औरतों के दम से है
शहर का तब्दील रहना
शाद रहना और उदास
रौनकें जितनी यहाँ पे हैं औरतों के दम से हैं !!
सच ही है कि हम औरतों के बिना इस दुनिया की कल्पना नहीं कर सकते । एक सुंदर संसार और खिलखिलाता परिवार की रचना करने का हुनर सिर्फ और सिर्फ ईश्वर ने औरतों को ही सिखाया है । पर ऐसा भी नहीं है कि आज भी वो खुद को चहारदीवारी के अंदर रहने वाला व्यक्तित्व ही समझती हैं । अब वक्त ने करवट लिया है । औरतों के हिस्से की दुनिया भी बदल रही है । आज की औरत अपनी किस्मत खुद लिख रही है, अपने रास्ते खुद गढ़ रही है । उसके नज़र में सिर्फ अपने घर – परिवार की ही चिंता नही बल्कि समाज और देश के लिए भी कुछ कर गुजरने की ख्वाहिश है । उसके ख्वाबों का क्षेत्रफल अब विस्तार पाने लगा है । ख्वाहिशों में इंद्रधनुषी रंग लहरा रहे हैं । अपनी काबिलियत के बल पर वह उच्च पदों पर अपनी क्षमता प्रदर्शित कर रही हैं । राजनीति हो या सरहद के मसले, औरत अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है और कई दूसरी औरतों के लिए प्रेरणा भी बन रही हैं ।
रक्षा संबंधी मसौदे पर विचार-विमर्श करती निर्मला सीतारमण हों या सुषमा स्वराज, खेल जगत की रौनक मैरी काॅम हो या समाज सेवा का परचम लहरा रही मेघा पाटेकर , ये सभी नाम औरतों के हौसले का चेहरा हैं । खेत में घुटने तक मिट्टी से सनी किसान स्त्री हो या ईंटों की ढेर सर पर उठाए मजदूरनी — संघर्ष पथ हर औरत के हिस्से है । जरूरत सिर्फ इस बात की है कि तेज हवा के ओट में भी चिराग जलाया जाए । औरत को औरत का हाथ थामना सीखना होगा । किसी भी पद पर बैठी औरत हो, दर्द के अदृश्य तार से वह एक गरीब बेसहारा स्त्री से भी जुड़े और उसका साथ दे । मर्दों की बनाई इस दुनिया और मर्दों की कही जाने वाली इस दुनिया में औरतों को अपने लिए एक जगह आरक्षित करना होगा । पितृसत्तात्मक समाज में सेंध लगानी होगी ताकि आधी आबादी के लिए सम्मानित जगह बनाई जा सके । सिर्फ आज के लिए ही नहीं, बल्कि भविष्य में भी अपनी बेटियों और बहनों के समक्ष एक सुंदर- सुरक्षित संसार सौंपना हर औरत की महती जिम्मेदारी है । माना कि
सीता और द्रौपदी पूजनीय हैं, पर सीता की अग्निपरीक्षा और द्रौपदी का चीरहरण जैसी घटनाएँ एक औरत के अस्तित्व के आगे प्रश्नचिह्न हैं । इन प्रश्नों का जवाब ढूँढने का वक्त आ गया है । हमें अँधेरे से भी अपने हिस्से का चाँद निचोड़कर लाना होगा । औरतों के लिए अब रूकना और थकना मना है । अब बस चलते जाना है ………
लड़खड़ाएगी कहाँ तक
कि सँभलना है तुझे
उठ मेरी जान
*मेरे साथ ही चलना है तुझे* !!
डाॅ कल्याणी कबीर