अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुरुआत 20वीं सदी के आरंभ में हुई
धनबाद अंथोनी चर्च में प्रार्थना सभा का आयोजन किया गया। प्रार्थना सभा के पूर्व सभी महिलाओं को गुलाब पुष्प एवं अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का बैच लगा कर सम्मान के साथ प्रवेश कराया गया। जहां महिलाओं ने “हम तो जलते दीप हैं यीशु की ज्योति के” मधुर गीत प्रस्तुति द्वारा पिता ईश्वर को उनकी सारी आशीष एवं आज के विशेष दिन के लिए धन्यवाद दिया। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का परिचय देते हुए ज्योति तिर्की ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस महिलाओं की उपलब्धियों का जश्न मनाने का दिवस है। यह दिवस अधिकांश देशों में एक जाना माना अवसर है। विश्व के विभिन्न क्षेत्र में महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा और प्रेम प्रकट करते हुए उनके आर्थिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक उपलब्धियां एवं कठिनाइयों की सापेक्षता के उपलक्ष्य में यह उत्सव के तौर पर मनाया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुरुआत 20वीं सदी के आरंभ में हुई। अमेरिका की सोशलिस्ट पार्टी ने 1909 में 28 फरवरी को सबसे पहले राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया था। इसके बाद जर्मनी की महिला कार्यालय की नेता क्लारा जेटकिन ने 1910 में वैश्विक स्तर पर महिला दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा। संयुक्त राष्ट्र ने 1975 में 8 मार्च को आधिकारिक रूप से अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की घोषणा की। इस दिवस के लिए विशेष तीन रंग बैंगनी हरा और सफेद चयनित हैं।
बैंगनी रंग न्याय गरिमा और अपने उद्देश्य के प्रति वफादार होने का प्रतीक है, हरा रंग आशा का प्रतीक है और सफेद रंग पवित्रता का प्रतिनिधित्व करता है। इस दिन का मुख्य उद्देश्य महिलाओं के अधिकारों के लिए आंदोलन करना तथा लैंगिक समानता को बढ़ावा देना है। इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2025 का थीम है सभी महिलाओं और लड़कियों के लिए अधिकार सामान्य सशक्तिकरण। इसका उद्देश्य महिलाओं और लड़कियों को उनके अधिकारों से अवगत कराना, उन्हें सामानता की ओर प्रेरित करना और सशक्त बनाना है। यह संदेश देता है कि समाज में हर महिला और लड़की को बराबरी का दर्जा मिले और उनके पास सभी अवसर और अधिकार होने चाहिए ताकि वे अपने जीवन को अपनी इच्छाओं और आकांक्षाओं के अनुसार आकर दे सकें और एक ऐसा नारीवादी भविष्य हो जहां कोई भी नारी पीछे ना छूटे। हमारे पवित्र बाइबल में भी ऐसी महिलाओं का जिक्र है जिन्हें ईसाई धर्म में सांस्कृतिक मानदंडों से परे अधिकार और सम्मान दिया गया है। नाजरेत की मरियम, रूथ, माओबी, मेरी मैगदेलीना, राहिल, हनना, एलिजाबेथ, एस्थर, रेबेका एवं मरियम जैसी कई महान महिलाएं हुई जिन्होंने बाइबल के कई महत्वपूर्ण क्षणों में केंद्रीय भूमिका निभाई थी। इन्होंने परमेश्वर की योजना को पूरा करने में विशेष योगदान दिया, नैतिकता और समझदारी के साथ समाज का नेतृत्व किया, न्याय की मांग की तथा दूसरों की सहायता की। इन्हें आज कलीसिया में आदर और सम्मान प्राप्त है। इतना ही नहीं तीन महान नारी मदर टेरेसा, सिस्टर अल्फोंसा तथा यूफेसिया एलुवाथिंगल जिन्हें संत घोषित किया गया। हमारे