सरकार जनता को और राहत देने पर करे विचार
देवानंद सिंह
पेट्रोल व डीजल के दाम कम हो गए हैं। यह कमी, तब आई है, जब सरकार ने एक्साइज ड्यूटी में 5 से 10 रुपए की कटौती कर दी है। जब लगातार पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ रहे थे तो अचानक सरकार ने यह चमत्कार कैसे कर दिया, यह सबसे बड़ा सवाल है। पर इस सवाल के बीच, जो सबसे महत्वपूर्ण बात देखने को मिली, वह यह कि लोगों के बीच सरकार के इस कदम को लेकर कोई उत्साह दिखा ही नहीं। शायद इसीलिए, क्योंकि जिस अनुपात में इस साल पेट्रोल व डीजल के दाम बढ़े हैं, उस अनुपात में यह कमी बहुत ही कम है और दूसरा नदजीक आ रहे विधानसभा चुनाव। चुनावों में लाभ लेने के लिए सरकार ने यह कदम उठाया। लेकिन जिस तरह लोगों की तरफ से सरकार के कदम को लेकर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है, उससे लगता नहीं कि सरकार ने बड़ा फायदे का सौदा किया है। वैसे भी, 29 विधानसभा सीटों और 3 लोकसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के जो परिणाम सामने आए हैं, वह बीजेपी के लिए बेहद चिंताजनक हैं। इन चुनावों में बीजेपी के प्रति नाराजगी और कांग्रेस के प्रति नरमी देखने को मिली है। शायद इसीलिए भी सरकार के कानों में जूं रेंगी हो। उसे आगामी विधानसभा चुनावों का डर सताने लगा हो। अगले साल यानि 2022 में उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण है उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव। उत्तर प्रदेश का ही परिणाम 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों का परिणाम तय करेगा। उपचुनावों के पक्ष में परिणाम नहीं आने से बीजेपी वाली केंद्र सरकार थोड़ा विचलित हुई है। शायद उसे डर सताने लगा है कि यही हाल रहा तो विधानसभा चुनावों के परिणाम उसके खिलाफ जा सकते हैं। पर यहां सवाल है कि एक्साइज ड्यूटी जितनी कम की गई है और उससे फ्यूल की कीमतें जितनी कम हुईं हैं, क्या वह काफी हैं ? क्या बीजेपी इतने ही दाम घटाकर लोगों का विश्वास जीत पाएगी ? क्योंकि वास्तव में, जिस तरह अंधाधुंध तरह से फ्यूल की कीमतों में बढ़ोतरी की गई है, उससे बीजेपी के प्रति लोगों का भरोसा कम हुआ है। इस साल की शुरुआत से अब तक पेट्रोल और डीजल की कीमतें क्रमश करीब 28 रुपये और 26 रुपये प्रति लीटर बढ़ाए जा चुके हैं। इस मुकाबले 5 रुपये और 10 रुपये प्रति लीटर की कटौती को कैसे अच्छा माना जा सकता है ? खासकर तब, जब इसके पीछे अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों से ज्यादा बड़ी भूमिका एक्साइज ड्यूटी की हो। जिस अनुपात से पेट्रोल डीजल की कीमतें बढ़ी हैं, उस अनुपात में रेट और कम होने चाहिए थे। क्योंकि पेट्रोल, डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी ने खाने पीने की चीजों की कीमतों को भी बढ़ाया है, जिससे लोगों की जेब पर काफी असर पड़ा है। लोगों को खर्चा चलाना मुश्किल हो गया है। इसीलिए दाम कम किए जाने को लोग बहुत अधिक उत्साह के साथ नहीं ले रहे हैं। दूसरा इसका पहलू यह भी है कि शायद कीमतों में कमी चुनावों तक ही रहेगी, उसके बाद फिर से कीमतें और बढ़ सकतीं हैं। इसीलिए आम लोगों के लिए सरकार के इस कदम से खुश होने का कोई मतलब नहीं रह जाता है। लोग भी इस चीज को समझ रहे हैं और सरकार भी। इस परिस्थिति में गेंद फिर भी सरकार के पाले में है, क्योंकि रेट कम करना और बढ़ाना उसी के हाथ में है, पर सरकार आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर जो दबाव महसूस कर रही है, उस स्थिति में उसे जनता को और राहत देने पर विचार करना चाहिए।