Close Menu
Rashtra SamvadRashtra Samvad
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Rashtra SamvadRashtra Samvad
    • होम
    • राष्ट्रीय
    • अन्तर्राष्ट्रीय
    • राज्यों से
      • झारखंड
      • बिहार
      • उत्तर प्रदेश
      • ओड़िशा
    • संपादकीय
      • मेहमान का पन्ना
      • साहित्य
      • खबरीलाल
    • खेल
    • वीडियो
    • ईपेपर
      • दैनिक ई-पेपर
      • ई-मैगजीन
      • साप्ताहिक ई-पेपर
    Topics:
    • रांची
    • जमशेदपुर
    • चाईबासा
    • सरायकेला-खरसावां
    • धनबाद
    • हजारीबाग
    • जामताड़ा
    Rashtra SamvadRashtra Samvad
    • रांची
    • जमशेदपुर
    • चाईबासा
    • सरायकेला-खरसावां
    • धनबाद
    • हजारीबाग
    • जामताड़ा
    Home » बढ़ती आबादी के बीच गंभीर होती पर्यावरण चुनौतियां
    Breaking News Headlines उत्तर प्रदेश ओड़िशा खबरें राज्य से झारखंड बिहार मेहमान का पन्ना राजनीति राष्ट्रीय

    बढ़ती आबादी के बीच गंभीर होती पर्यावरण चुनौतियां

    News DeskBy News DeskJuly 23, 2024No Comments7 Mins Read
    Share Facebook Twitter Telegram WhatsApp Copy Link
    Share
    Facebook Twitter Telegram WhatsApp Copy Link

    बढ़ती आबादी के बीच गंभीर होती पर्यावरण चुनौतियां
    -ः ललित गर्ग:-

    संयुक्त राष्ट्र द्वारा हाल ही में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार भारत की आबादी 2060 के दशक में 1 अरब 70 करोड़ तक पहुंच जाने का अनुमान है, जैसे-जैसे आबादी बढ़ती जा रही है, पर्यावरण से जुड़ी समस्याएं गंभीर चुनौती बनती जा रही है। हमें संसाधनों के विस्तार एवं विकास की योजनाओं के बीच पर्यावरण संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी। शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, आवास, उद्योग, परिवहन आदि विकास योजनाओं को लागू करते हुए प्रकृति, पर्यावरण एवं जलवायु पर ध्यान केन्द्रित करना होगा। हर विकास के अपने सकारात्मक और नकारात्मक नतीजे होते हैं। सभी विकास योजनाओं में पर्यावरण का ख्याल रखना जरूरी है। अगर बिना पर्यावरण की परवाह किये विकास किया गया तो यह मनुष्य के लिये विनाश एवं विध्वंस का कारण बनेगी। वर्तमान में भारत दुनिया की सबसे बड़ी आबादी के साथ-साथ तीसरी बड़ी अर्थ-व्यवस्था बनने की ओर अग्रसर होते हुए विकास की नई गाथा लिख रहा है, लेकिन इसी के साथ पर्यावरण की उपेक्षा के कारण अनेक पर्यावरण समस्याएं विनाश एवं विध्वंस का कारण भी बन रही है। शहरी विकास की प्रक्रिया ने गाँवों के सामने अस्तित्व का संकट उत्पन्न कर दिया है। शहरों का अनियोजित विकास से महानगरों में असुरक्षित परिवेश, बढ़ता प्रदूषण, जल एवं शुद्ध हवा का अभाव ऐसी समस्याएं हैं जो जीवन अस्तित्व को बचाये रखने के लिये चुनौती बन रही है।

     

     

    उन्नत विकास के लिए सड़क चाहिए, बिजली चाहिए, जल चाहिए, मकान चाहिए, मैट्रों चाहिए और ब्रिज चाहिए। इन सबके लिए या तो खेत होम हो रहे हैं या फिर जंगल। जंगल को हजम करने की चाल में पेड़, जंगली जानवर, पारंपरिक जल स्रोत सभी कुछ नष्ट हो रहा है। यह वह नुकसान है जिसका हर्जाना संभव नहीं है और यही पर्यावरण प्रदूषण का बड़ा कारण है। विकास की ऊंचाइयां छूने के साथ हमें पर्यावरण संरक्षण की सीढ़ियां लगानी होगा। भारत के

     

     

