जमीन पर ‘बिछा’ काशी फूल, मतलब वर्षा ऋतु की विदाई और मां दुर्गा का आगमन
बहरागोड़ा । पाथरी पंचायत के मधुआबेड़ा गाँव में में छाये सफेद और नीले बादलों के साथ धरती पर चारों तरफ फैले सफेद काशी के फुल वर्षा ऋतु की विदाई और मां दुर्गा के आगमन का अहसास कर रहे हैं। पहाड़, नदियों के किनारे और खेत की मेड तथा खाली पड़े बंजर जमीन में बिछा काशी फुल का सफेद मखमली चादर सहज ही सभी को आकर्षित कर रहा है।
काशी फूल को मां दुर्गा देवी भगवती का स्वागत पुष्प माना जाता है। शारदीय नवरात्र के पहले मां भवानी के स्वागत के लिए काशी फूल धरातल पर हरे चादर में सफेद कालीन की तरह बिछ जाते है। धरती मानो हरियाली में सफेदी को लिए इठला रही होती है।
बहरागोड़ा प्रखण्ड के ग्रामीण क्षेत्र पर काशी फुल को देख ब्याहता के मन में उत्साह का संचार: लोक कथाओं और परंपराओं में काशी फुल की मान्यता रही है। भद्र के महीने में दूर खेत की मेड़ पर काशी के फूल देख ब्याहता को ऐसा आभास होता है
झारखंड की परंपरा संस्कृति में काशी फूल का जन्म से लेकर मरण तक की विधि-विधान में विशेष महत्व है काशी फुल को लेकर कई लोकगीत भी प्रचलित है। झारखंड की संस्कृति में प्रकृति का खास महत्व है, प्रकृति के प्रत्येक पेड-पौधे और घास का विशेष महत्व रहा है। इसमें काशी फुल भी सभी को कभी आकर्षित करता है। कई फिल्मों में भी काशी फुल का मनोहारी दृश्य सभी को लुभाता है, हर क्षेत्र में इसका खास महत्व है। शुभ कार्य में काशी के पत्ते और फुल का उपयोग किया जाता है। काशी फूल को मां दुर्गा देवी भगवती का स्वागत पुष्प माना जाता है