देश में भी महिलाएं हर क्षेत्र में अग्रणी और महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। स्थल, जल, वायु और अंतरिक्ष में भी अपना परचम लहरा रही हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निम्नलिखित महिलाएं द्रौपदी मुर्मू, प्रतिभा पाटिल, इंदिरा गांधी, पीटी उषा, सलीमा टेटे, कल्पना चावला जैसी महिलाओं ने अपनी गरिमा स्थापित की है। आज कई क्षेत्रों में महिलाएं ऐसी ऐसी कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं जिनकी कुछ वर्ष पूर्व कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। आज की महिलाएं जागृत हैं और विभिन्न क्षेत्रों में नेतृत्व भी कर रही हैं। उनके विचारों एवं उनके जीवन मूल्य से सुखी परिवार, आदर्श समाज और समृद्ध राष्ट्र का निर्माण होता है। लेकिन अभी भी लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण के लिए और भी ज्यादा प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। हमारा संत एंथोनी चर्च भी अपना 100 वर्षीय जुबली मनाकर सशक्त बन चुका है। हम ईसाई महिलाओं को भी आगे बढ़ना है और अपने चर्च का एक मजबूत स्तंभ बनना है। प्रगति के इस दौर में हमारी बहन बेटियां भी अपने धार्मिक मूल्यों को साथ लेते हुए शिक्षा, बैंकिंग, खेल, चिकित्सा, विज्ञान- प्रौद्योगिकी, मॉडलिंग, सिनेमा, अंतरिक्ष एवं अन्य प्रतिष्ठित क्षेत्रों में अपना सक्रिय योगदान देकर समाज और राष्ट्र के उत्थान में सहभागी बन रही हैं। हम प्रर्थना करते है कि आप जो भी करें उसमें आपको हमेशा सफलता और खुशी मिले। आप सभी को एक ऐसे दिन की शुभकामनाएं जो आपके जैसा ही मजबूत और अनोखा है।
प्रार्थना सभा को संबोधित करते हुए फादर आमातुस कुजूर ने अपने उपदेश में कहा कि- आज महिलाओं के लिए एक विशेष दिन है। सबसे पहले पिता ईश्वर द्वारा महिलाओं का सम्मान किया गया जब उन्होंने मां मरियम को प्रभु यीशु की मां होने का गौरव प्रदान किया। आज जब हम एक ईसाई होकर महिला दिवस मनाते हैं तो विशेष कर हमें इन तीन बिंदुओं पर चर्चा करने की आवश्यकता है- महिला सशक्तिकरण, लैंगिक समानता तथा महिलाओं को समान अधिकार। आज इस विशेष अवसर पर विशेष कर पुरुषों को यह सोचने एवं दृढ़ निश्चय करने की आवश्यकता है कि जिस प्रकार ईश्वर ने महिलाओं को पुरुषों के समानता में बनाया है ठीक उसी प्रकार हम भी उन्हें समानता का अधिकार दें, उनका सम्मान करें तथा ईश्वर की बनाई गई इस सुंदर कृति का पूरे दिल से सम्मान करें।
प्रार्थना सभा के अंत में “अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस” के शुभ अवसर पर अपनी महत्वपूर्ण भागीदारी निभाने के लिए फादर अमातुस कुजूर एवं कार्मेल स्कूल की सिस्टर आमला द्वारा एस्थर किंडो, सरिता मिंज, शांति सोए एवं सुनीता सुरीन को शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए सरोज पन्ना ने सर्वप्रथम परमेश्वर तथा वहां उपस्थित सदस्यों को धन्यवाद दिया साथ ही ईश्वर से महिलाओं के लिए बुद्धि शक्ति एवं अनुग्रह प्रधान करने की कामना की। अंत में पुरुषों एवं यूथ द्वारा महिलाओं के सम्मान में “पंछी बनो उड़ती फिरो मस्त गगन में आज तू आजाद है दुनिया के चमन में” की मधुर प्रस्तुति देकर सभा की समाप्ति की गई।
कार्यक्रम को सफल बनाने में शिशिर प्रभात तिर्की, जोसेफ डाहंगा, एतवा टूटी, अनिल कुजूर, गुलाब पीटर सुरीन आदि का महत्वपूर्ण योगदान रहा।