आम बजट की चुनौतियां
देवानंद सिंह
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण मंगलवार को आम बजट पेश करेंगी। इस बजट में मोदी सरकार को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि इस बजट को एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य से देखा जा रहा है। इस बजट की घोषणाएं देश की विकास दर को किस दिशा में ले जाएंगी, यह देखना काफी महत्वपूर्ण होगा।
उम्मीद है कि सामाजिक सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में निवेश जैसे मुद्दों पर भी ध्यान दिया जाएगा, लेकिन चुनौतियों की बात करें तो पहली चुनौती वित्तीय स्थिति को सुधारने के साथ ही आर्थिक विकास की दर को गति देने की होगी। बजट में वित्तीय योजनाओं को लागू करने के लिए सामर्थ्य पर ध्यान देना होगा, जिससे देश की आर्थिक स्थिरता में सुधार हो सके।
दूसरी चुनौती यह है कि बजट की घोषणाओं को व्यावसायिक वातावरण में अंकुशित करने पर जोर देना होगा। व्यापारी समुदाय और उद्यमियों के लिए समर्थन प्रदान करने के साथ-साथ, नौकरियों के सृजन को भी सुनिश्चित करना होगा। तीसरी चुनौती विकास के साथ- साथ समाज में समानता और न्याय को बढ़ावा देना होगा। बजट में सामाजिक क्षेत्र के विकास पर ध्यान देने के साथ ही विभिन्न समुदायों और वर्गों के बीच समानता को बढ़ाने की दिशा में कदम उठाना होगा। चौथी चुनौती यह रहेगी कि उच्च आदर्शों और तकनीकी नवाचार के साथ-साथ, पर्यावरणीय असमंजस को सुलझाने के लिए कठोर उपायों को लेकर मार्ग प्रशस्त करना होगा और बजट में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अधिक निवेश और कठोर कदमों की आवश्यकता होगी।
मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का यह पहला बजट होगा। पिछले वित्त वर्ष अप्रैल 2023 से मार्च 2024 तक भारतीय अर्थव्यवस्था 8.2 फ़ीसदी की दर से बढ़ी है, लेकिन निजी उपभोग खर्च में बहुत कम चार फ़ीसदी की वृद्धि हुई है। यह वो ख़र्च है, जो भारत के लोग वस्तुओं और सेवाओं पर ख़र्च करते हैं। यह भारतीय अर्थव्यवस्था का 55 से 60 फ़ीसद हिस्सा है।
अगर, अप्रैल 2020 से मार्च 2021 तक की कोरोना महामारी के समय को छोड़ दें तो यह अप्रैल 2002 से मार्च 2003 के बाद निजी उपभोग व्यय में सबसे कम वृद्धि है। वहीं, निजी उपभोग पर ख़र्च में कमी सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है। केंद्रीय बजट में इसका समाधान निकालना ज़रूरी होगा। सरकार लोगों के हाथों में ज़्यादा पैसा देकर इस चुनौती से निपट सकती है।
इस लक्ष्य को कई तरीक़ों से हासिल किया जा सकता है।
यदि, सरकार करों में कटौती करती है तो इसे कहीं और से पूरा करना होगा या फिर अपने ख़र्च में कटौती करनी होगी। अगर, कोई सरकार करों में कटौती करती है और अपना ख़र्च पहले जितना ही रखती है तो सरकार को राजकोषीय घाटा होगा। इसका मतलब यह है कि सरकार जो कमा रही है और जो ख़र्च कर रही है, दोनों के बीच का अंतर बढ़ जाएगा।
साल 2023-24 में भारत का राजकोषीय घाटा 16.54 लाख करोड़ रुपये रहा। यह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 5.6 फ़ीसदी है। यह आंकड़ा काफ़ी ज़्यादा है और इसे लगातार कम करने की ज़रूरत है। यदि, सरकार उपभोग वृद्धि को बढ़ाने के लिए करों में कटौती करती है तो यह सरकार के लिए काफ़ी चुनौतीपूर्ण हो जाएगा। फिलहाल, सरकार के लिए अच्छी बात यह है कि आरबीआई ने साल 2022-23 में लगभग 87 हज़ार करोड़ रुपये की तुलना में साल 2023-24 में 2.1 लाख करोड़ रुपये का लाभांश दिया है। इसके अलावा, सरकारी स्वामित्व वाली सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की ओर से दिया जाने वाला लाभांश भी आशाजनक दिख रहा है। इन ज़रियों से आने वाले धन से सरकार को कुछ राहत मिलनी चाहिए और उसे करों में कटौती करने में मदद मिलेगी। निजी खपत में आई गिरावट और रोजगार के अवसर कम होने जैसे मसलें चिंता का सबब है। सरकार को उपभोक्ता खर्च में सुधार और लॉन्ग टर्म के लिहाज से रोजगार वृद्धि के समर्थन के लिए टैक्स कटौती और ग्रामीण बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने जैसे उपायों पर जोर देना होगा।
वित्त वर्ष 2024 में भारत के निजी खपत में 4 प्रतिशत की वृद्धि महामारी के वर्षों को छोड़कर 20 साल के निचले स्तर पर थी। घरेलू खपत सर्वेक्षण के अनुमानों में वित्त वर्ष 2023 में ग्रामीण और शहरी दोनों खपत में गिरावट दर्ज की गई थी। कुछ चुनिंदा क्षेत्रों जैसे – ऑटो रिटेल, खाद्य महंगाई दर आदि में गिरावट देखने को मिली और उच्च आय वर्ग वाले खर्च कर रहे हैं, जबकि निम्न आय वर्ग अपने उपभोग खर्च में कटौती कर रहे हैं। इसके अलावा आईटी जैसे क्षेत्रों में कम नियुक्तियों के चलते भी उपभोक्ता खर्च प्रभावित हुआ है, इनमें सुधार के लिए सरकार को कदम उठाने होंगे। वहीं, कल्याणकारी योजनाओं जैसे- पीएम आवास योजना, पीएम किसान सम्मान निधि योजना, आदि पर ज्यादा खर्च करने के साथ ही रोजगार के अवसर बढ़ाने पर सबसे अधिक ध्यान देना होगा।