भागवत कथा से क्षेत्र हुआ भक्तिमय
नाला/जामताड़ा: क्षेत्र के बाबुडीह गांव स्थित हरि मंदिर परिसर में सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा सह प्रवचन का आयोजन से बाबुडीह के अलावा आसपास क्षेत्र में भक्तिरुपी गंगा प्रवाहित होने लगी है। इस धार्मिक कार्यक्रम के प्रस्तुत कथा के चतुर्थ दिन के अवसर पर नवद्वीप धाम के राधाकृष्ण बाबाजी महाराज एवं अभिजीत बनर्जी बाबाजी महाराज के द्वारा बांग्ला भाषा में श्रीमद्भागवत कथा के अंतर्गत “भगवान वामनावतार, मां गंगा देवी का उत्पत्ति, परशुराम अवतार, भगवान श्रीराम एवं श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव बाललीला लीला” आदि का मधुर वर्णन किया। इस मार्मिक प्रसंग में कथा वाचक ने भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव व बाललीला लीला व्याख्यान करते हुए कहा की द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज्य करता था। कंस की एक बहन देवकी थी, जिसका विवाह बसुदेव नामक यदुवंशी सरदार से हुआ। एक समय कंस अपनी बहन देवकी को उसकी ससुराल पहुंचाने जा रहा था। रास्ते में आकाशवाणी हुई- ‘हे कंस, जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से ले जा रहा है, उसी में तेरा काल बसता है। इसी के गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक तेरा वध करेगा।’ यह सुनकर कंस बसुदेव को मारने के लिए उद्यत हुआ। तब देवकी ने उससे विनयपूर्वक कहा- ‘मेरे गर्भ से जो संतान होगी, उसे मैं तुम्हारे सामने ला दूंगी। बहनोई को मारने से क्या लाभ है कंस ने देवकी की बात मान ली और मथुरा वापस चला आया। उसने वसुदेव और देवकी को कारागृह में डाल दिया। बसुदेव-देवकी के एक-एक करके सात बच्चे हुए और सातों को जन्म लेते ही कंस ने मार डाला। अब आठवां बच्चा होने वाला था। कारागार में उन पर कड़े पहरे बैठा दिए गए। उसी समय नंद की पत्नी यशोदा को भी बच्चा होने वाला था। उन्होंने बसुदेव-देवकी के दुखी जीवन को देख आठवें बच्चे की रक्षा का उपाय रचा। जिस समय बसुदेव-देवकी को पुत्र पैदा हुआ, उसी समय संयोग से यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ, जो और कुछ नहीं सिर्फ ‘माया’ थी तथा भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि की घनघोर अंधेरी आधी रात को रोहिणी नक्षत्र में मथुरा के कारागार में वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया। कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने अपने बाल्यकाल में अनेक लीलाएँ की हैं। प्यारे कृष्ण की एक-एक लीला मनुष्यों के लिए परम मंगलमयी और कानों के लिए अमृतस्वरूप हैं। जिसे एक बार उस रस का चस्का लग जाता है, उसके मन मंदिर में फिर किसी दूसरे वस्तु के लिए लालसा ही नहीं रह जाती। भगवान श्री कृष्ण गृह लीलाएँ जब वे मात्र छ: दिन के थे, तब चतुर्दशी के दिन पूतना आई। जब भगवान तीन माह के हुए तो करवट उत्सव मनाया गया तभी शकटासुर आया, भगवान ने सकट भंजन करके उस राक्षस का उद्धार किया। इसी तरह बाल लीलाएँ, माखन चोरी लीला, ऊखल बंधन लीला, यमलार्जुन का उद्धार आदि दिव्य लीलाएँ की। श्रीकृष्ण की प्रत्येक लीला दिव्य है और हर लीला आध्यात्मिक है।गांव में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा से क्षेत्र में भक्तिमय माहौल बना हुआ है।