मैं एक उड़ता हुआ परिन्दा
मैंने तुमसे सिर्फ़ उड़ने के लिए
थोड़ी-सी जगह माँगी थी,
और तुमने मुस्कुराते हुए सारा आकाश दे दिया,
मैंने सिर्फ़ तुमसे तुम्हारी एक उँगली का सहारा माँगा था
और तुमने हँसते-हँसते मुझे अपने कंधों पर बिठा लिया,
मुझे नहीं था मालूम कि तुम पहाड़ों, घाटियों और न जाने कई खाइयों को पार करते रहे,
मेरी साँसों की लय को टूटने नहीं दिया ।
मैं जानता हूँ —
आज भी तुम्हारे बुढ़ाते कंधों पर मेरा सारा बचपन जिन्दा है,
तुम्हारे पाँवों के छालों में मेरी धड़कनें सुरक्षित हैं ,
और जब भी धड़कनें टूटती सी दिखती हैं ,
उन्हीं सुरक्षित धड़कनों की एक नन्हीं-सी कड़ी
आकर इन्हीं धड़कनों को फ़िर से सम्भाल लेती हैं,
मेरे लड़खड़ाते पाँव सम्भल जाते हैं,
जबकि तुम ताउम्र मेरे बोझ को लड़खड़ाते ढोते रहे।
मैं जानता हूँ —
तुमसे मैंने थोड़ी-सी जगह माँगी थी,
और तुमने मुझे उड़ने के लिए सारा आकाश दे दिया,
और तुम सिर्फ़ आकाश देखते रहे,
तुमने पूछा था, ” बेटा, मुझे कभी आकाश नहीं मिला ”
और तुरन्त मेरी आँखों में समन्दर उतर आया,
मैं कुछ भी कह नहीं सका,
और तब तुमने मुस्कुराते मेरी पीठ सहलायी और कहा-
” कोई बात नहीं बेटा ”
और मैंने देखा तुम चुपचाप अपने कंधे पर गमछा लिए
चले जा रहे थे और तुम्हारे पीछे
मेरी जिंदगी खुलती गयी और तब समझा
मेरी जिंदगी तुम्हारी दी हुई अमानत है।
तुमने मुझे अपने हाथों का सहारा दिया,
और आज तुम्हारे बुढ़ाते हाथ काम्पते रहे,
लेकिन तुम्हारे बुढ़ाते कंधों पर आज भी
मेरा बचपन जिन्दा है,
आज भी तुम्हारे दिये गये आकाश में
“मैं एक उड़ता हुआ परिन्दा हूँ ।
राजमंगल पाण्डेय
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