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    Home » प्रोत्साहन राशि मामला :सवालों के घेरे में स्वास्थ्य विभाग और उनके अधिकारी
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    प्रोत्साहन राशि मामला :सवालों के घेरे में स्वास्थ्य विभाग और उनके अधिकारी

    Devanand SinghBy Devanand SinghApril 20, 2022Updated:April 20, 2022No Comments6 Mins Read
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    स्वास्थ्य मंत्री के न्यायिक प्रक्रिया का सहारा लेने से सरयू राय के आरोप होंगे बेनकाब!

    देवानंद सिंह

    सरयू राय द्वारा कोरोनाकाल में स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता द्वारा अपने चहेतों को अवैध तरीके से प्रोत्साहन राशि का वितरण किए जाने के आरोप के बाद जिस तरह से सियासी माहौल गरमाया जा रहा है, उसमें विधायक सरयू राय शिथिल नजर आने लगे हैं। क्योंकि इस मामले में विधायक सरयू राय जिस तरीके से लगातार अपने बयान बदल रहे हैं, उससे साफ तौर पर लग रहा है कि उनके पास लगाए गए आरोप को कोई भी आधार नहीं है, जिससे एक अपने बयानों में लगातार परिवर्तन ला रहे हैं, जिससे यही स्पष्ट होता है कि वह स्वास्थ्य मंत्री को एक तरह से क्लीन चिट दे रहे हैं। उनके द्वारा लगाए गए आरोप का मजेदार पहलू यह है कि उन्होंने कहा था कि मंत्री और उनके पीए ने पैसा लिया था, लेकिन उनके द्वारा जारी प्रेस नोट में किसी का नाम नहीं है। यह बात अपने-आप में सरयू राय के आरोप को कमजोर करती है।
    हर एक व्यक्ति के मन में यह सवाल भी उठ रहे हैं कि
    आखिर कार्यालय की गुप्त कागजात विधायक सरयू राय तक कैसे पहुंच रहे हैं आरटीआई के माध्यम से यह संभव नहीं हो सकता है इतनी जल्दी विधायक सरयू राय को यह भी बताना चाहिए कि उनके कागजात का स्रोत क्या है? तभी जाकर उनके आरोप पर मुहर लग सकती है

    इस मामले में जो तीन सदस्यों की समिति स्वास्थ्य विभाग ने बनाई थी, उनका मौन रहना भी मामले में षड़यंत्र को दर्शाता है, आखिर इस समिति ने किस आधार पर स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव अरुण कुमार सिंह, अलोक त्रिवेदी समेत अन्य अधिकारियो का नाम पात्रता सूची में जोड़ दिया? यदि वे लोग पात्र है तो फिर स्वास्थ्य मंत्री समेत अन्य सहयोगी क्यों पात्रता नहीं रखते?

    दूसरी तरफ स्वास्थ्य विभाग के गोपनीय डोकुमेंट्स लिक हो रहे है और अपर मुख्य सचिव की इस पर चुप्पी बहुत कोताहुल पैदा कर रही है, यहां जानना जरूरी होगा संकल्प में प्रोत्साहन राशि के पात्रता की जिम्मेदारी कार्यालय प्रधान को सुनिश्चित करना था और स्वास्थ्य विभाग के कार्यालय प्रधान अपर मुख्य सचिव अरुण कुमार सिंह है न कि मंत्री, फिर आखिर किस मकसद से कार्यालय प्रधान ने अपात्र लोगों का सूची में से नाम नहीं हटाया? ये गलती है या कोई षड़यंत्र?

     

