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    Home » बैशाखी यानी धरती पर मानव रूपी शेरों का जन्म खालसे के रूप में
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    बैशाखी यानी धरती पर मानव रूपी शेरों का जन्म खालसे के रूप में

    Devanand SinghBy Devanand SinghApril 9, 2024No Comments4 Mins Read
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    बैशाखी यानी धरती पर मानव रूपी शेरों का जन्म खालसे के रूप में |
    हिन्दुस्तान का अहम सत्य हैं |
    जब मुगलों का कहर हिन्दुस्तान पर जुल्म बनकर टूट रहा था |

     

     

    हिन्दुस्तान वासियों को अनेक प्रकार से परेशान किया जा रहा था | हिन्दुस्तान देश के अनेक मंदिरों कों लुटा जा रहा था और तोड़ा जा रहा था | हिन्दुस्तान की बहु बेटियों के साथ अत्याचार किया जा रहा था और उन्हें मुगल देशों में दो – दो चार – चार दिनारो में बेचा जा रहा था | हिन्दुस्तान में मुग़ल, सनातन धर्म वासियों का धर्म परिवर्तन करा रहे थे |
    और जो धर्म परिवर्तन नहीं करता था उनकों मौत के घाट उतार दिया जाता था | तभी भारत वर्ष कि धरती पर गुरु गोबिन्द सिंह ने जन्म लिया और भारत वर्ष को बचाने के लिए 1699 में अन्न्दपुर शहर में बैशाखी के दिन पंच पियारे को जन्म दिया और उन सबकों को आदेश दिया की अत्याचार के खिलाफ लड़ेंगे |

     

    हिन्दू धर्म को बचाने के लिए गुरु गोबिन्द सिंह जी ने फ़ौज तैयार कि सभी शास्त्रधारी थें | गुरु गोबिन्द सिंह जी ने उनके हाथ में तलवार दि , दयाराम को दया सिंह की मानक उपाधि से सम्मानित किया | धर्म चन्द्र को धर्म सिंह की उपाधी से सम्मानित किया धरती पर बब्बर शेरों को जन्म दिया | इस प्रकार खालसा पथ की संख्या दिन प्रतिदिन वृद्धि होने लगी खालसे की स्थापना का सिखों की भावनाओं एवं विचारों पर गहरा प्रभाव पड़ा गुरु गोबिन्द सिंह जी ने अमृत पान करा कर अमृत धारी सिख बनाये और उच्च नीच की भावनाओं कों पुरी तरह खत्म किया |

     

    जात पात के अंतर को भी समाप्त कर दिया खालसे की सर्जना का सिखों और हिन्दुस्तान वासियों में गजब का आत्मविश्वास और हिम्मत आई कुचले हुये लोगों की अस्थियों में भी प्राण डाले गुरु गोबिन्द सिंह जी ने सिख बनाते
    हुये | उस समय मनुष्यों की बहुत बड़ी परीक्षा ली | हाथ में चमचमाती तलवार लिये हुये सर पर पगड़ी सजाये हुये और बब्बर शेर की तरह दहाड़ मरते हुये भरी सभा में बोले जो मुझे अपना शिश देगा में उसे सिक्खी दूंगा | तभी दया दस धर्म चन्द्र जैसे लोगों ने हिम्मत दिखाई और गुरु जी को अपना शिश देनें को तैयार हो गयें | गुरु जी दया राम को समीयाने के अंदर लें गयें और जब गुरु जी बहार आयें तब उनकी तलवार पूरी तरह खून से लपलपा रही थी | मगर सिखों के पहले नौ गुरुओं ने उनमे इतनी हिम्मत भर दी थी की मुगलों से आजादी पाने के लिये अपनी जान की भी परवाह नहीं की फिर धर्मचन्द्र जी ने अपना शिश दिया | गुरु गोविन्द सिंह ने और सिरों की मांग की तो उस सभा में गुरु जी को शिश देने की होड़ लग गई | मगर गुरु गोविन्द सिंह ने सिर्फ पांच ही शिश लियें | और इन्हें बब्बर शेरों का रूप देकर पंच पियारे बना दियें |

     

     

    और गुरु गोविन्द सिंह ने इन पंच पियारो को खंडे बांटे में अमृत तैयार किया अमृत पिलाकर सिख बनाये | तभी गुरु गोबिंद सिंह ने कहा मुझे भी सिख बनाओ तब पंच पियारो ने गुरु जी से कहा हम आम आदमीयों ने शिश देकर सिख्खी ली है | आप सिख्खी लेने के लियें क्या दे रहें है पंथ को |
    गुरु गोबिंद जी ने कहा दान तों न दें संकु भेटा मंजुर करों | अगर इस सिख्खी पर कोई भी परेशानी आई तो मैं अपना सर्ववंश वार दूंगा | अपने इसी वाक्य कों पुरा किया अपने पिता तेगबहादुर अपनी माता अपने चार पुत्रों का और अपना बलिदान दिया | और सर्ववंश दानी बनें |
    पंथ का दास
    सिख्खी प्रचारक

    खालसा इंटर कॉलेज नूरपुर उत्तर प्रदेश के प्रबंधक मेम्बर
    राष्ट्र संवाद पत्रिका के लेखक टाटानगर से
    सरदार सुरेन्द्र सिंह बिजनौरी टाटा वालें
    9334628066

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