मंत्रीमंडल में महिला विधायकों को शामिल करने में इतनी उदासीनता क्यों ?
देवानंद सिंह
अक्सर, सत्ता में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की चर्चा हर वक्त होती है। हर पार्टी चुनाव में इस बात को लेकर माइलेज लेना चाहती है, लेकिन जब सत्ता में आ जाती है तो ठीक इसका उल्टा होता है। महिलाएं अगर, चुनाव जीतकर भी आती हैं तो उन्हें मंत्रीमंडल में शामिल नहीं किया जाता है। हमारे देश में ऐसे बहुत से उदाहरण हैं। चाहे केंद्र की सरकार रही हो या फिर राज्य सरकारें।
ताजा उदाहरण झारखंड है। इसीलिए यहां सियासी गलियारों में एक बार फिर यह चर्चा तेज हो गई है क्या कांगेस महिला विधायक को मंत्रीमंडल में जगह देकर आधी आबादी सम्मा न करेगी ? क्योंकि झारखंड में कांग्रेस के पास पांच महिला विधायक हैं, लेकिन किसी को भी मंत्रीमंडल में अभी तक जगह नहीं दी गई है, जबकि झामुमो के महिला विधायकों की संख्या आठ है, जिसमें से केवल एक ही महिला को मंत्रीमंडल में शामिल किया गया है। महिला विधायकों की अनदेखी का सवाल इसीलिए भी उठ रहा है, क्यों कि हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली महागठबंधन की सरकार के मंत्रीमंडल का विस्तार के समय तय हुआ था कि चार महिला विधायकों पर एक मंत्री पद दिया जाएगा, लेकिन यहां एक 13 महिला विधायक होने के बाद भी एक ही महिला मंत्रीमंडल में शामिल है। हालांकि, कांग्रेस के अंदर शुरूआत में चार महिला विधायक थीं, लेकिन अब महिला विधायकों की संख्या पांच हो चुकी है। अगर, उसके बाद भी महिला विधायक को मंत्रीमंडल में जगह नहीं दी गई है तो यह महिला विधायकों की अनेदखी ही मानी जाएगी।
साल 2019 के विधानसभा चुनाव में झारखंड की जनता ने सरकार बनाने में महागठबंधन को पूर्ण बहुमत दिया था। यह अपने-आप में काफी महत्वेपूर्ण था कि अलग राज्यों बनने के बाद महागठबंधन में शामिल प्रमुख दलों झामुमो और कांग्रेस ने सबसे अच्छाह प्रदर्शन किया। जहां, झामुमो का 30 सीटें मिलीं थीं, वहीं कांग्रेस को 18 सीटें मिलीं थीं। उस वक्त 4 विधायक कांग्रेस के सिंबल पर जीतकर आईं थीं। यह बात ठीक है कि इनके पास चुनाव मैदान में उतरने के लिए कांग्रेस का सिंबल था, लेकिन अगर, जीत की बात करें तो इन्होंंने खुद के दम पर हासिल की, क्योंकि जिस तरह कांग्रेस का हर जगह न हो रहा है, ऐसे में किसी भी कांग्रेस प्रत्याशी द्वारा जीत हासिल करना अपने-आप में बहुत बड़ी बात है। झारखंड के मामले में देखें तो उदाहरण के तौर पर महागमा सीट को ले लेते हैं। यहां कांग्रेस ने दीपिका पाण्डेय को टिकट दिया था। दीपका पिछले दो दशक से इस विधानसभा क्षेत्र में काम कर रहीं थीं। उनके परिवार का इस विधानसभा क्षेत्र में अपना एक व्यापक वजूद रहा है। दीपिका की दशक की मेहनत का ही परिणाम था कि उन्होंने विधानसभा में कदम रखा और उन्होंने जीत दर्ज की। इसी तरह रामगढ़ से ममता देवी का भी उदाहरण हमारे सामने है। वह 10 वर्षों से विधानसभा क्षेत्र में सक्रिय थीं। वहीं, बड़कागांव से अम्बाे प्रसाद ने अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाया, और भी ऐसे बहुत सारे उदाहरण हैं।
ऐसे में, ऐसे वक्त में यह एक गंभीर सवाल है, जब न केवल महिलाओं को आगे बढ़ाने की बात होती है, बल्कि महिलाएं भी कंधे से कंधा मिलाकर हर क्षेत्र में अपनी भागीदारी निभा रही हैं। ऐसे में, राजनीतिक पार्टियों को अपनी पुरानी मानसिकता से बाहर निकलकर महिलाओं को भी मंत्रीमंडल में अच्छी जगह देनी चाहिए, जिससे महिलाओं की भूमिका का और भी विस्तृत रूप से जनता को लाभ मिल सके।