    दबी जुबान से अब यह बात भी उठने लगी है कि मंत्री रहते सरयू राय ने अपने विभाग में कितने कार्य किए पूर्वी विधानसभा की जनता अब यह भी जानने का प्रयास करने लगी है कि पूरे झारखंड में सिर्फ स्वास्थ्य विभाग ही विधायक सरयू राय के निशाने पर क्यों है और मंत्री बन्ना गुप्ता ही निशाने पर क्यों?
    इस मामले में कोई शक नहीं कि झारखंड की राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले विधायक सरयू राय को स्वास्थ्य के चाणक्य कहे जाने वाले बन्ना गुप्ता ने कानूनी नोटिस भेज कर मात दे दी है! क्योंकि जब सरयू राय ने उन पर घपले का आरोप लगाया था, स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने साफतौर पर कह दिया कि अगर सरयू राय को लगता है कि प्रोत्साहन राशि के वितरण में कोई घपला हुआ है तो सरयू राय को या तो कोर्ट की शरण में जाना चाहिए या फिर किसी एजेंसी से जांच करा लेनी चाहिए। अगर, स्वास्थ्य मंत्री साफतौर पर कह रहे हैं तो वह निष्पक्ष जांच के लिए तैयार हैं तो फिर इसमें कोई लीपापोती का सवाल नहीं रह जाता है। सरयू राय मामले को लेकर कोर्ट जाएं या नहीं, लेकिन स्वास्थ्य मंत्री ने कोर्ट की शरण में जाने की बात कह दी है, जिससे लगता है कि आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर सियासत चलती रहेगी। वैसे, गत दिनों में मामले को लेकर, जिस तरह विधायक सरयू राय की छीछलेदर हुई है, इस बात को वह भी खूब समझ रहे हैं कि उनके पास स्वयं द्वारा लगाए गए आरोप का कोई आधार नहीं है। लिहाजा, इस तरीके का आरोप वही लगा सकता है, जिसका स्वयं के काम में मन ना लगे। बेवजह मुद्दा उठाने से कुछ नहीं होगा। सरकार का और खुद सरयू राय का विधायक के रूप में चुनकर आए आधा समय बीत गया है, लेकिन विधायक अपने क्षेत्र में विकास के नाम पर कितने कार्य किए हैं इस पर भी उन्हें बोलना चाहिए बड़ा सवाल यह है कि जब उन्हें राज्य के विकास के मुद्दों को उठाना चाहिए, तब वह बिना हाथ-पैर के मुद्दे उठाकर क्या साबित करना चाहते हैं ? क्या जमशेदपुर पश्चिम विधानसभा की हार अब तक वे नहीं भूल पाए हैं?यह बात ठीक है कि हर किसी को सरकार और उसके मंत्रियों से सवाल पूछने का हक है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं होता कि किसी को अनावश्यक बदनाम किया जाए। उन्होंने जिस तरह सोमवार को फिर एक नया खुलासा करते हुए कहा कि मंत्री बन्ना गुप्ता ने जिन 60 लोगों का कोविड प्रोत्साहन राशि लेने का आदेश दिया था, उनमें से 54 के बैंक खाता में डोरंडा ट्रेजरी से भुगतान हो गया है। लेकिन आश्चर्जनक बात यह है, जब इन सब चीजों के लिए कमेटी निर्धारण करती है तो मंत्री पर सवाल उठाने का क्या मतलब बनता है, एक प्रमुख अधिकारी पर सवाल नहीं उठाना भी सवाल के घेरे में है
    जहां तक मंत्री की सुरक्षा में लगे 34 सुरक्षा कर्मियों का सवाल है, वो गृह मंत्रालय से संबंधित हैं और गृह सचिव और गृह मंत्री ही उनके वेतन को सूचित कर सकता है तो इस पर मंत्री को आरोपित करना सरयू राय के पूरे प्रकरण को हास्यास्पद बनाता है। यदि, मंत्री, स्वयं और उनके कर्मचारी प्रोत्साहन राशि की पात्रता नहीं रखते थे तो कार्यालय प्रधान होने के नाते सचिव अरुण कुमार सिंह ने उन लोगों का नाम सूची से क्यों नहीं हटाया ? अरुण कुमार सिंह जो अपर मुख्य सचिव स्वास्थ्य विभाग के हैं, वह जब सरयू राय खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री थे तो उसके सचिव भी थे? इसीलिए, इस पूरे प्रकरण पर सरयू राय का पक्ष कमजोर पड़ता जा रहा है। बेवजह के मुद्दों को तूल देकर सियासी रोटियां सेंकने से बेहतर है कि वे राज्य के विकास पर बात करें। अगर, कोई मुद्दा है भी तो उसके पुख्ता सबूत होने चाहिए। स्वास्थ्य मंत्री ने इस पूरे प्रकरण में जिस तरह की गंभीरता दिखाई है और खुद को मंत्री के बजाय सामाजिक कार्यकर्ता बताया है, वह उनकी जननायक की छवि को प्रदर्शित करता है। जब उन्होंने खुद ही कह दिया है कि वह कानून की शरण में जाएंगे तो निश्चित ही पूरे प्रकरण का पटाक्षेप होगा।

    कल पढ़ें :आखिर बन्ना ही निशाने पर क्यों

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