दलाली तंत्र में धराशाही हुए पत्रकारिता के सरोकार
देवानंद सिंह
पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा गया है। क्योंकि देश की आजादी में पत्रकारिता ने अहम भूमिका अदा की थी, लेकिन आज जिस तरह पत्रकारिता का स्वरूप बदल गया है, उसने पत्रकारिता को बदनाम कर दिया है। पत्रकारिता के नाम पर दलाली तंत्र इस तरह हावी है कि उसने पत्रकारिता के सभी सरोकारों को धराशाही कर दिया है। खबरों का जनहित से बिल्कुल भी सरोकार नहीं रहा है बल्कि आज वसूली के लिए खबरें चलाईं जा रहीं हैं। और सत्ता में बैठे लोगों की चरणवंदना की जा रही है, जिससे खुद की जेब भरी जा सके। प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया, सभी तरह के प्लेटफार्म का यही हाल है। ऐसे लोगों के वर्चस्व ने आज सही पत्रकारिता करने वाले लोग गुम से होते जा रहे हैं। हम सब आमतौर पर देखते हैं कि टीवी चैनलों पर जिस तरह डिबेट के नाम पर जहर परोसा जा रहा है, वाकई वह बहुत शर्मनाक है। टीवी एंकर जिस तरह से स्वयं को पेश करते हैं, उससे तो लगता है कि ये भारत के सबसे बड़े भाग्य विधाता हो गए हैं। लाइव शो के दौरान घटित घटनाएं और टीवी एंकरो का स्वभाव इसी तरह का संदेश देता है। ऐसी घटनाओं के लिए कोई और जिम्मेदार नहीं है, बल्कि न्यूज एंकर ही जिम्मेदार हैं। पत्रकारिता से पूरी चाटुकारिता झलकती है। जिस तरह से न्यूज एंकर खुलेतौर पर सरकार की भाषा बोलते हैं, उससे असल पत्रकारिता करने वालों का दिल सच में रोता होगा। दलाल पत्रकारों के इस दौर में आज असली मुद्दों के लिए कोई जगह नहीं बची है। टीवी एंकर भी सही मुद्दों को छोड़कर अनर्गल विषयों पर डिबेट चलाकर नेताओं को मुर्गे के तरह लड़ा रहे हैं, उसने पत्रकारिता के स्तर को एकदम गिरा दिया है। सरकार के प्रवक्ताओं की तरह जिस तरह ये एंकर मुद्दों को उठा रहे हैं, उसने पत्रकारिता के प्रति आम लोगों के मन में सम्मान एकदम कम कर दिया है, क्योंकि इन टीवी चैनलों में आज आम आदमी के मुद्दे हैं ही नहीं, आम आदमी की कोई बात नहीं कर रहा है, केवल सरकार द्वारा प्रस्तावित मुद्दों पर ही डिबेट कराई जा रही है, उसमें भी न्यूज एंकर सरकार का पक्ष लेकर बैठ जाते हैं, और सबसे बड़ी बात यह है कि विपक्ष को कुछ बोलने का मौका तक नहीं दिया जा रहा है। अगर, मौका मिल गया तो उसके तर्क को सुनने के बजाय ये न्यूज एंकर कुतर्क करने लगते हैं। गला फाड़ फाड़ कर चिल्लाने लगते हैं। यह कैसा भारत बना रहे हैं हमारे न्यूज एंकर। देश आज आर्थिक मंदी, बेरोजगारी और महंगाई जैसी समस्याओं से जूझ रहा है। ये मुद्दे इन न्यूज एंकरों के न्यूज रूम से बिलकुल गायब हो गए हैं। अपने को इतना ही देश का बड़ा पत्रकार मानने वाले ये पत्रकार इन मुद्दों पर सरकार से सवाल पूछने की हिम्मत क्यों नहीं करते हैं ? हिंदू, मुसलमान और पाकिस्तान करने से न तो देश की अर्थ व्यवस्था सुधरेगी, न रोजगार बढ़ेंगे और न ही महंगाई घटेगी। पर इन सरकार के प्रवक्ता न्यूज एंकरों को इससे क्या लेना देना, इनकी तो झोली भर रही है। इसीलिए इन्हें जहर उगलने से भी क्या परहेज। ये कहानी केवल एक चैनल की नहीं है, बल्कि अधिकांश न्यूज चैनलों की है। सत्ता की चाटुकारिता में जुटे इन पत्रकारों को समझना चाहिए कि सरकार तो आती जाती रहती है, पर आप अपना पत्रकारिता का धर्म निभाओ न कि सरकार की चाटुकारिता में डूब जाओ। इससे पत्रकारिता के साथ-साथ आम जन की उम्मीदें भी धराशाही हो रही हैं। जमशेदपुर के साथ-साथ पूरे देश में पत्रकारिता का यही हाल हो गया है।पत्रकारिता के नाम पर दलाली तंत्र इस तरह हावी है कि उसने पत्रकारिता के सभी सरोकारों को धराशाही कर दिया है। जमशेदपुर में पत्रकारिता में इस तरह का दलाली तंत्र कुछ ज्यादा ही हावी है।पत्रकारिता की भाषा में एक बात कही जाती है कि कुत्ते ने आदमी को काटा तो वह खबर नहीं बन सकती है, जबकि अगर आदमी ने कुत्ते को काटा तो वह खबर बन सकती है। यह इसीलिए कहा जाता है, क्योंकि कुत्ते का नेचर ही काटना होता है, जबकि आदमी का नेचर ऐसा नहीं होता है, इसीलिए आदमी काटने लगे तो वह खबर बनती है। इसको यूं भी कह सकते हैं कि अगर कोई अधिकारी काम कर रहा है तो वह खबर क्यों बने, जबकि अधिकारी काम नहीं कर रहा है तो उसे खबर बनाना चाहिए, क्योंकि सरकार अधिकारियों को काम करने के लिए ही तनख्वाह देती है, इसीलिए उसका दायित्व है कि वह काम करे, इसीलिए यह कौन-सी खबर है कि फलाने अधिकारी ने काम किया। खबर उसे बनाना चाहिए, जो अधिकारी काम के बगैर मुफ्त में तनख्वाह ले रहे हैं।
कुल मिलाकर,हम कह सकते हैं कि पत्रकारिता के बदलते स्वरुप में आज भी लोहनगरी के लोग स्वर्गीय ब्रह्मदेव सिंह शर्मा (गुरु जी)स्वर्गीय महेश ख़िरवाल स्वर्गीय मोहम्मद इलियास स्वर्गीय देवी चटर्जी ,इंद्र मोहन झा , चंदन दास आदि कई ऐसे नाम है जिने लोग आज भी श्रद्धा पूर्वक याद करते हैं परंतु आज जिस तरह पत्रकारिता के स्वरूप का अंत होता जा रहा है, उसमें आम जनता के विषय खत्म ही होते जा रहे हैं, क्योंकि दलाल पत्रकारों की जेब आम आदमी के मुद्दे उठाकर कहां भरने वाली है,वे मीडिया ट्रायल करने से बाज नहीं आयगे,
जब वो नेताओं और अधिकारियों की चाटुकारिता करेंगे, तभी उनकी जेब गरम होगी जमशेदपुर की पत्रकारिता में इस तरह का दलाली तंत्र कुछ ज्यादा ही हावी है।जमशेदपुर में पत्रकारिता की गरिमा को अगर बचाना है तो वरिष्ठ पत्रकारकों के साथ साथ पत्रकारों से जुड़े संगठन को इस में हस्तक्षेप करने की जरूरत है