देवानंद सिंह
मंगलवार को सीजेआई जस्टिस संजीव खन्ना का कार्यकाल पूरा होने के बाद बुधवार यानि 14 मई को नए
सीजेआई के रूप में जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ने अपना कार्यभार संभाल लिया है। वह देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश बन गए हैं। यह केवल एक औपचारिक संवैधानिक नियुक्ति नहीं थी, बल्कि भारतीय न्यायपालिका के सामाजिक समावेश और प्रतिनिधित्व के संदर्भ में एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव भी था। जस्टिस गवई भारत के केवल दूसरे दलित मुख्य न्यायाधीश हैं। उनसे पहले 2007 में जस्टिस के.जी. बालाकृष्णन इस पद पर आसीन हुए थे। यह एक प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि एक सामाजिक-संवैधानिक उपलब्धि है, जो भारतीय न्यायपालिका की बढ़ती बहुलता और विविधता की ओर इशारा करती है।
जस्टिस बी.आर. गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ। उन्होंने 1985 में बार में नामांकन के साथ अपने कानूनी करियर की शुरुआत की। प्रारंभिक वर्षों में उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट के प्रसिद्ध अधिवक्ता एवं न्यायाधीश राजा एस. भोंसले के साथ काम किया और संवैधानिक एवं प्रशासनिक कानून में विशेषज्ञता अर्जित की। उनके प्रारंभिक कार्यकाल में वह विभिन्न नगर निकायों और विश्वविद्यालयों के स्थायी वकील के रूप में कार्यरत रहे। यह अनुभव उन्हें प्रशासनिक कानून की बारीकियों से जोड़ता है, जो एक मुख्य न्यायाधीश के लिए अत्यंत उपयोगी होता है। 1992 में सहायक सरकारी वकील के रूप में और 2000 से लोक अभियोजक के रूप में उनकी नियुक्तियों ने उनके सरकारी कार्य का विस्तार किया। न्यायिक नियुक्ति की दिशा में उनका पहला कदम 2003 में पड़ा, जब वे बॉम्बे हाईकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश बनाए गए। 2005 में वे स्थायी न्यायाधीश बने और अंततः 2019 में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत हुए।
जस्टिस गवई सर्वोच्च न्यायालय की कई संवैधानिक पीठों का हिस्सा रहे और उन्होंने भारत के लोकतंत्र को आकार देने वाले कुछ सबसे महत्त्वपूर्ण मामलों में निर्णायक भूमिका निभाई। जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र सरकार के 2019 के फैसले को बरकरार रखने वाली पांच सदस्यीय पीठ का वह हिस्सा थे। यह निर्णय संवैधानिक व्याख्या और संघीय ढांचे के संतुलन के संदर्भ में अत्यंत महत्त्वपूर्ण रहा, इसके अतिरिक्त उन्होंने चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक ठहराने वाली पीठ में भी हिस्सा लिया, यह फैसला पारदर्शिता, राजनीतिक वित्त पोषण और मतदाता के अधिकार की रक्षा की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम रहा। विमुद्रीकरण के निर्णय को बरकरार रखने वाली पीठ और अनुसूचित जातियों के भीतर उपवर्गीकरण की संवैधानिक वैधता को स्वीकारने वाली सात-सदस्यीय पीठ में भी जस्टिस गवई की भागीदारी उनकी संवैधानिक दृष्टि को उजागर करती है।
अपने कार्यकाल के दौरान जस्टिस गवई ने न्यायिक निष्पक्षता और पारदर्शिता के उच्च मानक प्रस्तुत किए हैं। 2023 में राहुल गांधी से जुड़े एक मानहानि मामले में सुनवाई के दौरान उन्होंने स्वयं को इस आधार पर अलग करने की पेशकश की कि उनके पारिवारिक संबंध कांग्रेस पार्टी से जुड़े रहे हैं। यह आत्म-नियमन न्यायपालिका में नैतिकता की उस परंपरा को पुष्ट करता है, जिसकी आज के समय में सर्वाधिक आवश्यकता है। मुख्य न्यायाधीश के रूप में जस्टिस गवई का कार्यकाल केवल सात महीने का होगा, जो 23 नवंबर 2025 को समाप्त होगा। यह अल्पकालिक कार्यकाल उन्हें सीमित समय देता है, लेकिन यह अवधि भी न्यायिक प्राथमिकताओं को पुनः परिभाषित करने का अवसर हो सकती है। उनके समक्ष अनेक जटिल चुनौतियां रहेंगी। हाल के वर्षों में न्यायपालिका की कार्यप्रणाली और ‘कॉलेजियम प्रणाली’ को लेकर सार्वजनिक विमर्श में तीव्रता आई है। न्यायिक नियुक्तियों में पारदर्शिता, तर्कसंगतता और विविधता को सुनिश्चित करना उनके लिए एक प्राथमिक कार्य होगा।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय सहित समस्त न्यायिक ढांचे में लाखों मुकदमे लंबित हैं। न्यायिक प्रक्रिया की गति को तेज करना और वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र को सशक्त करना उनके लिए आवश्यक होगा। कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच की सीमाओं को स्पष्ट और संतुलित बनाए रखना आज की न्यायिक प्रशासन की सबसे बड़ी चुनौती बन चुका है। ई-कोर्ट्स, वर्चुअल सुनवाई और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के युग में न्यायिक प्रक्रियाओं की विश्वसनीयता को बनाए रखते हुए तकनीकी नवाचार को अपनाना जस्टिस गवई की दूरदृष्टि की परीक्षा लेगा। दलित समुदाय से आने के कारण उनसे यह अपेक्षा की जाएगी कि वे न्यायपालिका में सामाजिक समावेश, प्रतिनिधित्व और अधिकारों की रक्षा को मजबूती से आगे बढ़ाएं।
चुनाव, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सांप्रदायिक हिंसा, बुलडोजर न्याय और व्यक्तिगत स्वतंत्रता जैसे मुद्दों पर न्यायपालिका की भूमिका निर्णायक रही है। इन क्षेत्रों में संतुलन और विवेक से युक्त निर्णय देना उनकी प्राथमिकताओं में होगा। कुल मिलाकर, उनसे यह आशा की जा सकती है कि वे न केवल न्यायिक निर्णयों के माध्यम से बल्कि संस्थागत सुधारों द्वारा भी न्यायपालिका को अधिक पारदर्शी, उत्तरदायी और सामाजिक दृष्टि से सजग बनाएंगे, बल्कि भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में न्यायपालिका की आत्मा को संरक्षित और सशक्त करने में भी जस्टिस गवई महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।