    उद्योगों के लिये पर्यावरण आधारित लक्ष्यों को निर्धारित करने की जरूरत है जैसे परिवहन, खाद्य और कृषि, प्लास्टिक, पैकेजिंग, धातु और खनिज, भवन-निर्माण, सीमेंट, कपड़ा, ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स और निर्माण। इनमें से परिवहन उद्योग को खाद्य और गीले कूड़े के दूसरे रूप के उचित निस्तारण से जोड़ कर इसे अधिक टिकाऊ बनाने में अलग-अलग स्तर पर सरकारें महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं। ऐसा अनुमान है कि 2050 के हिसाब से भारत में 70 प्रतिशत इमारतों का निर्माण होना अभी बाकी है, ऐसे में पूरे निर्माण उद्योग को पर्यावरण अनुकूल आर्थिक पद्धति से जोड़ना भारत के आवासीय और शहरीकरण रोडमैप के लिए नितांत अपेक्षित है। इसी तरह हर उद्योग के लिए पर्यावरण अनुकूल पद्धति को अपने कारोबार और रणनीति में जोड़ना जरूरी है।
    भारत जैसे विकासशील देशों में बुनियादी ढांचे के विकास की बहुत गुंजाइश और जरूरत है। अगर यह बुनियादी विकास व्यापक दायरे में और पर्यावरण के महत्व को ध्यान में रखते हुए किया जाए, तो हम देश के लिए सतत एवं संतुलित विकास की उम्मीद कर सकते हैं। भारत में कई सड़क परियोजनाएं संसाधनों का बुद्धिमानी से उपयोग कर रही हैं। इसका एक प्रमुख उदाहरण सड़क निर्माण में प्राथमिक सामग्री के रूप में स्टील ग्रिट्स का पुनः उपयोग करना है। सड़कों के किनारों पर बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण किया जाना है। भारत जैसे देश में जहाँ जनसंख्या बहुत अधिक है और संसाधन सीमित हैं,

     

     

     

    नीति निर्माताओं के लिए पर्यावरण संरक्षणवादी होना अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है। हम पहले से ही अतीत की नासमझ प्रथाओं के नकारात्मक परिणामों का सामना कर रहे हैं, जिन्होंने पृथ्वी के संसाधनों को नष्ट कर दिया है, लोगों को स्वस्थ पर्यावरण और वन्यजीवों को उनके प्राकृतिक आवास से वंचित कर दिया है। हमें हर कीमत पर पर्यावरण का संरक्षण और सुरक्षा करनी होगी और पृथ्वी को सभी के लिए एक बेहतर और स्वच्छ आवास बनाने के लिए उपाय करने होंगे, साथ ही साथ अर्थशास्त्र और मानव जीवन को प्रभावित करने वाले हर दूसरे पहलू में स्थायी रूप से पर्यावरण मूलक विकास करना होगा। जरूरत है तकनीकी आविष्कार की जो पर्यावरण अनुकूल अर्थव्यवस्था को संभव और सक्षम बना सके। भारत को देशव्यापी जागरूकता अभियान की भी जरूर है जिसमें घरेलू स्तर पर कूड़ों को अलग-थलग करने के महत्व पर जोर दिया जाए। गीले और सूखे कूड़े का अलग-अलग निपटारा गीले कूड़े के कैलोरी वैल्यू का पता लगाने और सूखे कूड़े को रिसाइकल करने के लिए महत्वपूर्ण है। साथ ही केंद्र सरकार की ओर से जारी अलग-अलग दूसरे नियम जैसे प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स, ई-वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स, कंस्ट्रक्शन एंड डेमोलिशन वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स, मेटल्स रिसाइकलिंग पॉलिसी इत्यादि को राष्ट्रीय पर्यावरण अनुकूल रोडमैप के साथ जरूर जोड़ा जाना चाहिए।

     

     

     

    जल के बिना जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। जीवन-निर्वाह के लिए निर्मल एवं पेयजल की आपूर्ति आवश्यक है। जल प्रदूषण के मुख्य कारक हैं- घरों से निकलने वाला कूड़ा-कचरा एवं अपशिष्ट पदार्थ, फैक्ट्रियों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ आदि। जल प्रदूषण का दुष्परिणाम यह होता है कि जल का ताप, उनका रंग, उसकी गंध एवं रेडियोधर्मिता में अंतर आ जाता है। जल प्रदूषण का दुष्प्रभाव फसलों एवं मिट्टी पर भी पड़ता है। इसकी रोकथाम के लिए फैक्ट्रियों को यह निर्देश दिया जाना चाहिए कि अपशिष्ट युक्त पानी को स्वच्छ कर ही निस्तारित किया जाए। जल आपूर्ति के लिए बिछाई गए पाइपों के जोड़ उचित ढंग से जोड़े जाएं। कुछ रासायनिक कण मानव के लिए हानिकारक होते हैं। वे मुख्य रूप से सीसा, जस्ता, लोहा, कैडमियम, फ्लोराइड, निकल, क्लोरीन, बेरियम आदि हैं। ये वायु,, जल, मृदा आदि को प्रदूषित कर मानव-मस्तिष्क में विकार पैदा करते हैं। इनके दुष्परिणाम से यकृत और वृक्क भी प्रभावित होते हैं।

     

     

