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    Home » सियासी समीकरण बनाने की कवायद
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    सियासी समीकरण बनाने की कवायद

    Devanand SinghBy Devanand SinghJuly 29, 2021No Comments5 Mins Read
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    आखिरी काॅलम………………….
    सियासी समीकरण बनाने की कवायद
    बिशन पपोला
    आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर उत्तर-प्रदेश में सियासी सरगर्मी तेज हो गई है। राजनीतिक पार्टियां अपने सियासी समीकरण बनाने में जुट गईं हैं। इसमें न तो बीजेपी पीछे है और न ही प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी। कांग्रेस और बसपा इन दोनों के साथ दौड़ में शामिल होंगी, ऐसा कम ही नजर आ रहा है, इसीलिए वर्तमान परिस्थितियों में जो राजनीतिक परिदृश्य दिख रहा है, उसमें असली फाइट तो बीजेपी और सपा के बीच ही होगी। पर यहां महत्वपूर्ण सवाल यह कि अलग-अलग जाति-धर्म में बंटे उत्तर-प्रदेश में सियासी समीकरणों को भुनाने में छोटी पार्टियां महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली हैं। हम सबने कुछ दिनों पहले देखा कि सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने असदुद्धीन ओवैसी को बड़ा नेता बताया था। और दूसरी तरफ, सपा प्रमुख अखिलेश यादव बड़ी पार्टियों के बजाय छोटी पार्टियों से हाथ मिलाने का संकेत दे चुके हैं। यहां तक कि उन्होंने आम आदमी पार्टी से समझौता करने का शिगूफा भी छोड़ा है। शायद, आप नेता संजय सिंह जब लखनउ जाकर अखिलेश यादव से मिले तो इसी दौरान उनकी गठबंधन को लेकर बातचीत हो गई हो, इसीलिए अखिलेश आम आदमी पार्टी से भी गठबंधन को लेकर उत्साहित दिख रहे हैं।
    जहां तक योगी आदित्यनाथ द्वारा ओवैसी को बड़ा नेता बताने का सवाल है, उसका भी सीधा-सा मतलब सियासी समीकरणों को भुनाना ही था यानि मुस्लिम वोटर्स में सेंध लगाने की थी। वैसे, अमुमन ऐसा कम ही देखा गया है कि योगी आदित्यनाथ ने ओवैसी को लेकर इतनी बड़ी बात कही हो। पर यह चुनावी मौसम है। यहां वोट के लिए कुछ भी किया जा सकता है। ऐसा लग रहा था कि ओवैसी यूपी में बीेजेपी को फायदा दे सकते हैं, लेकिन अब ऐसा दिख नहीं रहा है, क्योंकि जिस तरह अब असदुद्दीन ओबैसी की आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन-एआईएमआईएम ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन की शर्त रखी है, उससे लगता है कि सपा का पाला मजबूत होने वाला है। वैसे भी, सूबे में 20 फीसदी मुसलमान वोटर हैं। मुस्लिम समुदाय को वैसे भी सपा का वोटर माना जाता है। अगर, ओवैसी सपा से हाथ मिला लेते हैं तो निश्चित ही मुस्लिम वोटर सपा के पाले में ही जाएंगे। ओवैसी की एआईएमआईएम वर्तमान में ओम प्रकाश राजभर के नेतृत्व वाली भागीदारी संकल्प मोर्चा का हिस्सा है, जिसमें भारतीय वंचित समाज पार्टी, भारतीय मानव समाज पार्टी, जनता क्रांति पार्टी (आर) और राष्ट्र उदय पार्टी जैसे घटक दल हैं। अखिलेश की दिलचस्पी इन घटकों में बड़ी है तो उन्हें ओवैसी से भी हाथ मिलाना पड़ेगा। ओवैसी भी देश के सबसे बड़े राज्य में अपनी राजनीतिक जमीन सेट करना चाहते हैं। शायद, इससे अच्छा मौका उन्हें मिल नहीं सकता है। और सपा से उनके हाथ मिलाने की मजबूरी इसीलिए भी है, क्योंकि अधिकांश मुस्लिम वोटर सपा को चाहता है। अगर, ओवैसी सपा के खिलाफ राज्य में चुनावी ताल ठोंकते हैं तो यह ओवैसी के लिए मुश्किल ही होगा, क्योंकि मुस्लिम वोटर उनके पाले में कम ही दिलचस्पी दिखाएगा।
