नई दिल्ली. मई 2014 में जब नरेंद्र मोदी ने केंद्र में सत्ता संभाली थी, तब कांग्रेस के पदचिन्ह 9 से केवल 2 राज्यों राजस्थान और छत्तीसगढ़ तक सिमट कर रह गए थे. कांग्रेस एक बार फिर विश्वसनीयता और नेतृत्व के इस संकट से जूझ रही है. यह संकट नया नहीं है- पार्टी ने 2014 के बाद से हुए 45 चुनावों में से सिर्फ 5 में जीत हासिल की है. लेकिन इस बार कांग्रेस ने खुद को पुर्नजीवित करने की कोशिश भी नहीं की. पांच राज्यों में चुनाव से पहले ही पार्टी में निराशा की भावना थी. नतीजों के बाद कांग्रेस में आंतरिक उथल-पुथल का पूर्वाभास भी सभी को था.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने संकेत दिया है कि आगे के रास्ते पर चर्चा के लिए पार्टी की कार्य समिति की बैठक जल्द ही बुलाई जाएगी. लेकिन ज्यादातर नेताओं से बातचीत में पता चला कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी. कुछ युवा नेताओं ने पंजाब में आप की शानदार जीत का जिक्र करते हुए तर्क दिया कि कांग्रेस के पुराने और थके हुए नेताओं को अब नौजवानों के लिए रास्ता बनाने की जरूरत है.
रिपोर्ट के मुताबिक 5 राज्यों के चुनाव परिणामों पर कांग्रेस G-23 का प्रतिनिधित्व करने वाले कई दिग्गजों ने कहा कि यह हमने आपको पहले ही बताया था वाला क्षण है. कांग्रेस वर्किंग कमिटी के सदस्य गुलाम नबी आजाद ने कहा, मैं स्तब्ध हूं, राज्य दर राज्य हमारी हार को देखकर मेरा दिल बैठा जा रहा है. हमने पार्टी को अपना पूरी जवानी और जीवन दिया है, मुझे यकीन है कि पार्टी का नेतृत्व उन सभी कमजोरियों और कमियों पर ध्यान देगा, जिनके बारे में मैं और मेरे सहयोगी काफी समय से बात कर रहे थे.
इस बीच कांग्रेस नेता शशि थरूर ने भी नेतृत्व सुधार के लिए अपना आह्वान दोहराया है. उन्होंने ट्वीट किया, हम सभी जो कांग्रेस में विश्वास करते हैं, हाल के विधानसभा चुनावों के परिणामों से आहत हैं. यह भारत के उस विचार की पुष्टि करने का समय है, जिसके लिए कांग्रेस हमेशा खड़ी रही है और राष्ट्र को सकारात्मक एजेंडा देती है. हमें हमारे संगठनात्मक नेतृत्व को इस तरह से सुधारना है, जो उन विचारों को फिर से जीवंत करे और लोगों को प्रेरित करे. एक बात स्पष्ट है- यदि हमें सफल होना है तो परिवर्तन बदलाव करना ही होगा.