Close Menu
Rashtra SamvadRashtra Samvad
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Rashtra SamvadRashtra Samvad
    • होम
    • राष्ट्रीय
    • अन्तर्राष्ट्रीय
    • राज्यों से
      • झारखंड
      • बिहार
      • उत्तर प्रदेश
      • ओड़िशा
    • संपादकीय
      • मेहमान का पन्ना
      • साहित्य
      • खबरीलाल
    • खेल
    • वीडियो
    • ईपेपर
      • दैनिक ई-पेपर
      • ई-मैगजीन
      • साप्ताहिक ई-पेपर
    Topics:
    • रांची
    • जमशेदपुर
    • चाईबासा
    • सरायकेला-खरसावां
    • धनबाद
    • हजारीबाग
    • जामताड़ा
    Rashtra SamvadRashtra Samvad
    • रांची
    • जमशेदपुर
    • चाईबासा
    • सरायकेला-खरसावां
    • धनबाद
    • हजारीबाग
    • जामताड़ा
    Home » वशिकार अवस्था को गोपीभाव कहा जाता है शैव अवस्था निर्विकल्प समाधि की अवस्था है यहां ज्ञान स्वरूप का भाव है
    Breaking News झारखंड धर्म

    वशिकार अवस्था को गोपीभाव कहा जाता है शैव अवस्था निर्विकल्प समाधि की अवस्था है यहां ज्ञान स्वरूप का भाव है

    News DeskBy News DeskJuly 2, 2022No Comments4 Mins Read
    Share Facebook Twitter Telegram WhatsApp Copy Link
    Share
    Facebook Twitter Telegram WhatsApp Copy Link

     

    वशिकार अवस्था को गोपीभाव कहा जाता है शैव अवस्था निर्विकल्प समाधि की अवस्था है यहां ज्ञान स्वरूप का भाव है

    ऐश्वर्य मिलने से दुरुपयोग होने की संभावना रहती है और अगर दुरुपयोग होता है तो अध्यात्म साधना में बाधा स्वरूप है

    शैव अवस्था का निर्विकल्प समाधि अर्थात निर्गुण ब्रह्म के *परम पद में शाशश्वती स्थिति* लाभ
    करना है

    जमशेदपुर से काफी संख्या में आनंद मार्गी
    आनंद मार्ग प्रचारक संघ द्वारा आयोजित रांची जिला के किता में तीन दिवसीय द्वितीय संभागीय सेमिनार में भाग ले रहे हैं दूसरे दिन सेमिनार को संबोधित करते हुए आनंद मार्ग के वरिष्ठ आचार्य नवरुणानंद अवधूत ने “साधना की चार अवस्थाएं” विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आध्यात्मिक साधना में मानवीय प्रगति एवं प्रत्हार योग के चार चरण है – यतमान, व्यतिरेक,एकेंद्रीय एवं वशिकार। एक साधक को क्रम से इन चार अवस्थाओं से गुजरते हुए आगे बढ़ना होता है।प्रथम अवस्था अर्थात यतमान में मानसिक वृत्तियां चित्त की ओर उन्मुख होती है। साधना के इस प्रयास में नाकारात्मक प्रभावों या वृत्तियों को नियंत्रित करने का प्रयास होता है। इसमें आन्तरिक एवं वाह्य बाधायें या कठिनाइयां अष्ट पाश और षड् रिपु के रुप में आती है। अष्ट पाश है-लज्जा,भय, घृणा,शंका,कुल,शील, मान और जुगुप्सा षड़रिपु है- काम क्रोध,लोभ,मद, मोह और मातसर्य।साधक इनके विरुद्ध संघर्ष करते हुए इन पर विजय पाने की चेष्टा करता है और वृत्ति प्रवाह से अपने को हटा लेने का सतत् प्रयास करता है। इसके दूसरी अवस्था आती है- “व्यतिरेक” की। व्यतिरेक में साधक की वृत्तियां मन के चित्त से अहम तत्व की ओर उन्मुख मुख होती है। इनमें कभी प्रत्हार होता है, कभी नहीं होता है। आंतरिक एवं बाह्य शत्रुओं पर आंशिक नियंत्रण हो जाता है तो कभी-कभी हार मान जाती है। किसी वृत्ति विशेष पर नियंत्रण होता है, तो किसी वृत्ति पर नियंत्रण नहीं होता। कुछ वृत्तियां एक समय में नियंत्रित होती है तो दूसरे समय में अनियंत्रित हो जाती है। अतः इस अवस्था में साधक को परम पुरुष की कृपा एवं प्रेरणा अनिवार्य हो जाती है साथ ही दृढ़ संकल्प की जरूरत भी पड़ती है। अब तीसरी अवस्था एक “एकेन्द्रीय में वृत्तियां मन के अहम तत्व से महत्व की ओर उन्मुख हो जाती है । सर्व प्रति विषय प्रत्याहित हो एक भाव में स्थित होता है और साधक को इस अवस्था

