क्या बिहार के सियासी हलकों में सबकुछ नहीं है ठीक !
देवानंद सिंह
क्या बिहार के सियासी हलकों में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है ? क्या कुछ ऐसे सियासी समीकरण सेट होने की तरफ बढ़ रहे हैं, जिससे एनडीए सरकार पर संकट आ सकता है ? क्या कुछ ऐसी उथल-पुथल वहां के राजनीतिक हलकों में चल रही है ? ये सवाल एकदम यूंही नहीं उठ रहे हैं, बल्कि इसका एक आधार है। यह आधार है कांग्रेस द्बारा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को दिया गया ऑफर। जी हां, कांग्रेस विधायक दल के नेता अजीत शर्मा ने साफतौर पर कहा है कि नीतीश कुमार को टेंशन लेने की जरूरत नहीं है, उन्हें महागठबंधन में शामिल होकर सरकार बनानी चाहिए। यह पहला मौका नहीं है, जब उन्होंने इस तरह का ऑफर दिया है, बल्कि सात माह पूर्व भी वह ऐसा ही ऑफर नीतीश कुमार को दे चुके हैं। यानि इसका साफ सा संकेत है कि अगर, नीतीाश कुमार एनडीए में उलझन महसूस करें तो वह बिल्कुल भी ऐसा न समझें कि उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ेगी। अगर, वह महागठबंधन में आते हैं तो भी वह मुख्यमंत्री बने रहेंगे। एनडीए की अंदरखाने की स्थिति क्या है, यह तो नीतीाश कुमार और उसके घटक दल ही समझ सकते हैं, लेकिन जिस तरह कांग्रेस विधायक दल के नेता ने यह ऑफर दिया है, उसके पीछे वजह भी निश्चित ही होगी। उन्होंने ऑफर देते वक्त यह भी जोर देते हुए कहा कि एनडीए में जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी भी तकलीफ में हैं। इतना ही नहीं, सवाल सिर्फ जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी तक ही सीमित नहीं है, बल्कि नीतीश सरकार के कई मंत्री भी ऐसी ही तकलीफ में हैं, इसीलिए वे भी सरकार पर सवाल उठा रहे हैं। इसके उदाहरण के तौर पर खनन मंत्री जनक राम के बयान को लिया जा सकता है, जिसमें उन्होंने बालू खनन पर सवाल उठाते हुए कहा है कि इसमें सफेदपोश लोग संलिप्त हैं।
सियासी उथल-पुथल के बारे में कुछ और चर्चा करने से पहले जान लेते हैं कि बिहार राज्य में सीटों का समीकरण क्या बन रहा है। बिहार विधानसभा 243 सदस्यों वाली है। यहां बहुमत के लिए 122 सीटों की जरूरत होती है। एनडीए सबसे बड़े गठबंधन के रूप में उभरा, उसके पास कुल 125 सीटें हैं, जिसमें बीजेपी को 74, नीतीश कुमार की जेडीयू को 43, वीआईपी को 4 और हम को 4 सीटें मिली हैं, वहीं, लोकजनशक्ति पार्टी वह बसपा के एक-एक विधायक जदयू में शामिल हो गए हैं। निर्दलीय विधायक सुमित सिंह भी नीतीश कुमार को समर्थन दे चुके हैं। ऐसे में एनडीए के पास 128 विधायकों का समर्थन हासिल है। जहां तक महागठबंधन की बात है उसके पास 110 विधायक हैं, यानि एनडीए से 18 विधायक कम हैं, पर एआईएमआईएम के पांच विधायकों का समर्थन होने की वजह से महागठबंधन के विधायकों की संख्या 115 हो गई है। फिर भी, उसके एनडीए से 13 विधायक कम हैं। अगर, जीतनराम मांझी की 4 विधायकों वाली पार्टी हम’ और मुकेश सहनी की 4 विधायकों वाली पार्टी वीआईपी महागठबंधन को साथ दे तो भी महागठबंधन की सरकार बहुमत तक पहुंच तो जाती है, लेकिन एक मजबूत सरकार की कल्पना नहीं की जा सकती है। ऐसे में, बिना नीतीश के साथ के महागठबंधन इस स्थिति में बिल्कुल भी नहीं आ सकता है। भले ही, नीतीश कुमार के पास बीजेपी से कम सीटें हैं, लेकिन जिधर वह जाएंगे, सरकार उसी की बनेगी। इसीलिए कांग्रेस बार-बार शिगूफा छोड़कर ऑफर दे रही है, उसकी असली वजह यही है। ऐसे में, सवाल उठता है कि जब नीतीश एनडीए में मुख्यमंत्री हैं ही तो वह महागठबंधन में क्यों जाएंगे ? पर इसके पीछे भी बहुत सारे कारण है। पहला कारण तो यही है कि स्वयं बीजेपी के पास उनसे ज्यादा सीटें हैं। इसके बाद भी अगर उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया तो एक तरह से यह अहसान ही माना जाएगा, क्योंकि चुनाव से पहले ऐसा नहीं लग रहा था कि नीतीश कुमार बीजेपी से पीछे रह जाएंगे। निश्चित ही इस स्थिति में नीतीश कुमार के अंदर घुटन होगी। दूसरा, बड़ा कारण है कि पिछले साल दिसंबर में बीजेपी ने अरुणाचल प्रदेश में जदयू के 6 विधायकों को तोड़ लिया था। भले ही, उसके बाद बीजेपी और जदयू गठबंधन में हैं, लेकिन कहीं-न-कहीं नीतीश कुमार के मन में इस बात की टीस तो होगी ही। बिहार में विपक्षी दल भी इसी बात का ताना मारकर नीतीश कुमार को एनडीए से अलग होने के लिए उकसाते रहे हैं। राजद ने कहा था कि बीजेपी ने जदयू को अरुणाचल में क्रिसमस गिफ्ट दिया है। तेज प्रताप यादव ने यहां तक कह दिया था कि बीजेपी जदयू को पूरी तरह से खत्म कर देगी। ऐसी बयानबाजी के बीच भी उस वक्त कांग्रेस ने नीतीश कुमार को बीजेपी का साथ छोड़कर महागठबंधन में शामिल होने का ऑफर दिया था। उसके बाद सात महीने तक स्थिति सामान्य रही है, लेकिन एक बार कांग्रेस विधायक दल के नेता अजीत शर्मा द्बारा ऑफर दिए जाने लगता है कि बिहार के सियासी हलकों में कुछ तो गड़बड़ है। शायद, बीजेपी को यह सुनकर थोड़ा सदमा लग रहा हो, क्योंकि झारखंड वह हेमंत सोरेन सरकार की तोड़ने में जुगत है और बिहार में कांग्रेस बीजेपी समर्थित सरकार को तोड़ने की कोशिश कर रही है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि बिहार में पहले सियासी बदलाव देखने को मिलेगा या फिर झारखंड में।