नई दिल्ली. सत्ता किसकी रहेगी इसका सटीक अनुमान लगाने वाले रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान घर के अंदर चल रहे तख्ता पलट को नहीं भांप पाए. बागी चाचा पशुपति पारस 5 सांसदों को लेकर लोजपा से अलग हो गए हैं और खुद को संसदीय दल का नेता भी चुनवा लिया है. कहते हैं कि घर के चिराग को बुझाने के इस खेल में जद (यू) नेता लल्लन सिंह की अहम भूमिका है.
चाचा-भतीजे में टकराव बिहार विधानसभा चुनाव से शुरू हो गया था. चिराग पासवान के राजग से बाहर जाने जाने के फैसले पर पारस द्वारा नाराजगी जताने के बाद विवाद और बढ़ गया था. तब चिराग ने चाचा को किनारे कर टिकट बंटवारे में मनमानी की और इससे पारस की नाराजगी और बढ़ गई थी. सूत्र बताते हैं कि चिराग पासवान को राजद से नजदीकी बढ़ाने तथा नीतीश कुमार पर खुलकर हमला करने को लेकर नीतीश कुमार शांत थे, लेकिन वह ऐसे मौके के इंतजार में थे, जब चिराग को खासी पटखनी दे सकें. सूत्र बताते हैं कि नीतीश कुमार द्वारा आपरेशन लोजपा में लल्लन सिंह को लगाया गया. लल्लन सिंह लोजपा सांसद वीणा सिंह के माध्यम से पारस को साधे और बस लोजपा में टूट का तानाबाना बुना जाने लगा. आखिरकार नीतीश कुमार का दांव चल गया और रविवार को चुपचाप लोजपा के पांच सांसदों ने चिराग की जगह पर पारस को अपना नेता चुन लिया. इसकी भनक चिराग को जब तक लगी तब तक खेल हो चुका था. चिराग चाचा पारस को मनाने पहुंचे, लेकिन पारस उनसे मिलने की वजाय 5 सांसदों को लेकर सीधे लोकसभा अध्यक्ष से मिलने पहुंच गए. उन्हें नया नेता चुने जाने का पत्र सौपकर वह प्रेस के सामने आए और कहा कि उन्होंने लोजपा को तोड़ा नहीं है, बल्कि उसे टूटने से बचाया है. उनका कहना था कि चिराग की कार्यशैली से सांसद और कार्यकर्ता नाराज हैं. इसलिए उन्हें यह कदम उठान पड़ा. पारस ने कहा कि यदि चिराग चाहें तो वह लोजपा में रह सकते हैं. पशुपति पारस का कहना है कि वह लोकसभा अध्यक्ष के जवाब का इंतजार कर रहे हैं.
पारस ने साफ संकेत दिया कि वह राजग का हिस्सा बनने वाले हैं. उन्होंने ना केवल नीतीश कुमार की तारीफ की, बल्कि यह भी कहा कि वह राजग से अलग होने के पक्ष में कभी नहीं थे. मतलब, साफ है कि चिराग के हाथ से लोजपा चली गई है और अब उनके सामने सिर्फ सांसद बनकर लोजपा में रहने या फिर राजद के साथ जाने के अलागा कोई विकल्प नहीं बचा है.