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    Home » एयर चीफ़ मार्शल की चेतावनी को गंभीरता से लेने की जरूरत
    Breaking News Headlines जमशेदपुर राष्ट्रीय संपादकीय

    एयर चीफ़ मार्शल की चेतावनी को गंभीरता से लेने की जरूरत

    News DeskBy News DeskJune 1, 2025No Comments6 Mins Read
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    देवानंद सिंह
    भारत के वायुसेना प्रमुख एयर चीफ़ मार्शल अमर प्रीत सिंह द्वारा गत दिनों दिया गया बयान भारत की रक्षा तैयारियों, स्वदेशी उत्पादन, और रक्षा आपूर्ति श्रृंखला की गंभीर वास्तविकताओं पर एक सटीक और साहसिक टिप्पणी है। दिल्ली में आयोजित ‘कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडियन इंडस्ट्रीज़’ (CII) के सालाना सम्मेलन में उन्होंने न सिर्फ़ रक्षा सौदों में हो रही देरी पर चिंता जताई, बल्कि घरेलू रक्षा उद्योग के प्रति बढ़ती हताशा को भी सार्वजनिक रूप से अभिव्यक्त किया। उनका कहना था कि ऐसा एक भी प्रोजेक्ट नहीं है, जो तय समय पर पूरा हुआ हो। यह वक्तव्य न केवल भारतीय वायुसेना की वर्तमान स्थिति का सटीक प्रतिबिंब है, बल्कि यह एक व्यापक नीति विफलता की ओर इशारा करता है।

    वायुसेना प्रमुख का यह बयान उस समय आया है, जब भारत ने हाल ही में पाकिस्तान के साथ चार दिन तक सीमित सैन्य झड़पों का सामना किया, जिसमें ड्रोन, मिसाइल और तोपों का भरपूर इस्तेमाल हुआ। इन झड़पों के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा प्रतिष्ठानों के भीतर रक्षा तैयारियों को लेकर फिर से एक गंभीर समीक्षा शुरू हो गई है। इस पृष्ठभूमि में एयर चीफ़ मार्शल अमर प्रीत सिंह का बयान न केवल समयानुकूल है, बल्कि चेतावनी भी है कि यदि रक्षा प्रणाली की उत्पादन व आपूर्ति प्रक्रियाएं इतनी धीमी रहीं, तो भारत अपनी रणनीतिक प्राथमिकताओं को पूरा करने में असफल रह सकता है।

    भारतीय वायुसेना को वर्तमान में लड़ाकू विमानों की गंभीर कमी का सामना करना पड़ रहा है। उसे 42 स्क्वाड्रन की आवश्यकता है, लेकिन फिलहाल उसके पास महज़ 30 हैं, जिनमें से कुछ स्क्वाड्रन शीघ्र ही सेवानिवृत्त हो सकते हैं। यह संख्या आने वाले वर्षों में और घटकर 28 तक जा सकती है। ऐसे में, जब चीन और पाकिस्तान जैसे देशों के साथ संभावित दो-मोर्चा युद्ध की संभावना बनी रहती है, तो यह स्थिति बेहद चिंताजनक है।

    वहीं, स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान तेजस एमके-1ए की डिलीवरी में देरी भी चिंता का विषय है। हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड के साथ 83 तेजस विमानों की डील 2021 में हुई थी, लेकिन इसकी डिलीवरी अब तक नहीं हो सकी है। इसके अलावा, एचटीटी-40 बेसिक ट्रेनर विमानों की डिलीवरी भी निर्धारित समय से पीछे चल रही है। ‘एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट’ प्रोजेक्ट की स्थिति भी आशाजनक नहीं कही जा सकती। प्रोटोटाइप के लिए 2035 की अनुमानित समय-सीमा और फिर उत्पादन में लगने वाले अतिरिक्त तीन वर्ष इसे लगभग 13 वर्षों के दीर्घकालिक लक्ष्य में बदल देते हैं।

    इसमें आश्चर्य नहीं कि पूर्व एयर चीफ़ मार्शल वीआर चौधरी (रिटायर्ड) ने भी मौजूदा वायुसेना प्रमुख के बयान का समर्थन करते हुए कहा कि अगर, डिफेंस डील्स के शुरुआती चरण में ही कंपनियां यह स्पष्ट कर देतीं कि वे समय-सीमा पर खरा नहीं उतरेंगी, तो वैकल्पिक समाधान खोजे जा सकते थे। यह टिप्पणी भारत के रक्षा अनुबंधों की व्यावसायिक संरचना और अनुशासन पर भी सवाल खड़े करती है। ‘मेक इन इंडिया’ की अवधारणा को वायुसेना प्रमुख ने ‘डिज़ाइन इन इंडिया’ में बदलने की मांग करते हुए एक बड़ी बौद्धिक चुनौती दी है। उनका यह कहना कि हम सिर्फ़ भारत में उत्पादन की बात नहीं कर सकते, हमें डिज़ाइनिंग और डेवलपमेंट को भी भारत में लाना होगा। इस दिशा में सोच शिफ्ट की आवश्यकता को रेखांकित करता है, लेकिन सच्चाई यह है कि आज भी भारत के अधिकांश रक्षा हार्डवेयर आयातित हैं। तेजस विमान का इंजन अमेरिका से, अर्जुन टैंक का इंजन जर्मनी से, हेलीकॉप्टर इंजन की तकनीक फ्रांस से और अन्य उपकरणों के कई अहम घटक बाहर से आयात होते हैं।

