सेल्फी कल्चर ने पत्रकारिता का कबाड़ा निकाला
धीरेंद्र कुमार
पत्रकार एक ऐसी प्रजाती है, जिसकी सत्ता और व्यवस्था से दुश्मनी प्राकृतिक देन है। पत्रकार जनहित में कभी भी सत्ता से खुश नहीं होता। इसे लोकतंत्र का चौथा खंभा माना जाता है। प्रजातंत्र की सबसे मजबूत कड़ी है पत्रकारिता। लोकतंत्र के बाकी तीनों कड़ियों की कुछ अपनी सीमाएं हैं, बंदिशे हैं। पत्रकार सीमा से बाहर है। इसे शासन में कमी निकालने की अघोषित आजादी है। लंबे समय तक सत्ता पत्रकार के इस गुण का आदर करती थी। इसके पीछे ‘निंदक नियरे राखिए आंगन कुटीर छवाए’ की भवना होती होगी।
लेकिन निरंकुश शासन ने सत्ता को मदमस्त कर दिया। निंदक अब प्रिय नहीं है। इधर सुख की चाहत में पत्रकार ‘चालिसा’ गाने लगा। ‘चालिसा’ गाने वाला शख्स एंद्राजालिक सुख का कायल होता चला गया। सत्ता सुख का पर्याय बन चला। निरंकुश सत्ता अब निंदक से चिढ़ने लगी। निंदक का अब दमन होने लगा। इसी दमन की नीति ने हर किसी को सत्ता के सामने घुटने टेकने पर मजबूर किया।
नई आर्थिक नीति की चकाचौंध ने नमक रोटी खाने वाले पत्रकार की जेब पर करारा प्रहार किया। नई सोच ने इस मानवीय सेवा वाली कारोबार को मुनाफा वाला धंधा में बदल दिया।
आज मालिक का दबाव, या फिर निजी हसरत की उड़ान ने पत्रकारों को नेताओं की परिक्रमा करने वाली टीम में तब्दील कर दिया है। पहले प्रणाम फिर प्रश्न। रिपोर्टर से लेकर संपादक तक के लिए काम करने का नया फॉर्मूला है।
सेल्फी कल्चर ने सवाल के साथ चेहरे पर हमेशा छाए रहने वाले आक्रोश को पत्रकार के चेहरे से गायब कर दिया। चेहरे पर छद्म मुस्कुराहट लिए पत्रकार अब नेता के सामने दुम हिलाने वाला दोपाया जानवर है। हालात ऐसे हैं कि दूर से भी मोबाइल कैमरे की लेंस में अगर नेता जी और पत्रकाए एक साथ समा रहे हैं तो फोटो खींच लो। मालिक से लेकर नौकरशाह तक के यहां इसकी मार्केंटिंग काएदे से की जा सकेगी। बाजार हावी है, खबर से लेकर तस्वीर तक में पहले बाजार को तलाशा जाता है।
देश की 12 करोड़ से अधिक आबादी को साल में एक जोड़ी कपड़ा नसीब है। चुनावी के समय हर आदमी को साल में एक जोड़ी धोती कुर्ता देने का पार्टियों का वादा करती हैं। देश का यह नंगा सच कभी किसी अखबार या टीवी चैनल की सुर्खियां नहीं बनती।
40 करोड़ अबादी दो जून की रोटी साल के 365 दिन नहीं जुटा पाता। ये किसी अखबार और खबरिया चैनल के लिए कोई खबर नहीं है। 12 लाख लोगों के पास देश की कुल संपत्ति का 80 फीसदी कैद है, किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। प्रेस कॉन्फ्रेंस में सत्ता जो कहना चाहती वही कहती है। सवाल का दौर सेल्फी के नाम है।