नक्सलियों के साए पर भारी पड़ा मतदाताओं का जोश
झारखंड विधानसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान शनिवार यानि 3० नवंबर को संपन्न हो गया है। छुटमुट घटनाओं को छोड़ दें तो मतदान शांतिपूर्ण माहौल में संपन्न हुआ। नक्सलियों के खतरे के साए में भी मतदाता जिस प्रकार अपने मत का प्रयोग करने के लिए घर से बाहर निकले, उसने लोकतंत्र की जीत की बड़ी इबारत लिख डाली। बड़ी बात यह रही है कि प्रदेश के जिन नक्सल प्रभावित ईलाकों में शनिवार को मतदान संपन्न हुआ, वहां भी बड़ी संख्या में मतदाता मतदान करने घर से बाहर निकले। 13 सीटों के लिए पहले चरण का मतदान हुआ था। सभी सीटों पर बंपर वोटिंग हुई। अधिकांश क्षेत्रों में 65 फीसदी से अधिक मतदान होने को मतलब है कि लोग मतदान के प्रति काफी जागरूक हो रहे हैं। चतरा, गुमला, बिशुनपुर, लोहरद्गा, मनिका, लातेहार, पांकी, बिश्रामपुर, छतरपुर के साथ-साथ हुसैनाबाद, गढ़वा, भवनाथपुर आदि विधानसभा क्षेत्रों में भी मतदाता घर से बाहर निकलने में पीछे नहीं रहे। बिहार से अलग होने के बाद जिस प्रकार यहां 2००3 से लेकर 2०14 तक राजनीतिक अस्थिरता रही, उससे राज्य के विकास में काफी बुरा असर पड़ा। 2०14 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद महज रघुवर दास ऐसे पहले सीएम रहे, जिन्होंने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया।
राज्य बनने के शुरूआती दौर में राजनीतिक स्थिति बेहद खराब थी। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक निर्दलीय विधायक मधु कौड़ा भी अस्थिर राजनीतिक समीकरणों के चलते एक साल से अधिक समय तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे। इसका परिणाम यह हुआ कि वह भ्रष्टाचार में डूबे रहे और राज्य का विकास अवरूद्ब होता रहा। मधु कौड़ा पर भ्रष्टाचार का मामला अभी भी चल रहा है और कोर्ट ने उन्हें चुनाव में भाग लेने की अनुमति नहीं दी थी। लेकिन 2०14 के बाद जिस तरह बीजेपी सरकार ने पांच साल पूरे किए हैं, उसकी वजह से राज्य के विकास में कुछ स्थिरता देखने को मिली। रघुवर दास ने पांच साल तक राज्य का मुख्यमंत्री रहने के दौरान केंद्र की कई बड़ी योजनाओं को राज्य में लागू किया। इसके अलावा मेडिकल, शिक्षा के साथ-साथ दूसरे क्षेत्रों में कई बड़े काम किए, जिससे विकास के मामले में झारखंड की स्थिति देश के कई अन्य राज्यों से अच्छी है। राज्य भरपूर संपदा से भरा हुआ है। अगर, राज्य में राजनीतिक स्थिरता बनी रहे तो इस संपदा के बल पर राज्य और भी कई नए आयाम छू सकता है। राज्य से गरीबी को खत्म किया जा सकता है। झारखंड कोयला और लौह अस्यक के भंडारों से परिपूर्ण राज्य है। इसीलिए इस बात की जरूरत है कि इसका कैसे उचित प्रयोग हो, जिसके बल पर राज्य की गरीबी को दूर किया जा सके।
इस बार हो रहे चुनावों के बाद क्या परिणाम सामने आएंगे, इसका पता आगामी 23 दिसंबर को लग जाएगा। सरकार बनाने को लेकर राजनीतिक स्थिरता देखने को मिलती है या फिर राजनीतिक अस्थिरता। क्योंकि यही ऐसे समीकरण होंगे, जिसके बूते राज्य में सरकार का स्वरूप तय हो पाएगा। महाराष्ट् का उदाहरण हमारे सामने है। अलग-अलग विचारधारा की पार्टियों ने वहां मिलकर सरकार बनाई है। देश में ऐसी सरकारों की स्थिति पहले भी देखने को मिली है और आने वाले दिनों में भी देखने को मिलेगी। निश्चित ही, वैचारिक मतभेदों के चलते खिचड़ी सरकारों में विकास को बेहतर गति देने में दिक्कतें आती ही हैं। झारखंड राज्य में अभी चार चरणों का चुनाव बचा हुआ है। पहले चरण में जिस प्रकार शांतिपूर्ण तरीके से चुनाव संपन्न हुआ, उसमें पुलिस-प्रशासन व सुरक्षा बलों की भी तारीफ करनी होगी कि उन्होंने अपने निगरानी तंत्र को कितना पुख्ता किया होगा, जिसमें खराब इरादे रखे नक्सलियों को किसी भी घटना को अंजाम देने का मौका तक नहीं मिला। अगर, आगामी चरण के चुनाव भी इसी तरह से शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न होते रहे और मतदाता बैखौफ रूप से अपने मत का प्रयोग करने के लिए घरों से बाहर निकलते रहे तो निश्चित ही यह लोकतंत्र की मजबूती के लिए बहुत अच्छा साबित होगा।