    पर्यावरण का संतुलन प्रकृति, संस्कृति एवं विकृति के त्रिक पर आश्रित है। प्रकृति नियति का नैसर्गिक स्वरूप है। संस्कृति जीवन-शैली है। संस्कृति ही मानव में देवत्व उभारती है। विकृति वस्तुतः संस्कृति एवं प्रकृति दोनों की विलोम स्थिति है। विकृति के फलस्वरूप समाज में असुरता एवं विध्वंस बढ़ने लगते हैं। प्रकृति को संवारना संस्कृति है, जबकि इसको बिगाड़ना विकृति। प्राणिजगत् के लिए संतुलित पर्यावरण अत्यंत आवश्यक है, लेकिन पर्यावरण को प्रदूषित एवं असंतुलित करने के जिन उपर्युक्त कारकों को रेखांकित किया गया है, उन सभी का मुख्य कारण मानव समुदाय ही है। अदूरदर्शिता, स्वार्थ, लोभ, अनियंत्रित विकास, सुविधा-भोग, जनसंख्या-विस्फोट आदि ने पर्यावरण को प्रदूषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पर्यावरण और सृष्टि के बीच एक घनिष्ठ संबंध रहा है। सृष्टि-परिवर्तन के प्रभाव से पर्यावरण में भी परिवर्तन होता है। यदि परिवर्तन जीव-जगत् के लिए अनुकूल होता है तो यह कहा जाता है कि वे हमारे लिए ग्राह्य है। यदि परिवर्तन से प्राणी को प्रतिकूलता प्रतीत होती है तो वे अग्राह्य हैं। यही प्रतिकूलता प्रदूषण का कारण बनती है।

     

     

    पर्यावरण असंतुलित होने का सबसे बड़ा कारण आबादी का बढ़ना है जिससे आवासीय स्थलों को बढ़ाने के लिए वन, जंगल यहाँ तक कि समुद्रस्थलों को भी छोटा किया जा रहा है। पशुपक्षियों के लिए स्थान नहीं है। इन सब कारणों से प्राकृतिक का सतुंलन बिगड़ गया है और प्राकृतिक आपदाएँ बढ़ती जा रही हैं। वर्तमान में विकास की जो प्रक्रिया है वह पर्यावरण विनाश एवं प्रदूषण का कारण है। इसलिए यह सामयिक चुनौती है कि पर्यावरण को प्रदूषण से मुक्त कैसे रखा जाए? पर्यावरण-अनुकूल जीवन की ओर बदलाव हमारे ग्रह के भविष्य, मानव-जीवन के अस्तित्व, व्यक्तिगत भलाई और आर्थिक समृद्धि में एक निवेश है। हम जो भी पर्यावरण के प्रति जागरूक विकल्प चुनते हैं वह एक स्वच्छ, हरित और अधिक टिकाऊ दुनिया की ओर एक कदम है। विकास की चढ़ाई पर्यावरण की दृष्टि से बड़ी नाजूक और खतरों से भरी है। कदम-कदम पर सावधानी एवं जागरूकता चाहिए अन्यथा पलों की खता सदियों की सजा बन जाती है। अतः विकास के सपने अवश्य देखें मगर उन सपनों को हकीकत में बदलते हुए हम क्षण-क्षण पर्यावरण एवं प्रकृति के प्रति सचेत एवं सावधान रहें।

    बढ़ती आबादी के बीच गंभीर होती पर्यावरण चुनौतियां
    Share. Facebook Twitter Telegram WhatsApp Copy Link
    Previous Articleआम बजट की चुनौतियां
    Next Article आवेदन को रफा-दफा करने के नाम पर बलिया थाना के दरोगा का रूपये के लेन-देन का वीडीयो वायरल

    Related Posts

    राष्ट्र संवाद के ख़बर का असर:- आदित्यपुर पुलिस ने नवजात शिशु के शव को कब्र निकाल पोस्टमार्टम के लिए के लिए भेजा

    May 18, 2025

    सिंदूर यात्रा’ में हजारों महिलाओं ने नारी सम्मान और सैनिकों के पराक्रम का किया जयघोष

    May 18, 2025

    माझी परगना महाल एवं जनप्रतिनिधियों ने नगर निगम विस्तार योजना का किया विरोध

    May 18, 2025

    Comments are closed.

    अभी-अभी

    राष्ट्र संवाद के ख़बर का असर:- आदित्यपुर पुलिस ने नवजात शिशु के शव को कब्र निकाल पोस्टमार्टम के लिए के लिए भेजा

    सिंदूर यात्रा’ में हजारों महिलाओं ने नारी सम्मान और सैनिकों के पराक्रम का किया जयघोष

    माझी परगना महाल एवं जनप्रतिनिधियों ने नगर निगम विस्तार योजना का किया विरोध

    डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी यूनिवर्सिटी का नाम बदलना एक दुर्भाग्यपूर्ण कदम : सुनील दे

    एक राष्ट्र एक चुनाव के चाईबासा प्रभारी बनाए गए रवि शंकर तिवारी

    साकची गुरुद्वारा चुनाव: वर्तमान प्रधान निशान सिंह ने 3 वर्षों की उपलब्धियां गिनाकर किया चुनावी प्रचार का आगाज

    डा सुधा नन्द झा ज्यौतिषी जमशेदपुर झारखंड द्वारा प्रस्तुत राशिफल क्या कहते हैं आपके सितारे देखिए अपना राशिफल

    “मालदार दूल्हा ढूंढने वालों, खुद से भी सवाल करो!”

    आगे की सोचने की आवश्यकता 

    चेलेबी एयरपोर्ट सर्विसेज इंडिया के खिलाफ एक्शन के मायने

    Facebook X (Twitter) Telegram WhatsApp
    © 2025 News Samvad. Designed by Cryptonix Labs .

    Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.