    डिफेंस विशेषज्ञ कहते हैं कि भारत आज तक कोई भी अत्याधुनिक इंजन विकसित नहीं कर पाया है और न तो फाइटर जेट के लिए, न टैंक या हेलिकॉप्टर के लिए। यही हमारी आत्मनिर्भरता की सबसे बड़ी विफलता है। डिफेंस डील की प्रक्रिया में शामिल 12 चरण, और प्रत्येक चरण में होने वाली अड़चनें किसी भी परियोजना को औसतन 7 से 10 वर्षों तक खींच देती हैं। यह परिस्थिति न केवल सैन्य बलों के मनोबल को प्रभावित करती है, बल्कि देश की रणनीतिक स्थिति को भी कमजोर करती है। राफ़ेल लड़ाकू विमानों का उदाहरण सामने है। 2007 में शुरू हुई प्रक्रिया 2016 तक राजनीतिक पेचीदगियों में उलझी रही और डिलीवरी 2018 से शुरू हो सकी।

    ऐसे में, वायुसेना प्रमुख के कथनों को केवल शिकायत के रूप में नहीं, बल्कि एक नीति-सुझाव के रूप में देखा जाना चाहिए। यदि, स्वदेशी विकास समय पर संभव नहीं है, तो विदेशों से तत्काल खरीद करने में झिझक नहीं होनी चाहिए। ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसे अभियानों को व्यवहारिक धरातल पर तभी लाया जा सकता है, जब स्वदेशीकरण सिर्फ़ उत्पादन पर नहीं, बल्कि शोध, डिज़ाइन, विकास और गुणवत्ता नियंत्रण पर केंद्रित हो। इसके लिए केवल बजट बढ़ाना पर्याप्त नहीं, बल्कि निजी क्षेत्र को भी रक्षा उत्पादन में ठोस हिस्सेदारी देनी होगी।

    डिफेंस क्षेत्र को दी जाने वाली नौकरशाही छूट और गारंटी यदि निजी कंपनियों को भी मिले, तो प्रतिस्पर्धा और पारदर्शिता के साथ गुणवत्ता में भी सुधार आ सकता है। इसके साथ ही, कॉन्ट्रैक्ट फेलियर की सूरत में दंडात्मक प्रावधानों को भी सख़्ती से लागू करना होगा ताकि समय और संसाधनों की बर्बादी रोकी जा सके। भारत वैश्विक सैन्य ताकत रैंकिंग में चौथे स्थान पर है, जो कि एक सराहनीय स्थिति है, लेकिन मात्र आंकड़ों से रक्षा तैयारियां सुनिश्चित नहीं होतीं। भारत के पास 513 फाइटर जेट, 270 ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ़्ट और 80 अटैक हेलीकॉप्टर हैं, ये संख्या शांति के समय भले प्रभावशाली लगें, लेकिन संकट के समय त्वरित पुनःपूर्ति, रखरखाव और अपग्रेडेशन की क्षमता अधिक महत्वपूर्ण होती है।

    आज जब भारत के पड़ोसी देश तेज़ी से अपने रक्षा साजो-सामान का आधुनिकीकरण कर रहे हैं, भारत को भी ‘टाइम कंसियस’ रणनीति अपनानी होगी। रक्षा में ‘वक़्त पर तैयार रहना’ ही सबसे बड़ी रणनीतिक सफलता होती है। एयर चीफ़ मार्शल अमर प्रीत सिंह का बयान कोई आकस्मिक या निराशाजनक वक्तव्य नहीं, बल्कि भारत की रक्षा नीति के लिए एक निर्णायक मोड़ है। यह नीति निर्माताओं के लिए एक स्पष्ट संदेश है कि नीतिगत दृष्टिकोण, नौकरशाही प्रक्रिया और तकनीकी विकास की गति में अगर बदलाव नहीं लाया गया, तो भारत को सामरिक मोर्चे पर भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।

    भारत को अब ‘टैलेंटेड डिज़ाइन’, ‘टेक्नोलॉजी ट्रांसफर’ और ‘ट्रांसपेरेंट प्रोक्योरमेंट’ जैसे तीन स्तंभों पर आधारित रक्षा रणनीति की ओर बढ़ना चाहिए। तभी ‘मेक इन इंडिया’ एक नारे से निकलकर वास्तविक युद्धक्षमता का वाहक बन पाएगा। एयर चीफ़ मार्शल की चेतावनी को यदि गंभीरता से नहीं लिया गया, तो आने वाला दशक केवल तकनीकी प्रतीक्षा और सामरिक हताशा में बीतेगा, जो भारत जैसे उभरते वैश्विक शक्ति के लिए आत्मघाती हो सकता है।

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