ट्रंप प्रशासन के साथ मोदी की चुनौती
देवानंद सिंह
भारत और अमेरिका के संबंध पिछले कुछ वर्षों में कड़ी परीक्षा से गुज़रे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के दौरान भारत को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा। ट्रंप की व्यापारिक नीतियां, खासकर टैरिफ़ बढ़ाने की घोषणा, भारत के लिए एक बड़ा मुद्दा रही हैं। इसके बावजूद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरी सावधानी से अपनी रणनीतियां अपनाई हैं, ताकि भारत की अर्थव्यवस्था और विदेश नीति दोनों सुरक्षित रहें। मोदी के आगामी व्हाइट हाउस दौरे के बीच, भारत को ट्रंप प्रशासन के साथ अपने रिश्तों को बेहतर बनाने की जरूरत है, क्योंकि कई पहलुओं में दोनों देशों के हित टकरा भी रहे हैं।
अमेरिका के राष्ट्रपति बनने के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने व्यापारिक दृष्टिकोण से कई देशों के साथ अपना रुख कठोर किया। खासकर, उन्होंने विभिन्न देशों पर टैरिफ़ बढ़ाने की घोषणाएं की, जिसमें भारत भी शामिल था। अमेरिका में स्टील और एल्युमिनियम जैसे उत्पादों पर जो टैरिफ़ लागू किए गए, उनका सीधा असर भारतीय उत्पादों पर पड़ा है। ट्रंप का मानना है कि अमेरिका के ट्रेड सरप्लस को नुकसान पहुंचाने वाले देशों को इसके खिलाफ कदम उठाना चाहिए और इसी कारण वे भारत को व्यापारिक दृष्टिकोण से ‘टैरिफ किंग’ जैसे शब्दों से नवाज़ चुके हैं। भारत के लिए यह स्थिति चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक रिश्तों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। भारत अमेरिकी उत्पादों की खरीद में लगातार बढ़ोतरी कर रहा है, लेकिन ट्रंप प्रशासन इस बात से असंतुष्ट है कि भारत का ट्रेड सरप्लस अमेरिका के साथ बढ़ता जा रहा है। यही कारण है कि उन्होंने भारत से आयात शुल्क कम करने का दबाव डाला है।
नरेंद्र मोदी सरकार ने इस चुनौती को बड़े धैर्य और रणनीतिक चातुर्य से संभाला है। मोदी के अमेरिका जाने से पहले, भारत ने कई आर्थिक कदम उठाए, जैसे कि अमेरिकी बाइक निर्माता हार्ले डेविडसन से टैरिफ़ कम करने की घोषणा। इसके अलावा, भारत ने अमेरिकी व्हिस्की और अन्य उत्पादों पर आयात शुल्क कम करने की संभावना जताई है। ये कदम अमेरिका को संकेत देते हैं कि भारत व्यापारिक रिश्तों में सुधार के लिए तैयार है।हालांकि, मोदी सरकार ने ट्रंप के खिलाफ किसी भी तरह की सार्वजनिक आलोचना से बचते हुए एक संयमित और सतर्क रणनीति अपनाई है, जिसके अंतर्गत भारत ने आलोचनाओं का जवाब देने के बजाय, यह सुनिश्चित किया कि मुद्दों को परिपक्वता और चतुराई से सुलझाया जाए।
बता दें कि भारत और अमेरिका के बीच व्यापार घाटा एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। पिछले वर्ष, भारत के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा 45 अरब डॉलर तक पहुंच गया था, हालांकि अमेरिका का सबसे बड़ा व्यापार घाटा चीन के साथ है। इस घाटे को कम करने के लिए ट्रंप प्रशासन ने भारत पर दबाव डाला है। वहीं, भारत के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह अपने ट्रेड सरप्लस को बनाए रखे, क्योंकि यह उसकी अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद है।
इसके अलावा, रक्षा संबंधों में भी दोनों देशों के बीच तनाव हैं। ट्रंप चाहते हैं कि भारत अमेरिका से ज्यादा से ज्यादा रक्षा उपकरण खरीदे, जबकि मोदी सरकार का जोर ‘मेक इन इंडिया’ की नीति पर है। भारत चाहता है कि वह अपनी रक्षा जरूरतों के लिए घरेलू उत्पादन को बढ़ावा दे, बजाय इसके कि वह पूरी तरह से विदेशी उत्पादों पर निर्भर हो।
हालांकि, ट्रंप के पहले कार्यकाल में कुछ सकारात्मक पहलू भी थे, जैसे कि भारत को ड्रोन तकनीक जैसी रक्षा सामग्री मिलने की प्रक्रिया में तेजी। फिर भी, मोदी सरकार के लिए यह एक चुनौतीपूर्ण स्थिति है, क्योंकि ट्रंप की नीति और भारत की नीति आपस में टकराती हैं। भारत और अमेरिका के रिश्ते केवल व्यापार और रक्षा तक सीमित नहीं हैं। मोदी सरकार ने अमेरिका से अपनी रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत किया है, विशेष रूप से तकनीकी और ऊर्जा के क्षेत्रों में। अमेरिका की कंपनियां भारत में निवेश कर रही हैं और भारत ने भी अपनी अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए अमेरिकी सहयोग को प्राथमिकता दी है। इसके अलावा, भारत ने हाल ही में अपने परमाणु जवाबदेही कानून में संशोधन किया, जिससे अमेरिकी कंपनियों को फायदा होगा। इसके बावजूद, ट्रंप की नीतियां भारत के लिए एक चुनौती बनी हुई हैं। उनका ‘अमेरिका फर्स्ट’ दृष्टिकोण भारत के घरेलू उत्पादन और विकास योजनाओं के खिलाफ जाता है। हालांकि, मोदी सरकार ने हमेशा यह सुनिश्चित किया है कि वह इन मुद्दों पर अपने हितों का पालन करते हुए अमेरिका के साथ संबंधों को बेहतर बनाए रखने का प्रयास करेगी।
नरेंद्र मोदी के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह ट्रंप को भारत के हितों पर चोट करने से कैसे रोक सकते हैं। व्यापारिक और रक्षा संबंधों में हो रही कठिनाइयां, भारत के लिए एक जटिल स्थिति उत्पन्न कर रही हैं। अमेरिका के साथ रिश्तों को सुधारने के बावजूद, मोदी को यह सुनिश्चित करना होगा कि भारत की विदेश नीति और आर्थिक नीतियां सुरक्षित रहें। मोदी सरकार को चाहिए कि वह अपने कूटनीतिक कौशल का उपयोग करते हुए दोनों देशों के बीच संतुलन बनाए रखे, ताकि भारत की आर्थिक और सामरिक सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। इस समय, भारत को चाहिए कि वह अमेरिका के साथ अपनी साझेदारी को मज़बूती से आगे बढ़ाए, लेकिन यह भी ध्यान रखे कि अपने घरेलू हितों की रक्षा करने में कोई समझौता न हो।