    में विभूति या ऐश्वर्या (अकल्ट पावर )की प्राप्ति होती है। ऐश्वर्य मिलने से उसका दुरुपयोग होने की संभावना रहती है और अगर उनका दुरुपयोग होता है तो वह अध्यात्म साधना में बाधा स्वरूप है। इस प्रकार इस एकेंद्रीय अवस्था में कुछ वृत्तियों एवं इंद्रियों पर पूर्ण नियंत्रण या विजय प्राप्त हो जाता है- वह कुछ से वह हार भी जाती है वृत्ति समूह का स्थाई भाव से नियंत्रण नहीं हो पाता अर्थात अष्ट पास एवं षड् रिपु पूर्ण रूप से नियंत्रित नहीं होते हैं । अब चौथी अवस्था बशीकार में सभी वृत्तीय संपूर्ण रूप से महत्व से मूल परम सत्ता की ओर उन्मुख होती है और तब साधक की स्वभाव एवं स्वरूप में प्रतिष्ठा हो जाती है अष्ट पास और षड् रिपु पूर्णतः बस में हो जाते हैं षड् चक्र एवं षड्लोक संपूर्ण भाव से वशीभूत हो जाते हैं, सभी इंद्रियां पूर्ण रूप से नियंत्रित हो जाती हैं। मन आत्मा के पूर्ण नियंत्रण में रहता है।वशिकार अवस्था में सर्व वृत्ति पुरुष भाव के अधीनता स्वीकार करती है और उसके निकट समर्पण कर देती है और तब वैसी स्थिति में अधोगति की संभावना नहीं रहती है। इसे ही भक्ति मनोविज्ञान में “गोपीभाव” या “कृष्णशरण” कहते हैं। इसमें कर्म ज्ञान एवं शक्ति का सुंदर समन्वय देखने को मिलता है, तथा शाक्त, वैष्णव एवं शैव भाव में प्रतिष्ठा होती है अर्थात शाक्त में संग्राम मनके कल्मष के विरुद्ध संग्राम, वैष्णव भाव में भक्ति एवं रस प्रवाह तथा शैव भाव में ज्ञान स्वरूप का भाव रहता है। अर्थात शैव अवस्था का निर्विकल्प समाधि अर्थात निर्गुण ब्रह्म के परम पद में शाशश्वती स्थिति लाभ करना ही शैवा अवस्था है। यह ज्ञान स्वरूप का भाव है।

    Share. Facebook Twitter Telegram WhatsApp Copy Link
    Previous Articleजनता दरबार मेरे लिए जनता की सेवा करने का अवसर हैं, इससे ज्यादा से ज्यादा लोगों से मिलकर सुख दुख साझा करता हूँ और समस्याओं के समाधान का प्रयास करता हूँ:स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता
    Next Article 6 जुलाई को श्री श्री शीतला माता मंदिर गाराबासा का प्राण प्रतिष्ठा 

    Related Posts

    हर एक मनुष्य को शारीरिक-मानसिक एवं आध्यात्मिक क्षेत्र में विकसित होने का अधिकार है

    May 12, 2025

    फिर आएगा गौरी : इतिहास के पन्नों से वर्तमान तक का सबक

    May 12, 2025

    बौद्ध धर्म का उदय-प्रसार और बौद्ध स्मारक के संरक्षण की आवश्यकता

    May 12, 2025

    Comments are closed.

    अभी-अभी

    हर एक मनुष्य को शारीरिक-मानसिक एवं आध्यात्मिक क्षेत्र में विकसित होने का अधिकार है

    फिर आएगा गौरी : इतिहास के पन्नों से वर्तमान तक का सबक

    बौद्ध धर्म का उदय-प्रसार और बौद्ध स्मारक के संरक्षण की आवश्यकता

    संघर्ष विराम कूटनीतिक राहत या अस्थायी विराम?

    सरायकेला थाना से महज 500 मीटर की दूरी पर असामाजिक तत्वों ने साप्ताहिक हाट बाजार में लगा दी आग

    तेली साहू समाज गोलमुरी क्षेत्र ने मनाया कर्मा जयंती, कार्यकम का उद्घाटन पूर्णिमा साहू और दिनेश कुमार ने किया

    हेलमेट और कागजात की चेकिंग के बाद भी लोगो से पैसे की मांग करती हैं पुलिस – सरदार शैलेन्द्र सिँह

    आदित्यपुर में एंटी करप्शन इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो की बैठक संपन्न, सदस्यों को भ्रष्टाचार मुक्त समाज निर्माण का दिया निर्देश

    हाता बिरसा चौक में बनेगा 4.50 करोड़ की लागत से बस स्टैंड सह मार्केट कॉम्प्लेक्स, विधायक संजीव सरदार ने किया भूमि पूजन

    जमशेदपुर मे संभावित हवाई हमले व अन्य आपदा प्रबंधन के संबंध में मॉक ड्रिल का आयोजन

    Facebook X (Twitter) Telegram WhatsApp
    © 2025 News Samvad. Designed by Cryptonix Labs .

    Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.