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    केजरीवाल के सामने अपनी सीट बचाने की चुनौती

    News DeskBy News DeskJanuary 30, 2025No Comments6 Mins Read
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    केजरीवाल के सामने अपनी सीट बचाने की चुनौती

    देवानंद सिंह
    दिल्ली विधानसभा के चुनाव की जैसी ही उल्टी गिनती शुरू हुई है, तब राजधानी में सियासी सरगर्मी और तेज हो गई है। हर सीट पर कड़ी टक्कर की उम्मीद जताई जा रही है, लेकिन एक जिस खास सीट की सबसे अधिक चर्चा हो रही है, उसमें नई दिल्ली विधानसभा सीट है। नई दिल्ली विधानसभा सीट दिल्ली के सबसे महत्वपूर्ण चुनाव क्षेत्रों में से एक मानी जाती है। इस सीट की चर्चा इसीलिए भी हो रही है, क्योंकि इस सीट से दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल चुनावी मैदान में हैं। उनके खिलाफ बीजेपी के प्रवेश वर्मा और कांग्रेस के संदीप दीक्षित जैसे प्रमुख नाम भी शामिल हैं। दूसरा, यह सीट न केवल अपने क्षेत्रीय आकार और निर्वाचन क्षेत्र के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है, बल्कि यहां के चुनावी इतिहास और राजनीतिक महत्व ने भी इसे एक विशेष सीट बना दिया है। इस सीट से इस बार कुल 23 उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं, इसलिए इस सीट पर मुकाबला काफी कड़ा होगा, इसमें कोई शक नहीं है।

    इस सीट के इतिहास की बात करें तो इसका इतिहास काफी दिलचस्प रहा है। 1993 में जब कीर्ति आज़ाद ने इस सीट से जीत हासिल की थी, तो बीजेपी ने दिल्ली में सरकार बनाई थी। इसके बाद 1998 से लेकर 2013 तक शीला दीक्षित का दबदबा रहा, जिन्होंने इस सीट से लगातार जीत हासिल की और दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं। 2013 में अरविंद केजरीवाल ने शीला दीक्षित को हराया और आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में अपनी पहली बड़ी जीत हासिल की। 2015 और 2020 में भी केजरीवाल ने इस सीट से जीत दर्ज की और दिल्ली के मुख्यमंत्री बने।

     

     

    केजरीवाल की लगातार जीत ने इस सीट को दिल्ली में सरकार बनाने के एक प्रतीक रूप में प्रस्तुत किया है। 2020 के चुनाव में उन्होंने 61.10 प्रतिशत वोट हासिल किए थे, जबकि 2015 में यह आंकड़ा 64.34 प्रतिशत था। इन आंकड़ों से यह साफ होता है कि केजरीवाल ने इस सीट पर जनसमर्थन का एक मजबूत आधार बना लिया है। लेकिन, इस बार स्थिति थोड़ी अलग नजर आ रही है, क्योंकि विरोधी दलों ने भी पूरी ताकत इस सीट पर लगाई हुई है, इसीलिए इस बार नई दिल्ली विधानसभा सीट पर चुनावी मुकाबला बेहद दिलचस्प है। आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल इस बार भी अपनी पार्टी की उम्मीदों को पूरा करने की कोशिश में जुटे हुए हैं। वहीं, बीजेपी ने पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा को उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस ने अपनी उम्मीदवारी के रूप में शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित को मैदान में उतारा है। इन तीन प्रमुख उम्मीदवारों के बीच अब चुनावी मुकाबला काफी कड़ा हो गया है।

    अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की राजनीति में एक नई पहचान बनाई है। उनके नेतृत्व में आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के कई मुद्दों पर जनता का ध्यान आकर्षित किया और उन्हें एक विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया। हालांकि, भ्रष्टाचार के आरोपों और शराब घोटाले जैसी घटनाओं के बाद केजरीवाल के सामने अब सत्ता बनाए रखने की चुनौती और भी बढ़ गई है, लेकिन उनके लिए यह सीट विशेष महत्व रखती है, क्योंकि यदि वह इस सीट पर हार गए, तो यह उनकी राजनीतिक साख पर बड़ा सवाल खड़ा कर देगा। बीजेपी के प्रवेश वर्मा ने भी चुनावी मैदान में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। वर्मा एक बार सांसद रह चुके हैं, अब इस सीट पर अपनी पार्टी का परचम लहराने की कोशिश कर रहे हैं। बीजेपी की रणनीति स्पष्ट है – वे इस सीट पर केजरीवाल को चुनौती देने के लिए सभी संसाधनों का उपयोग कर रहे हैं। प्रवेश वर्मा का यह दावा है कि वह शीला दीक्षित के बाद दिल्ली के विकास में योगदान देने के लिए तैयार हैं। कांग्रेस की उम्मीदवारी संदीप दीक्षित के रूप में है, जो शीला दीक्षित के बेटे हैं। कांग्रेस का यह प्रयास है कि वह अपनी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाते हुए इस सीट पर एक बार फिर से अपनी पकड़ मजबूत करें। हालांकि, कांग्रेस की स्थिति इस बार कमजोर दिख रही है, क्योंकि आम आदमी पार्टी और बीजेपी दोनों ही इस सीट पर काफी सक्रिय हैं।

     

     

    अगर, चुनावी समीकरणों की बात करें तो नई दिल्ली विधानसभा सीट पर जातिगत और सामुदायिक समीकरण भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इस क्षेत्र में वाल्मिकी और धोबी समुदाय के मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। अनुमान है कि वाल्मिकी मतदाताओं की संख्या करीब 20,000 हो सकती है, जबकि धोबी समुदाय के मतदाता लगभग 15,000 के आसपास हैं। इन समुदायों का रुख इस बार की चुनावी दिशा तय करने में अहम हो सकता है। केजरीवाल ने धोबी समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण घोषणा की है। उन्होंने धोबी कल्याण बोर्ड बनाने का वादा किया है, जो धोबी समाज की समस्याओं का समाधान करेगा। इससे इस समुदाय के मतदाताओं में केजरीवाल के प्रति समर्थन बढ़ सकता है। वहीं, वाल्मिकी समाज के मतदाता बीजेपी की तरफ झुकते हुए नजर आ रहे हैं। इस बदलाव का असर चुनाव परिणामों पर पड़ सकता है।

     

     

    यह कहना गलत नहीं होगा कि चुनाव प्रचार में इस बार दोनों प्रमुख दलों – आम आदमी पार्टी और बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत झोंकी है। आम आदमी पार्टी अपने स्वयंसेवकों के जरिए मतदाताओं से सीधे संपर्क में है और उन्हें विभिन्न योजनाओं के बारे में बता रही है। बीजेपी भी अपनी तरफ से विभिन्न योजनाओं का प्रचार कर रही है, जैसे कि लाडली योजना और स्वास्थ्य कैम्प्स के माध्यम से मतदाताओं के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है।प्रवेश वर्मा के एनजीओ द्वारा हेल्थ कैम्प्स लगाना और विभिन्न योजनाओं का प्रचार करना बीजेपी की एक मजबूत चुनावी रणनीति के रूप में सामने आया है। इस तरह के प्रयास मतदाताओं को आकर्षित करने में महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं।

    कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि नई दिल्ली विधानसभा सीट पर इस बार चुनावी मुकाबला बेहद कड़ा है। अरविंद केजरीवाल के लिए यह सीट अपनी साख बचाने की चुनौती बन चुकी है, जबकि बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने इस बार पूरी ताकत झोंकी है। इस सीट पर वाल्मिकी और धोबी समुदाय के मतदाता निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं, और इन समुदायों के रुख के आधार पर चुनाव परिणाम बदल सकते हैं। इस बार के चुनाव में कौन विजयी होगा, यह कहना कठिन है, लेकिन एक बात निश्चित है कि इस सीट पर मुकाबला कड़ा रहेगा और इसका असर दिल्ली की राजनीति पर गहरा प्रभाव डालने वाला होगा।

    केजरीवाल के सामने अपनी सीट बचाने की चुनौती
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