    इसीलिए ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम की सपा के प्रति दिलचस्पी अधिक नहीं चैंकाती है। एआईएमआईएम उत्तर प्रदेश इकाई के प्रमुख शौकत अली ने बकायदा सपा के साथ समझौते के लिए अपने पत्ते भी खोल दिए हैं। उन्होंने एक बड़े अंग्रेजी दैनिक समाचार पत्र से बातचीत में कहा- अगर, समाजवादी पार्टी, भागीदारी संकल्प मोर्चा के किसी एक मुस्लिम विधायक को उपमुख्यमंत्री बनाने के लिए तैयार होती है तो वह अखिलेश यादव की पार्टी के साथ गठबंधन के लिए तैयार हैं। उन्होंने बताया कि ओबैसी अगस्त में उत्तर प्रदेश का दौरा करेंगे। इस बारे में वे आगे बात कर सकते हैं। ओबैसी ने कुछ दिनों पहले बहराइच और उत्तर प्रदेश के अन्य क्षेत्रों का दौरा किया था और राज्य के लिए एक नये पार्टी कार्यालय का उद्धाटन किया था। ओबैसी के अगस्त के दौरे के दौरान प्रयागराज, फतेहपुर और कौशांबी जाने की उम्मीद है, जहां वह मुसलमान, दलित, पिछड़े वर्ग के लोगों और डॉक्टरों, इंजीनियरों जैसे पेशेवरों के साथ बैठक करेंगे। शौकट अली ने कहा-एआईएमआईएम ने उत्तर प्रदेश में एक सांगठनिक ढांचा तैयार किया है और सभी 75 जिलों में पार्टी इकाइयां और संबंधित प्रमुख हैं। उन्होंने कहा कि अगर, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को रोकना है तो भागीदारी मोर्चा को सपा व बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ना होगा । यह राज्य में 20 फीसदी मुस्लिम वोटरों को मजबूत करने में मदद करेगा।
    सपा जिस तरह से कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के बाद राज्य में हार चुकी है, ऐसे में अखिलेश नहीं चाहते कि कांग्रेस के साथ गठबंधन किया जाए। उनका साफतौर पर मानना है कि बड़ी पार्टी से गठबंधन करने का नुकसान होता है। वह सीटें ज्यादा मांगती हैं और हारती ज्यादा हैं, इसीलिए उनका टारगेट छोटे-छोटे दलों पर रहेगा। उधर, कांग्रेस का बसपा से गंठबंधन नहीं होने वाला है। यानि कुछ मिलाकर ये दोनों ही पार्टियां चुनाव में भाग जरूर लेंगी, लेकिन अपने दम पर कुछ कर पाएंगी, ऐसा बिल्कुल भी नहीं लगता है। और ये किसके साथ गठबंधन करेंगे, यह भी अभी साफ नहीं है। वहीं, दूसरी पार्टियां भी इनसे गठबंधन में रूचि दिखाएं, ऐसा भी नहीं लगता है। एआईएमआईएम नेता ने कांग्रेस के साथ गठबंधन से इनकार करते हुए उसे ’’डूबता हुआ जहाज’’ कहा और आम आदमी पार्टी (आप) का भी उत्तर प्रदेश में कोई आधार नहीं बताया। ओबैसी ने पहले घोषणा की थी कि एआईएमआईएम उत्तर प्रदेश में 100 सीट पर चुनाव लड़ेगी। एआईएमआईएम प्रमुख ने पिछले महीने एक चुनौती दी थी कि वह उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को सत्ता में वापस नहीं आने देंगे। तब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चुनौती स्वीकार करते हुए न केवल ओवैसी को बड़ा नेता बताया, बल्कि बीजेपी द्वारा 300 से अधिक सीटें जीतकर राज्य में सरकार बनाने का दावा भी किया। इसीलिए ताल दोनों तरफ से मजबूत है। पर यहां सवाल तो बहुमत का होगा। या वह अपने दम पर लाया गया बहुमत हो या फिर गठबंधन के दम पर। सेहरा उसी के सिर पर बंधेगा।

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