आईना दिखाने के पहले खुद भी आईने के सामने खड़ा होना होगा
देवानंद सिंह
केंद्र में बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए गठबंधन की सरकार बन गई है और सरकार ने मंत्रियों के विभागों का बंटवारा भी कर दिया गया है और मंत्रियों ने अपना कार्यभार भी ग्रहण कर लिया है। इसी बीच आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के ताजा बयान ने सियासी हलकों में बैचेनी-सी पैदा कर दी है, क्योंकि जहां बीजेपी नेतृत्व वाली एनडीए सरकार सत्ता पर काबिज हो रही थी, वहीं भागवत ने नागपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में यह सवाल उठाया कि मणिपुर एक साल से जल रहा है, उस पर ध्यान कौन देगा ? इसके साथ ही भागवत ने नसीहत भी दी कि जो मर्यादा का पालन करे और अहंकार न करे, वही सही सेवक है। सहमति से देश चलाने की परंपरा का स्मरण भी भागवत ने कराया।
भागवत का यह बयान इसीलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि सत्ता में पिछले 10 साल से बीजेपी की सरकार रही है और बीजेपी के शासनकाल में ही मणिपुर जलता रहा है, इसीलिए भागवत का सीधा सवाल बीजेपी सरकार के नुमाइंदों से होगा। ऐसे में, यह सवाल भी उठ रहे हैं कि बीजेपी और आरएसएस के बीच सबकुछ सही नहीं चल रहा है क्या ? बीजेपी को आरएसएस का राजनीतिक विंग माना जाता है, अगर, ऐसे में आरएसएस चीफ द्वारा मणिपुर को लेकर सरकार से सवाल पूछा जा रहा है तो यह वाकई गंभीर विषय है, जो बीजेपी और आरएसएस के बीच तल्खी का संकेत देता है। सरकार से सवाल पूछने संबंधी बयान केवल आरएसएस चीफ की तरफ से ही नहीं आया है, बल्कि चुनावों के दौरान बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी इसी तरह का बयान आरएसएस को लेकर दिया था, जिससे यह संकेत मिलता है कि निश्चित ही बीजेपी और आरएसएस के बीच कुछ तो गडबड़ है। नड्डा ने कहा था – भाजपा को अब आरएसएस की बैसाखी की जरूरत नहीं। पहले कभी होती भी थी, पर अब नहीं। संघ की पृष्ठभूमि से भाजपा में आए कार्यकर्ताओं के लिए यह कंफ्यूजन पैदा करने वाला बयान था। जेपी नड्डा को इस तरह के बयान देने की जरूरत क्यों पड़ी, यह समझना भी आसान नहीं था और चुनावों में भी इसकी वजह क्या थी कोई भी बीजेपी नेता नहीं बता पाया।
पहले नड्डा और अब भागवत के बयान में बिल्कुल विरोधाभास है। नड्डा का बयान आरएसएस के खिलाफ तो भागवत का बयान बीजेपी के खिलाफ है। ऐसे में, कैसे यह कहा जा सकता है कि आरएसएस और बीजेपी के बीच सबकुछ ठीक चल रहा है। नड्डा के बयान के बाद आरएसएस की नाराजगी का इसे इजहार भी माना जा सकता है, जो बीजेपी के लिए आने वाले दिनों में भी मुश्किल पैदा कर सकता है और मणिपुर में बीते साल भर से उत्पन्न अशांति पर आरएसएस प्रमुख का जो बयान आया है, वह बीजेपी और आरएसएस के बीच तल्खी का इजहार करता है। कहीं न कहीं, इस तल्खी का असर चुनावों में भी देखने को मिला, क्योंकि बीजेपी उम्मीद के मुताबिक सीटें लाने से काफी पीछे रह गई।
भले ही जोड़-तोड़ कर बीजेपी ने केंद्र में सरकार बना ली हो और नरेंद्र मोदी तीसरी बार पीएम बन गए हों, लेकिन पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में पार्टी की जो दुर्गति हुई, वह निश्चित ही बीजेपी के लिए चिंता का विषय है। लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद से ही यह आम सवाल हो गया है कि बीजेपी की ऐसी हालत क्यों हो गई है? 282 से चल कर 303 सीटों की ऊंचाई तक जाने वाली बीजेपी के साथ ऐसा क्या हो गया या नरेंद्र मोदी की सरकार ने 2019 से 2024 के बीच के पांच सालों में ऐसी कौन सी भूल कर दी, जिसका खामियाजा उसे 242 सीटों के नतीजे के रूप में भुगतना पड़ा। इसके कारणों की पड़ताल भी अपने-अपने अंदाज में लोग कर रहे हैं। बीजेपी के भीतर भी यकीनन इस पर मंथन चल ही रहा होगा।
कई गलतियां तो जग जाहिर हैं, इसमें प्रमुख कारण सिटिंग सांसदों के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी को न पहचान पाना रहा। दरअसल, बीजेपी ने ज्यादातर सिटिंग सांसदों को इस बार भी रिपीट कर दिया। टिकट बंटवारे में बीजेपी के जिन शीर्ष नेताओं की चली, उनमें गृहमंत्री अमित शाह भी थे। स्थानीय स्तर के नेताओं या प्रादेशिक संगठनों की राय जाने बिना या उनकी राय को दरकिनार कर बीजेपी नेतृत्व ने पुराने उम्मीदवारों को मौका दे दिया। यही वजह रही कि जिन 61 उम्मीदवारों की हार हुई, उनमें मोदी मंत्रिमंडल के 18 मंत्री भी शामिल थे।
अमेठी से केंद्र में मंत्री रहीं स्मृति इरानी को कांग्रेस के साधारण नेता किशोरी लाल शर्मा ने हरा दिया। अर्जुन मुंडा, राजीव चंद्रशेखर, आरके सिंह, अजय टेनी, साध्वी निरंजन ज्योति जैसे मंत्री हारने वालों में शामिल हैं। बीजेपी के लिए 400 पार का नारा भारी पड़ गया। लोगों के मन में यह सवाल स्वाभाविक रूप से उठने लगा कि 400 पार क्यों चाहते हैं नरेंद्र मोदी। बीजेपी इसका रहस्य चुनाव में लोगों को समझा नहीं पाई, इन परिस्थितियों से यह सिद्ध होता है कि कहीं न कहीं आरएसएस और बीजेपी में तल्खी पहले से ही थी, इसीलिए बीजेपी आशाजनक परिणामों तक नहीं पहुंच पाई।
दूसरा यह सवाल भी उठता है कि आईना दिखाने से पहले खुद भी आईने के सामने खड़ा होना होगा। संघ के मुखपत्र ने लिखा : लोकसभा चुनाव परिणाम नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व की चकाचौंध में डूबे उत्साही नेताओं का रियलिटी चेक है, परंतु क्या आरएसएस यह बताएगा कि उसके स्वयंसेवक सही मायने में बच गए हैं। प्रांत प्रचारक, प्रचारक व अन्य दायित्वों में शामिल पदाधिकारी कितने ईमानदार हैं ?