, उस पर एक्ट के तहत उचित कार्रवाई में आसानी होगी।

    *मामलों का अनुसंधान संवेदनशीलता से करें- पुलिस अधीक्षक*

    कार्यशाला को संबोधित करते हुए पुलिस अधीक्षक ने कहा की पॉक्सो केस में एफआईआर से पूर्व लोगों को जागरूकता के साथ परिवार के लोगों के काउंसलिंग कर क्राइम को रिपोर्ट करें। मामला ज्ञात होने पर इसकी सूचना तुरंत सीडब्ल्यूसी को दें ताकि उनके द्वारा आवश्यक सहयोग मिल सके। उन्होंने पुलिस पदाधिकारी को कहा कि ऐसे केस में सभी जरूरी धारा लगाएं। अनुसंधान के दौरान हरेक बिंदु पर जांच एवं अनुश्रवण के पश्चात चार्जशीट दायर करने करें। अनुसंधान में कोई लापरवाही ना हो, अनुसंधान सही से होने पर ही अपराधी को न्यायालय से सजा दिलवाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि ऐसे केस में बच्चों के बयान लेने हेतु सादे लिबास में जाने तथा इन केसों को गंभीर मानते हुए आईओ स्वयं इसका अनुसंधान करें। पीड़ित बच्चों को किसी भी सूरत में थाना न बुलवाएं। बच्चों से बयान लेते समय उसे यह अहसास कराएं कि आप उनके रिश्तेदार, हमदर्द और भलाई चाहते हैं। उसे डरा धमका के बात ना करें।

    वहीं प्रशिक्षण के पॉक्सो एक्ट से जुड़े कई केसों के बारे में जानकारी देते हुए अनुसंधान प्रक्रिया की बारीकियों को बताया। साथ ही पीडित की गोपनीयता बनाये रखने हेतु अधिनियम की बाध्यता, पीडित को मिलने वाली विधिक सहायता के बारे में बताया।

    *इनकी रही उपस्थिति*

    इस अवसर पर उपरोक्त के अलावा जिला समाज कल्याण पदाधिकारी श्रीमति नीता चौहान, सीडीपीओ श्रीमति सविता कुमारी, जिला कल्याण पदाधिकारी श्री उत्तम कुमार भगत सहित विभिन्न थाना प्रभारी एवं अन्य संबंधित उपस्थित थे।

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