दिल्ली उच्च न्यायालय ने मोर को करंट लगने से बचाने के लिए दायर जनहित याचिका खारिज की
दिल्ली उच्च न्यायालय ने उस जनहित याचिका को बुधवार को खारिज कर दिया, जिसमें अधिकारियों को मोर को करंट लगने से बचाने के लिए कदम उठाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।
मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को अपनी शिकायतों को संबंधित प्राधिकारियों के समक्ष उठाना चाहिए, क्योंकि अदालतें कानून नहीं बना सकतीं।
गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘सेव इंडिया फाउंडेशन’ की ओर से दायर याचिका में अधिकारियों को मोर को बिजली कंपनियों द्वारा लगाई गई तारों की चपेट में आने से बचाने के लिए नियम बनाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।
इसमें कहा गया था, “दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में बिजली की आपूर्ति करने वाली बिजली कंपनियों ने अपने बिजली के खंभे खुले छोड़ दिए हैं, जिन पर मोर अक्सर आकर बैठते हैं और खुले तार के संपर्क में आने पर करंट लगने से उनकी मौत हो जाती है।”
अदालत ने कहा कि एनजीओ ने दिल्ली सरकार के वन एवं वन्यजीव विभाग और बिजली विभाग के सचिव समेत अन्य प्राधिकारियों के समक्ष तीन अप्रैल को अभ्यावेदन दाखिल करने का दावा किया है और याचिका छह अप्रैल को दायर की गई है।
अदालत ने हैरानी जताई कि प्राधिकारियों को अभ्यावेदन देने के एक सप्ताह के भीतर, उनके जवाब का इतंजार किए बिना याचिका कैसे दायर की जा सकती है। उसने कहा, “हम इस याचिका पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं। इसे खारिज किया जाता है।”
उच्च न्यायालय ने हालांकि याचिकाकर्ता को दो सप्ताह के भीतर उचित प्राधिकारियों के समक्ष अपना अभ्यावेदन पेश करने की छूट दी, जिस पर कानून के अनुसार निर्णय लिया जाएगा।