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    Home » धर्मांतरण कर चुके आदिवासियों और आदिवासी समाज से बाहर शादी कर चुकी बेटियों को आरक्षण से बाहर करने की मांग
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    धर्मांतरण कर चुके आदिवासियों और आदिवासी समाज से बाहर शादी कर चुकी बेटियों को आरक्षण से बाहर करने की मांग

    Devanand SinghBy Devanand SinghApril 18, 2025No Comments3 Mins Read
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    धर्मांतरण कर चुके आदिवासियों और आदिवासी समाज से बाहर शादी कर चुकी बेटियों को आरक्षण से बाहर करने की मांग

    राष्ट्र संवाद, संवाददाता

    झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन लगातार बांग्लादेशी घुसपैठ और आदिवासियों की घटती जनसंख्या को लेकर मुखर है ,इसी कड़ी में उन्होंने धर्मांतरण कर चुके आदिवासियों और आदिवासी समाज से बाहर शादी कर चुकी बेटियों को आरक्षण से बाहर करने की मांग किया है. ….. दरसल झारखंड के बोकारो जिला अंतर्गत बालीडीह के जाहेरगढ़ में सरहुल( बाहा पर्व) को लेकर एक मिलन समारोह का आयोजन किया गया था, इसी कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी के वर्तमान विधायक चंपई सोरेन ने कहा कि अगर जल्द ही डीलिस्टिंग शुरू नहीं की गई, तो आदिवासी समाज का अस्तित्व मिट जायेगा.

    बोकारो जिला के बालीडीह में आयोजित कार्यक्रम में पहुचने पर उन्होंने वहां के जाहेरगढ़ में माथा टेक कर उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए कहा, ”अगर आदिवासी समाज नहीं जागा तो भविष्य में हमारे इन जाहेरस्थानों, सरना स्थलों और देशावली में पूजा करने वाला कोई नहीं बचेगा.

    उन्होंने कहा कि धर्मांतरण कर चुके आदिवासियों तथा आदिवासी समाज से बाहर शादी कर चुकी बेटियों को आरक्षण से बाहर करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि अगर जल्द ही डीलिस्टिंग शुरू नहीं की गई तो आदिवासी समाज का
    अस्तित्व मिट जाएगा।

    उन्होंने झरखण्ड के संथाल परगना की तेजी से बदलती डेमोग्राफी आदिवासियों की घटती जनसंख्या की स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा की, ”वहां आदिवासी समाज दोतरफा मार झेल रहा है. एक ओर धर्मांतरित लोग समाज के लिए आरक्षित सीटों पर कब्जा जमाते जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर बांग्लादेशी घुसपैठिये ना सिर्फ आदिवासी समाज की जमीनों पर कब्जा कर रहे हैं, बल्कि हमारे समाज की बेटियों से शादी कर के हमारे सामाजिक ताने-बाने को बिगाड़ रहे हैं. बाद में उन्हीं बेटियों को निकाय चुनावों में लड़ा कर, ये लोग पिछले दरवाजे से संविधान द्वारा दिए गए आरक्षण में भी अतिक्रमण कर रहे हैं. इसे रोकना आवश्यक है.”

    पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन आदिवासियों ऐसे स्थित के लिए काँग्रेस पार्टी को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा, ”कांग्रेस ने ना सिर्फ 1961 में आदिवासी धर्म कोड हटाया, बल्कि आदिवासी आंदोलनकारियों पर गोली चलवाने का दुस्साहस भी किया. जिस आदिवासी समाज ने अपने अस्तित्व और आत्म-सम्मान की लड़ाई में अंग्रेज़ों के सामने के सामने घुटने नहीं टेके, बल्कि संघर्ष का मार्ग चुना, उनके वंशज आज हार कैसे मान सकते हैं. बाबा तिलका मांझी, वीर सिदो-कान्हू, पोटो हो, भगवान बिरसा मुंडा एवं टाना भगत के संघर्ष की याद दिलाते हुए उन्होंने युवाओं को उलगुलान की तैयारी में जुट जाने का आह्वान किया.

     

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