राष्ट्र संवाद नजरिया : पंजाब में कांग्रेस के लिए केवल सिद्धू को मनाने की बात नहीं, बल्कि ट्रिपल चुनौती का सामना करने की है
बिशन सिंह पपोला
पंजाब कांग्रेस में चल रहा शह मात का खेल पंजाब कांग्रेस में जिस तरह शह मात का खेल चल रहा है, उससे न केवल राज्य में सियासी संकट गहराता दिख रहा है, बल्कि आगामी चुनाव को देखते हुए कांग्रेस का भविष्य भी खतरे में दिख रहा है। पिछले कुछ दिनों के अंदर जिस तरह का माहौल वहां दिख रहा है, उससे ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस पार्टी के नेताओं के बीच जारी खींचतान जल्द समाप्त होने वाली नहीं है। अभी तक पार्टी के लिए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे चुके कैप्टन अमरिंदर सिंह को मानने की जरूरत थी, अब जिसकी वजह से कैप्टन को इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा, अब उन सिद्धू को मनाने की जरूरत पड़ रही है। हालांकि, कांग्रेस हाईकमान ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे चुके सिद्धू का इस्तीफा स्वीकार नहीं किया है और उन्हें मानने की पुरजोर कोशिशें की जा रहीं हैं, ऐसा लग रहा है कि ये कोशिशें सफल भी हो जाएंगी, लेकिन पार्टी इस खींचतान से उबर पाएगी, ऐसा बिल्कुल भी नहीं लगता है। पार्टी के सामने तीन तरह की चुनौती है, सबसे पहला सिद्धू को वापस अध्यक्ष बनाए रखना, दूसरा कैप्टन अमरिंदर सिंह को पार्टी में बनाए रखना, क्योंकि उनकी बीजेपी में जाने की अटकलें लगाईं जा रहीं हैं। ऐसा कहा जा रहा है कि उन्हें बीजेपी की तरफ से बड़ा ऑफर है, जिसमें उन्हें पंजाब में चल रहे किसान आंदोलन को शांत करने के मकसद से कृषि मंत्री बनाया जा सकता है। बताया यह भी जा रहा कि उनको उपराष्ट्रपति भी बनाए जाने का ऑफर है। ये चीजें कितनी सच हैं, इसका आने वाले दिनों में पता चलेगा। पर जब ये बातें हवा में तैर रहीं हैं तो इसका मतलब है, कुछ न कुछ कारण तो है ही। कांग्रेस के सामने तीसरी बड़ी चुनौती है नए मुख्यमंत्री बनाए गए चरणजीत सिंह चिन्नी को खुलकर काम करने देने की आजादी देना। कुल मिलाकर, पार्टी के सामने बड़ी अजमंजस की स्थिति है। एक चुनाव सिर पर हैं और दूसरा इतना बड़ा राजनीतिक बखेड़ा। अगर, कैप्टन अमरिंदर सिंह बीजेपी का दामन थामते हैं तो निश्चित ही कांग्रेस को राज्य में भारी नुकसान होगा, क्योंकि बीजेपी भी कैप्टन को पार्टी में लेने के लिए उतावली है, क्योंकि उसे भी पंजाब में कैप्टन जैसा ही नेता चाहिए। कैप्टन बीजेपी में आते हैं तो बीजेपी पंजाब में मजबूत स्थिति में आ जाएगी, जहां तक कांग्रेस का सवाल है, अगर सिद्धू मान भी जाते हैं तो स्थिति सामान्य हो जाएगी, ऐसा कतई नहीं लगता है, वह इसीलिए क्योंकि सिद्धू चाहेंगे कि सरकार में उनका पूरा दखल हो और नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चिन्नी ऐसा चाहेंगे, ऐसा भी नहीं लगता है, क्योंकि वह भी चाहेंगे कि चुनाव का जिस तरह समय कम बचा है, उसमें वह कुछ करके दिखाएं, तभी वह पार्टी और राज्य के अंदर मजबूत आधार बना पाएंगे। ऐसा वह करते भी दिख रहे हैं, मंत्रिमंडल की टीम उन्होंने अपने हिसाब से बनाई है, यही बात सिद्धू को नागवार गुजरी और उन्होंने राज्य कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। सिद्धू चाहे कुछ भी सोचें, सच तो यही है कि पद मिलने के बाद हर कोई चाहता है कि उसे अपने अनुसार काम करने का मौका मिले। सिद्धू के रहते ऐसा संभव हो, इसकी गुंजाइश न के बराबर है, लिहाजा अभी मान मन्नोवल से मामला शांत भी करा लिया जाता है तो आने वाले दिनों में स्थिति शांत रहेगी, इसकी कोई गारंटी नहीं। ऐसे में, पार्टी के लिए यही सही रहेगा कि कुछ ऐसे विकल्पों की तलाश करे, जिसमें राज्य की लीडरशिप अपने अपने स्तर पर हावी होने की कोशिश करने के बजाय कुछ त्याग की भावना से काम करे, जिससे राज्य में पार्टी चुनावों में कुछ कमाल कर पाए। नहीं तो, पंजाब की सत्ता भी हाथ से फिसल जाएगी।